पृष्ठ:सूरसागर.djvu/४०

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- श्रीसूरदासजीका जीवनचरित्र। (२५) जोयसीकवि सं० १६५८ इनके कवित्त इजारामेंहैं। (२६) चंद्रसखी ब्रजवासी सं०१६३८ इनके पद रागसागरोद्भवमें हैं। (२७) कृष्णदास गोकुलस्थ बल्लभाचार्यके शिष्य सं० १६०१ इनके बहुत पदराग सागरो द्भवमें लिखेहैं औइनकी कविता अत्यंत ललित औ मधुरहै एकवि औ सूरदास औ परमानंददास औ कुंभनदास चारोंश्रीबल्लभाचार्य्यके शिष्यथे कृष्णदासजीकी कविता सूरदासकी कवितासे मिलतीथी एकदिन. सूरजी बोले आप अपना कोई ऐसापद सुनावो जो हमारी काव्यमें न मिले तब कृष्णदासजीने चारिपद सुनाये उन सब पदोंमें सूरजीने चोरी अपने पदोंकी सावित किया तव कृष्णदासजीने कहा काल्हि इम अनूठे पद सुनावेंगे ऐसाकहि सर्व रात्रि इसी शोचमें नही सोये प्रातःकाल अपने सिरहाने यह पद लिखाहुवा देखि सूरजीके आगे पढ़ा ॥ आवत बने कान्ह गोप वालक संग नैचुकी खुर रेनु छुरित अलकावली ।। सुरजी जान गये कि यह करतूति किसी और ही कौतुकीकी है वोले अपने वावाकी सहायता लीनी है इनकी गिनती अष्टछापमें है अर्थात् ब्रजमें आठ ८ वड़ेकवि हुए हैं जैसा तुलसीशन्दथिप्रकाश ग्रंथमें गोपालसिंहने व्योरा अष्टछापका लिखा है इसभांतिसे कि सूरदास कृष्णदास २ परमानंद३ कुंभनदास ४ एचारों वल्लभाचार्य के शिष्य औ चतुर्भुज ५ छीतस्वामी ६नंददास ७ गोविंददास८ ए चारों विठ्ठलनाथ वल्लभाचार्यके पुत्रके शिष्य अष्टछाप करिके विख्यात हैं कृष्णदासजीका बनाया हुवा प्रेमरसरासंग्रंथ बहुत सुंदर है। (२८) छेमकवि २बंदीजन दलमऊके सं०१५८२ए कवि हुमायूं बादशाहके इहाँ थे। (२९) अमृत कवि संवत् १६०२ अकबर बादशाहके यहांथे। (३०) खानखाना नवाव अब्दुलरहीम खानखाना वैरमसकि पुत्र रहीम ओ रहिमन छाप है। सं० १५८० ए महाविद्वान् अरबी फारसी तुरकी इत्यादि यामनीभापा औ संस्कृत ब्रजभाषाके बड़े पंडित अकबर बादशाहकी आंखकी पुतलीथे इन्हींके पिता बैरमकी जवांमरदी औ तवीरसे हुमायूंको दुवारा दिल्लीका राज्य प्राप्तहुआ खानखानाजी पंडित कवि मुल्लाशायर ज्यो- तिपी और सब गुणवान मनुष्यों के बड़े कदरदानथे इनकी सभा रातदिन विद्वज्जनोंसे भरी पुरी रहती थी संस्कृतमें इनके बनाए श्लोक बहुत कठिन हैं औ भापामें नवोरसके कवित्त दोहा बहुतही सुंदरहैं नीति संबंधी दोहा ऐसे अपूर्व हैं कि जिनके पढ़नेसे कभी पढ़नेवालेको तृप्ति नहीं होती फारसीम इनका दिवान बहुत उमदा हे वाकियात वावरी अर्थात् बाबर बादशाहने जो अपना जीवनचरित्र तुरकी जवानमें आपही लिखाहै उस्को इन्होंने फारसी जबानमें तर्जुमा कियाहै ७२ वर्षको अवस्थामें सन् १०३६ हिजरी में सुरलोकको सिधारे। ... शोक-आनीतानटवन्मयातवपुर-श्रीकृष्णयाभूमिका। व्योमाकाशखखावराब्धि वसवस्त्वत्प्रीतये ..ऽद्यावधि ।। प्रीतिर्यस्य निराक्षणोहि भगवन्मत्प्रार्थितं देहिमे । नोचेहि कदापि मानय पुनर्नामीहशी भूमिका ॥१॥ शृङ्गार सोरठा-भाषा। पलटि चली मुसक्याय, इति रहीम उजियाय अति।वाती सी उसकाय,मानौ दीनी दीप की ॥१॥ | गई आगि उर लाइ, आगि लेन आई जुतिय। लागी नहीं बुझाय, भभकि भभकि परिवरि उठ॥२॥ . . नीति, दोहा-खीरा शिर धरि काटिये, मलिये निमक लगाय। .....: करुये सुखको चाहिये, रहिमन यही सजाय ॥१॥ - % न