पृष्ठ:सूरसागर.djvu/३६३

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(२७०) . सूरसागर। होहु सहाइ । ऐसी कहौं बात इन आगे मेरी पति जिन जाइ ॥ तब यक बुद्धि रची मनही मन अति आनंद हुलास । सूरश्याम राधा आधातन कीन्हो बुद्धि प्रकाश ॥ १४ ॥ गूजरी ॥राधा चलन भवनही जाहि । कवहि की हम यमुना आई कहहिं अरु पछिताहि ॥ कियो दरशन श्यामको तुम चलोगीकी नाहि । बहुरि मिलिहो चीन्हि राखहु कहतिं सब मुसकाहि ॥ हम चली घर तुमहुँ आवह सोच भयो मन माहि । सूर राधा सहित गोपी चली ब्रज समुहाहि ॥ ४६॥ विलावल ॥ कहि राधा हरि कैसेहैं ।तेरे मन भायेकी नाही की सुंदरकी नैसेहैं।की पुनि हमहि दुरावकरोगी की कहो वैजैसे हैं। की हम तुमसों कहत रही ज्यों सांच कही की तैसेहैं ॥ नटवर भेप काछनी काछे अंगनि रातिपाति सैसेहैं । सूरश्याम तुम नकि देखे हम जानति हरि ऐसेहैं ॥ १६ ॥ राधामनमें इहे विचारतिीये सब मेरे ख्याल परीहैं अवही बातनलै निरुवारति॥ मोहूते ये चतुर कहावति ये मनही मन मोको नारति । ऐसे वचन कहोंगी इनको चतुराई इन की मैं झारति ॥ जाके नंद नंदन शिरसमरथ वार वार तनु मन धन वारति । सूरश्यामके गर्व राधिका सूधे काहू तन न निहा राति ॥४७॥ सूही ॥राधा हरिके गर्व गहीली । मंद मंद गति मत्त मतंगज्यों अंग अंग सुख पुंज भरीली॥ पगदै चलति ठटकि रहै ठाढी मौन धरे हारके रसगीली ॥धरनी नख चरननि कुरवारति सौतिन भाग सुहाग डहीली ॥ नेकनहीं पियते कहुँविछुरति ताते नाहिन काम दहीली । सूरसखी ब्रझै यह कैहों आज भई इह भेद पहीली ॥४८॥ आसावरी ॥ क्यों राधा फिरि मौन धरचोरी। जैसे नउआ अंध झेवखर तैसहि तैं यह मौन कहोरी। वातनहीं मुखते कहि आवति को तेरो मन श्याम हरचोरी। जानि नहीं पहिचानि न कबहू देखतही चित तिनहि ठरचोरी ॥ साँची बात कहीं तुम हमसों कहा सोच सो जियहि परयोरी । सूरश्याम तन देखि रही कहा लोचन इकटक ते न टरयोरी ॥४९॥ धनाश्री। कहा कहति तुम बात अलेखे । मोसों कहति श्याम तुम देखे तुम नीके करिदेखो।कैसो वरन भेषहै कैसो कैसे अंग त्रिभंगामो आगे वह भेद कहौ धौकि सोहैं तनु रंग मैंदेखें कोनाही देखे तुमतो वारहजारासूरश्याम द्वै अँखियनदेखतिजाको वार नपार॥५०॥कान्हरो।हम देखे यहि भाँति कन्हाई शीशश्रीखंड अलक विथुरे मुख श्रवननि कुंडल चारु सोहाई ॥ कुटिल भ्रुकुटि लोचन अनियारे सुभग नासिका राजत । अरुन अधर दशनावलिकी युति दारिम कन तन । लाजत ॥ ग्रीवहारमुक्ता वनमाला बाहुदंड गजशुंड। रोमावली सुभग वगपंगति जात नाभि हृदय । झुंड॥कटि पटपीत मेखला कंचन सुभग जंघ युग जान । चरन कमल नखचंद्र नहीं सम ऐसे सुर सुजान॥५१॥बिलावलावने, विसाल कमल दल नैन । तामें अति चारु विलोकनि गूढभाव सूचत सखिसैनापदन सरोज निकट कुंचित कच मनहु मधुपआए मधुलैनातिलक तरनि शशि कहत कछुक हँसि बोलत मधुर मनोहर बैन।।मदननृपतिको देश महामद बुधि बल बसि नसकत उर चैनासूरदास प्रभु दूत दिनहि दिन पठवत चरित चुनौती दैन ॥५२॥देवगंधार मोहन बदन विलोकत अँखियन उपजतहै अनुराग । तरनिताप तलफति चकोरगति पिवत पियूष पराग ॥ लोचन नलिन नये राज त रति पूरण मधुकर भागा मानहु आले आनंद मिले मकरंद पिवत रतिफागाभिँवरिभाग भृकुटी पर कुमकुम चंदनविंदु विभाग ।चातक सोम शक्र धनु घनमें निरखत मनु वैराग ॥कुंचित केश मयूर चद्रिका मंडल सुमन सुपाग। मानहु मदन धनुष शर लीन्हे बरषतह बन वागअधरबिंब विहँसान मनोहर मोहन मुरली राग। मानहु सुधा पयोधि घेरि धन ब्रजपर वरषन लाग ॥ कुंडल मकर कपोलनि झलकतश्रमसी करके दाग । मानहुँ मीन मकर मिलि क्रीडत सोभित शरद En a me -name- mum- - -- - - -- -- -