पृष्ठ:सूरसागर.djvu/३७

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श्रीसूरदासजीका जीवनचरित्र। | (२२) श्रीपतिकवि प्रयागपुर जिले बहिरायच निवासी सं०१७००ये महाराज भाषासाहित्यके आचार्योंमें गिनेजातेहैं इनके बनाएहुए काव्यकल्पद्रुम १ काव्यसरोज २ श्रीपतिसरोज ३ ये तीन ग्रंथ विख्यातहैं हमने ये तीनों ग्रंथ नहीं देखे और न इनके कुल और न जन्मभूमिसे हमको ठीक ठीक आगाही है। (२३) दयानिधिकवि वैसवारके सं० १८११ राजाअचलसिंह बैसकी आज्ञानुसार शालि- होत्र ग्रंथ बनाया । (२४)युगलकिशोरभट्ट कैथल वासी सं० १७९५ ए महाराज मोहम्मद शाह वादशाहके बड़े मुसाहिवों में थे इन्होंने संवत् १८०३ में अलंकारनिधि नाम एक ग्रंथ अलंकार में अद्वितीय बनाया है जिस्में ९६अलंकार उदाहरण समेत वर्णन किए हैं उसी ग्रंथ में ए दो दोहा अपने नाम औ सभा के समाचार में कहे हैं। दोहा-ब्रह्म भट्ट हौं जाति में निपट अधीन निदान। राजा पद मोकोदयो, महम्मद शाह सुजान ॥ ३॥ चारि हमारी सभा में, कोविद कविमतिचारु । सदा रहत आनंदवड़े, रसको करत विचारु ॥२॥ मिश्ररुद्र मणि विप्रवर, औ सुख लाल रसाला शतं जीव श्रुगुमान हैं, शोभित गुणनि निशाल ॥३॥ युगलकिशोर कवि २ शृंगाररस में कवित्त नीके हैं। जुगराज कवि बहुतही सरस काव्य इनकी है । जुगुल प्रसाद चौवे । इन की बनाई हुई दोहावली बहुत सुंदर काव्य है। जुगुलदास कवि-पद बनाए हैं। जुगुलकवि सं० १७५५ इनके बनाएहुए पद अति अनूठे महाललितहैं। (२९) कविंद ( उदयनाथत्रिवेदी) वनपुरा निवासी कविकालिदासजूके पुत्र सं० १८०४ ये कवि अपने पिताके समान महानुकवीश्वरहो गुजरेहैं प्रथम राजाहिम्मतिसिंह वंधलगोत्री अमेठी महाराजके इहां बहुत दिनतक रहे औकवितामें अपना नाम उदयनाथ वर्णन करतेरहे जब राजाके नामसे रसचन्द्रोदयनाम ग्रंथवनाया तब राजाने कविंद पदवीदिया तबसे अपनानाम कविंदकरिके धरतेरहे इस ग्रंथके चारिनामहैं रतिविनोदचंद्रिका १ रतिविनोदचंद्रोदय २ रसचंद्रिका ३ रसचंद्रो दय ४ यह ग्रंथ भाषासाहित्यमें महाअद्भुतहै तेहि पीछे कविंदजी थोरेदिन राजागुरुदत्तसिंह अमेठी के इहां रहि भगवंतराइखीची औ गजसिंह महाराज आमेर औ राव बुद्धहाड़ा बूंदीवालेके यहां महा- मान सन्मानके साथ काल व्यतीत करतेरहे और एक कविंद त्रिवेदी वेतीगांव जिलेरायबरेलीमें भी महाकवि होगयेहैं। कविंद २ सखीसुख ब्राह्मण नरवर बुंदेलखंड निवासीके पुत्र सं०१८५४ इन्होंने रसदीपक नाम ग्रंथ बनायाहै। कविंद ३ सरस्वती ब्राह्मण काशीनिवासी सं० १६२२ ये कविन्दाचार्य महाराज संस्कृत साहित्य शास्त्र में अपने समयके भामनु थे शाहजहां बादशाहके हुकुम से भापाकाव्य बनाना प्रारंभ किया औ वादशाही आज्ञानुसार कविंद कल्पलता नाम ग्रंथ भाषा में रचा निस्में वादशाह के पुत्र दाराशिकोह औ वेगम साहेब की तारीफ में बहुत कवित्त हैं। (२६) गोविंद अटलकवि सं० १६७० इनके कवित्त हजारामें हैं। गोविंदजी कवि सं० १७६० ऐजन् ।