उतते तुम सब मिलि काहे ऐसी धाई॥ वेसरि एक लेहुगी को को पीतांबर नदेखावहु। वेसरि अरु पीतांबरलै तब घर घर जाइ सुनावहु॥ तारी एक बजतकी दोऊ इतनो इती विचारौ। सुनहु सुर ए वेसरि लेहैं जानो ज्ञान तुम्हारो॥२३॥ जैयतश्री ॥ सुनि राधा तोसों हम हारी। तेरे चरित
नहीं कोइ जानैं वंशकीन्हो गिरिधारी॥ अबहीं कान्ह टारि करि पठए धनि तेरी महतारी। अंग अंग रचि कपट चतुरई विधिना आपु सँवारी॥ अबही प्रगट दुहुनि हम देख्यो जानति दै मो गारी। सूरश्यामके यह बुधि नाहीं जितनीहै तोघारी॥२४॥ बिलावल ॥ श्याम भले अरु तुमहुँ भलीहौ।
वेसार छीनतिही वेकाजहि जाहु नघरहि चलीहो॥ कैसे दौरि परी मेरे पर मानहुँ संग मिलीहो। और भई सब वनकी बेली आपुन कमल कलीहो॥ तब कहती गहि वांह दुहुँनकी जो तुम चतुर अली हो। सूरदास राधा गुण आगरि नागरि नारि छलीहो॥२६॥ अलहिया बिलावल ॥ अब हमसों सांची कहो वृषभानु दुलारी। कछुतौ तोसों कहतहै ठाढे गिरिधारी॥ हाहा हमसों सोइ कहो दैहौ जिनि गारी। हमको देखतही गए उत ग्वाल हँकारी॥ भेदकरै जो लाडिली तोहि सौंह हमारी। तू ठाढी काहे रही मगमेरी प्यारी॥ सहज होइ तू कहि अबै उरते रिसटारी। सूरश्यामकी भावती कहै कहौ कहारी॥२६॥ सूही ॥ मैं यमुना तन जात सहीरी। ब्रजते आवत देखि सखिनको इन कारण ह्यां परखि रहीरी॥ इतते आइ गए हरितिरछे मैं तुमही तन चितैरहीरी। बूझन लगे कान्ह ग्वालन को तुमतो देखे उनहि नहीरी॥ कछु उनसों बोली नहिं सन्मुख नाहि तहांकछुवैनकहीरी। सूरश्याम गए ग्वालनि टेरत नाजानौ तुम कहा गहीरी॥२७॥ टोडी ॥ तुम मेरी बेसरिको धाई। सकुचि गई सुनि सुनि यह वानी तरुनिन राधा भले लजाई। यह तौ बात लगति कछु साँची हमपर जाइ रिसाई। टेरत कान्ह गए ग्वालनको श्रवन परी ध्वनि आई॥ वेसरि नाउ लेत सरमानी तब राधा झहरानी। सूरदास ब्रजनारि मनहि मन यह गुनि गुनि पछितानी॥२८॥ गूजरी ॥ राधा तू अति
हीहै भोरी। झूठेही लोग उठावत घर घर हम जान्यो अति तोरी॥ कंठ लगाइ लई रिस छांडौ चूक परी हम वोरी। तुम निर्मल गंगाजल हूते दुरत नहीं वह चोरी॥ घर जैहो की यमुना जैहौ हम आवै संग गोरी। सूरदास प्रभुप्यारी भुरी राधा चतुर दिननकी थोरी॥२९॥ आसावरी ॥ अहो सखी
तुम ऐसीहौ। अबलौ तुम कुलटी करि जानति मोकोरी सब तैसीहो॥ अपने मन जैसी तैसेई सब मोहु जनावत तैसीहो। जोरी भली बनैगी हरिसों छाह निहारो कैसीहो॥ अबलागी मोको दुलरावन प्रेमकरति टरि येसीहौ। सुनहु सूर तुमरे छिन छिन मति बडी प्रेमकी गैसीहो॥३०॥ टोड़ी ॥ हँसति नारि सब घरहि चली। हम जानी राधाहै खोटी हम खोटी राधिका भली॥इतते युवति जाति यमुना जे तिनको मगमें परखिरही। श्याम कर्हूते आइ कढे ह्यां चले गए उत हेरतही॥ इतनी तबहि नहीं यह जानी झूठेंही सब आनि गही।सूरश्याम अपने रंग आये हम वाको नहिं भली कहीं॥३१॥ बिलावल ॥ राधा श्याम सनेहिनी हरि राधा नेही। राधा हरिके तन वसे हरि राधा देही॥ राधा हरिके नैनमें हरि राधा नैननि। कुंजभवन रति युद्धके जोरात बल मैननि॥ और न काहूको रुचै घर घर गए दोऊ। मात पिता सतिभाइसों यह जानै न कोऊ। कैसे हूं करि करि दिन गयो निशि कटत न क्योहूं। दोऊ रस विरह मगन भए निशि भई अगोहूं॥ विरह सरोवर वूडई अंधकार सिवार।
सुधि अवलंबन टेकही कहुँ वार न पार॥ तमचुर टेरि पुकारई वूडें जिनि कोई॥ सूर प्रात नवका मिल्यो आनन्द मन दोई॥३२॥ धनाश्री ॥ मन मृग वेध्यो मोहन नैन बान सों। गूढ भावकी सैन अचानक तकिताक्यो भ्रुकुटी कमान सों॥ प्रथम नाद बल घेरि निकट लै मुरली सप्तक सुर बंधान
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दशमस्कन्ध-१०
