पृष्ठ:सूरसागर.djvu/३३९

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% (२४६) . सूरसागरः।। इनिके । सूरइमाम सुंदर वहु नायक सुखदायक सबहिनके ॥ १० ॥ योडी ॥ काहेको हमसों हरि । लागत । वातहि कछू खोल रस नाही को जाने कहा मांगत ।। कहा स्वभार परयो अवहीते इनि वातन कछु पावत । निपट हमारे ख्याल परे हरि वनमें नितहि खिझावत ।। पैंडो देहु बहुत अव कीनों सुनत हँसहिंगे लोग । सूर हमहि मारग जिनि रोकहु घरते लीजे वोग ।। ११ ।। मुही । अब लों इहै करयो तुम लेखो। मोको ऐसी बुद्धि बतावत करकंकन दर्पण लै देखो ॥ आपुहि चतुरि आपुही सब कछु हमको करति गँवार । औगहै लेत फिरो इनके घर ठाठे हैं द्वार ॥ घाट छांडि. जैहौ तवलेंहों ज्वाच नृपति कहा देहों । जादिनते यहि मारग आवति तादिनते भरिलेहों ॥ इनिः । की बुद्धि दान हम पहिरो काहेन घर घर जैहौ । सूरश्याम तब कहत सखिनसों जान कौन विधि 4हौ ॥ १२॥ टोडी ॥ भली भई नृप मान्यो तुमहू । लेखो करै जाइ कसहिपै चले संग तुम हमहा। अवलों हम जानीही घरही पहिरयो । तुमदान कालि कह्यो हो दान लेनको नंदमहरकी आन॥ तो तुम कंस पठाएहैं ह्यां अब जानी यह बात। सूरश्याम मुनि सुनि यह वाणी भौंह मोरि मुसकात ॥ १३॥ आसावरी ॥ कहा हँसत मोरतहो भौंह । सोई कह्यो मनहि कहि आई तुमहि नंदकी सहा. और सौह तुमको गोधनकी सौंह माइ यशुमतिकी । सौंह तुमहि बलदाऊकीहै कहो वात वा मनकी ॥ वार वार तुम भौंह सकोरयो कहा आपु हँसि रीझे । सुरश्याम हम पर सुख पायो की मनही मन खीझे ॥१४॥रामकली।। हँसत सखनसों कहत कन्हाई । मैयाकी बाबाकी दाऊजीकी सौंह दिवाई। कहति कहा काहे हँसि हेरयो काहे भौंह सकोरेयो। यह अचरन देखो तुम इनिको कव हम वदन मरोरयो।। ऐसीवातनि सौंह दिवावति अधिक हँसी मोहिं आवतः। सुरश्याम कहि श्री दामासों तुम काहेन समुझावत ॥१६॥ धनाश्री ॥ श्रीदामा गोपिन समुझावता हँसत श्यामके तुम कहा जान्यो काहे सौंह दिवावत॥तुमहूं हँसो आपने सँग मिलिं हम नहिं सौंह दिवा । तरुणिनकी यह प्रकृति अनैसी थोरैहि वात खिसा ॥ नान्हे लोगनि सौंह दिवाबहु वै दानी प्रभु सबकोसूरश्यामको दान देहुरी मांगत ठाढे करके ॥१६॥ जैतश्री ॥ हम जानति वै कुँवर कन्हाई। प्रभु तुम्हरे मुख भाजु सुनी हम तुम जानत प्रभुताई ॥ प्रभुता नहीं होति इनि वातान मही दहीके दान ।वै ठाकुर तुम सेवक उनके जान्यो सबको ज्ञान दधिखायो मोतिन लर तोरयो घृत माखन सोउ लीजै । सूरदास प्रभु अपने सदका घरहि जान हम दाजै ॥ १७ ॥ तुम वर जाहु दानको दैहै । जेहि वीरा दै मोहिं पठासो मोसों कहालैहै।।तुम गृहजाइ वैठि सुखकरिहौ नृप गारी । को खैहै । अवहीं बोलि पठादै गोरी तासन्मुखको जैहै । जान कहै तुमको तुम जैहौ विधिना कैसेसैहै । सूर मोहिं अटक्योहै नृपवर तुमविनु कौन उँडैहै ॥ १८॥ नृपको नाँउ लेत तेहि मुख जेहि मुख निंदा कालिकरी। आयुनतौ राजनिके राजा आजु कहा सुधिमनहि परी ।। भले श्याम ऐसी तुम कीनी कहा कसको नाउँलियो । जब हम सौंह दिवावन लागी तबहिं कंस पर रोपकियो । जाकोनीदि वंदियै सो पुनि वह ताकोनिदरे । सूर सुनी वह वात कालिकी तब जानी इनि कंस डरै ॥१९॥ नासावरी ॥ कहा कहति कछु जानि न पायो।कव कंसहि धौ हम कर जोरयो कर वाको हम माथ नवायो।। कबहूं सौंह करत देख्यो मोहि लेत कबहुँ मुखनाऊ । निपटहि ग्वारि गँवारि भई तुम वसति हमारे गाऊं कहा कंस केतने लायकको जाको मोहिं देखावति ।सुनहु सूर यहि नृपके हम, इह तुम्हरे मन आवति ॥ २० ॥ योडी।। कौन नृपति जाके तुमहौ। ताको नाउँ सुनावहु हमको यह सुनिकै आति पतिभौ ॥ यह संसार भुवन चौदह भरि कसहिते नहिं दूजो । सो नृप कहा रहत