पृष्ठ:सूरसागर.djvu/३८४

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दशमस्कन्ध-१० उतते तुम सब मिलि काहे ऐसी धाई ॥ वेसरि एक लेहुगी को को पीतांवर नदेखावहु । वेसरि अरु पीतांवरलै तब घर घर जाइ सुनावहु ॥ तारी एक वजतकी दोऊ इतनो इती विचारौ । सुनहु सुर ए वेसरि लेहैं जानो ज्ञान तुम्हारो॥२३॥ जैयतश्री । सुनि राधा तोसों हम हारी। तेरे चरित नहीं कोइ जानें वंशकीन्हो गिरिधारी ॥ अवहीं कान्ह टारि करि पठए धनि तेरी महतारी । अंग अंग रचि कपट चतुरई विधिना आपु सँवारी।अबही प्रगट दुहुनि हम देख्यो जानति दै मो गारी। सूरश्यामके यह बुधि नाही जितनीहै तोषारी ॥२४॥ विलावल ॥ श्याम भले अरु तुमहुँ भलीहौ । वेसार छीनतिही वेकाजहि जाहु नपरहि चलीहो।। कैसे दौरि परी मेरे पर मानहुँ संग मिलीहो और भई सव वनकी बेली आपुन कमल कलीहो । तव कहती गहि वाह दुहुँनकी जो तुम चतुर अली हो। सूरदास राधा गुण आगरि नागरि नारि छलीहो ॥२६॥ अलहिया बिलावल ॥ अब हमसों सांची कहो वृपभानु दुलारी। कछुतौ तोसों कहतह ठग गिरिधारी॥ हाहा हमसों सोइ कहो देहो जिनि गारी। हमको देखतही गए उत ग्वाल हकारी ॥भेदकरै जो लाडिली तोहि सौंह हमारी । तू ठाढी काहे रही मगमेरी प्यारी सहज होइ तू कहि अवै उरते रिसटारी। सूरश्यामकी भावती कहै कहो कहारी ॥ २६ ॥ सूही ॥ मैं यमुना तन जात सहीरी बजते आवत देखि सखिनको इन कारण ह्यां परखि रहीरी ॥ इतते आइ गए हरितिरछे मैं तुमही तन चितैरहीरी । बूझन लगे कान्ह ग्वालन को तुमतो देखे उनहि नहीरी ॥ कछु उनसों वोली नहिं सन्मुख नाहि तहांकछुवैनकहीरी । सूर श्याम गए ग्वालनि टेरत नाजानौ तुम कहा गहीरी।।२७ाटोडी ॥ तुम मेरी वेसरिको धाई । सकुचि गई सुनि सुनि यह वानी तरुनिन राधा भले लजाई। यह तो बात लगति कछु साँची हमपर जाइ रिसाई । टेरत कान्ह गए ग्वालनको श्रवन परी ध्वनि आई॥ वेसरि नाउ लेत सरमानी तब राधा झहरानी। सूरदास वजनारि मनहि मन यह गुनि गुनि पछितानी ॥ २८॥ गूलरी ॥ राधा तू अति हीहै भोरी। झूठेही लोग उठावत घर घर हम जान्यो अति तोरीकंठ लगाइ लई रिस छांडी चूक परी हम वोरी। तुम निर्मल गंगाजल हूते दुरत नहीं वह चोरी ॥ घर जैहो की यमुना जैहौ हम आवै संग गोरी । सूरदास प्रभुप्यारी भुरी राधा चतुर दिननकी थोरी ॥२९॥ आसावरी ॥ अहो सखी तुम ऐसीहो । अबलौ तुम कुलटी करि जानति मोकोरी सब तैसीहो ॥ अपने मन जैसी तैसेई सब मोहु जनावत तैसीहो । जोरी भली वनैगी हरिसों छाह निहारो कैसीहो।अवलागी मोको दुलरावन प्रेमकरति टरि येसीहो । सुनहु सूर तुमरे छिन छिन मति वडी प्रेमकी गैसीहो ॥३०॥ टोड़ी। हँसति नारि सव घरहि चली।हम जानी राधाहै खोटी हम खोटी राधिका भली।इतते युवति जाति यमुना जे तिनको मगमें परखिरही । श्याम कहूंते आइ कडे ह्यां चले गए उत हेरतही इतनी तबहि नहीं यह जानी झूटही सव आनि गही।सूरश्याम अपने रंगआये हम वाको नहिं भली कहीं॥३॥बिलावल राधाश्याम सनेहिनी हरि राधा नेही । राधा हरिके तन वसे हरि राधा देही ॥ राधा हरिके नैनमें हरि राधा नैननि । कुंजभवन रति युद्धके जोरात बल मैननि ॥ और न काहूको रुचै घर घर गए दोऊ । मात पिता सतिभाइसों यह जानै न कोऊ । कैसे हूं करि करि दिन गयो निशि कटत न क्योहूं ! दोऊ रस विरह मगन भए निशि भई अगोहूं ॥ विरह सरोवर वूडई अंधकार सिवार । सुधि अवलंबन टेकही कहुँ वार न पार ॥ तमचुर टेरि पुकारई वूडें जिनि कोई ॥ सूर प्रात नवका मिल्यो आनन्द मन दोई ॥३२॥ धनाश्री ॥ मन मृग वेध्यो मोहन नैन बान सों। गूढ भावकी सेनं अचानक तकिताक्यो भृकुटी कमान सों॥ प्रथम नाद बल घेरि निकट ले मुरलीसप्तक सुर बंधान