पृष्ठ:सूरसागर.djvu/३९४

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दशमस्कन्ध १० (३०१) राधा। आजुही प्रात इक चरित देख्यो नयो तवहि ते मोहिं यह भई वाधा ॥ कहौं जो एक कार देखती नैन भरि भोरते भोर ढ रही माई । सूर प्रभु श्याम की श्यामता मेघ की यहै जिय सोच कछु नहिं सोहाई ॥२०॥ रामकली ॥ करधरकी धरमेर सखारी । कीमृक सीपजकी वगपंगति की मयूरकी पीड पखीरी ॥ की सुरचाप किधौं वनमाला तडित किधों पटु पीत । किधों मंदगरजान जलधरकी पगनूपुर रवनीत ॥ की जलधरकी श्याम सुभगतनु इहै भोरते सोचति । सुरश्याम रसभरी राधिका उमॅगि उमाँग रसमोचति ॥ २१ ॥ रामकली ।। आजु सखी अरुणोदय मेरे नैनन धोख भयो। कोहरि आज पंथ यहि गौने कीधौं श्याम जलद उनयो । की वगपंगति | भ्रांति उरपरकी मुकुतामाल बहुमोल । कीधी मोर मुदित नाचतकी वरहि मुकुटकी डोल की घनघोरगंभीर प्रात उठि की वालनकी टेरनि । कीदामिनि कौंधति चहुँदिशकी सुभग पीतपट फेरनि । की वनमाल लाल उरराजन की सुरपति धनुचारु । सूरदास प्रभु रस भार उमकी राधा कहति विचारु॥२२॥विलावल।।सुनहु सखी राधा कहनावाते । हम देख्यो सोई इन देखे ऐसेहि दोप लगावति।यह पुनीत हमही अपराधिनि तनु अपराध बढावताश्यामाश्याम सबके सुखदायक ताते कहि मनभावत ।। इतनेहि रहौ और जिनि भापहु अजहूं लाज न आवत । सूरश्याम राधा जो एकै तऊ नहीं कहि आवत ॥ २३ ॥ सूहीविलावर ॥ राधाको कछु और सुभाउ । हम देखति हरिको औरहि अंग यह निरखति सतिभाउ ॥ यह है विनकलंककी सांची हम कलंकमें सानी । हम हरिकी दासी समनाही यह हरिकी पटरानी। याकी स्तुति हम कहा कारह रसना एकनआवासुरश्याम कोईनहिं जाने भजन प्रताप बतावै ॥२४ ॥ गूहमलार ॥ राधिका हृदयते दोप टारौ। नंदके लाल देखे प्रात काल ते मेव नहिं श्याम तनु छवि विचारौ।।इंद्रधनु नहीं वन दाम बहु सुमनके वगपांति नहीं वर मोतीमाला। शिखी वह नहीं शिरमुकुट श्रीखंड पछ तडित नहिं पीत पट छवि रसाला।। मंद गजनि नहीं चरण नूपुर शवद भोरही आजु हरिगवन कीन्हो । सूर प्रभु भामिनी भवन कार गवनमनरवन दुखके दवन जानिलीन्हों।।२६॥भोरजे गये तेई श्यामवैरीराधोखो मोहिं भयो तव लखे नहिं एक करि नीलवनमेष छवि चीन्ह तनु लैरी॥ शिखीकी भांति शिरपीड डोलत सुभग चापते अधिक नवमालसोभासांवरीघटा वगपांतिते रुचिर मोतिवर दाम उर देखि लोभा।तडिततेपीतपटु कीच मकराजई गरज नहिं प्रातही ग्वाल बोले । सूर प्रभु सखी यह बात सांची कही पवनवशमेघ ज्यों अंग डोले ॥२६॥ कल्याण ।। धन्यहो धन्य तुम घोप नारी।।मोहिं धोखो गयो दरश तुमको भयो तुमहि मोहिं देखोरी बीचभारी ॥ जादिना संग मैं गई स्नानको यमुनके तीर देखे कन्हाई। पीड श्रीखंड शिर भेप नटवर कछे अंग इक छटा मैंहीभुलाईएकयोस आइ ठाढे भए द्वार हरि आज द्वारद्वैगए मेरे। सूर प्रभु तादिना तुमहि कहि दियो मोहिं आन मैं लखे सोउ कहे तेरे २७॥आसावरी तुम कैसे दरशन पावतिरी । कैसे शाम अंग अवलोकति क्यों नैननको ठहरावतरी॥ कैसे रूप हृदय राखतिहाँ पैतो अति झलकावतरी। मोको जहां मिलत हैं माई तहँ तहँ अति भरमा वतरी | मैं कवहूं नीके नहिं देखे कहा कहीं कहत न आवतरी। सूरश्याम कैसे तुम देखाति मोह दरश नहिं द्यावतरी ॥ २८॥ आसावरी ॥ धन्य धन्य वृषभानुकुमारी । धनि माता धनि पिता धन्य तुअ धनि तोसी उपजाईरी ॥ धन्य दिवस धनि निसा तवहिकी धन्य घरी धनि याम । धन्य कान्ह तेरे वश जेहें धनि कीन्हें वश श्याम ॥ पनि मति धनि गति धनि तेरो हित धन्य भक्ति धनि भाउ । मूरश्याम पति धन्य नारि तू धनि धनि एक सुभाउ ॥ २९॥ जैतश्री ॥ तोहिं श्याम