ज्यों तनुके वश छाया। एकटक नैन अंग छबि पोहै थकित भए पतिजाया॥ उठे उठत वैठे बैठे तहैं चले चलत सुधि नाहीं। सूरदास बड़भागिनि राधा समुझि मनहि मुसुकाहीं॥ आसावरी ॥ निरखि श्याम प्यारी अंग सोभा मन अभिलाष बढ़ावतहै। प्रिया अभूपण मांगत पुनि पुनि अपने अंग बनावतहै॥ कुंडल तट तरिवनलै साजत नासा वेसरि धारतहै। वेंदी भाल मांग शिर पारत वेनीगुंथि सँवारतहै॥ प्यारी नैननिको अंजनलै अपने लोचन अँजतहै। पीतांबर बोढनी शीशदे राधाको मन रंजतहै॥ कंचुकि भुजनि भरत उर धारत कंठ हमेल भ्रजावतहै। सूरश्याम लालच त्रियतनुपर करि श्रृंगार सुखपावतहै॥ नट ॥ श्यामा श्याम छबिकी साध। मुकुट मंडल पीतपट छबि देखिरूप अगाध॥ प्रिया हाहा करति पुनि पुनि देहु प्रीतममोहि। अंग अंग सँवारि भूषण रहति वह छबि जोहि॥ काछि कछनी पीत पटु काट किंकिनी अतिसोभ। हृदय वनमाला बनावन देखि छबि मनलोभ॥ श्रवन कुंडल धारि सोभा शीश रचि श्रीखंड। सुरक्ष्याम सुहागिनी रुचि कनक करलै दंड॥ रागिनीकर्नाटकी ॥ श्रीगोपाललालजी बंसी नेक मैं पाऊं। हो मदन गुपाल तुम्हारी मुरली मैं नेकु बजाऊं॥ टेक ॥ मुरली बजाऊं रिझाऊं गिरिधर गाउं न आज सुनाऊं। तेइ तेइ तान तुमसी गीतगावत जेइ कर्णाटी गौरी मैं गाय सुनाऊं॥ हो० ॥ तहांलगि गान गाऊं मोहन जहां लगि सात सुरन मैं पाऊं। सुरन बिमान थकित करि राखों कालिंदी स्थिर
नीर बहाऊं॥ हो० ॥ बेनी शीशफूल पहिरो हरि मैं शिर मुकुट बनाऊं। तुम वृषभानु सुता ह्वै बैठो मैं नंदलाल कहाऊं॥ हो० ॥ तिहारे आभूषण मैं पहिरौं अपने तुम्हैं पहिराऊं। तुममाननिको मान करि बैठो मैं गहि चरण मनाऊं॥ हो० ॥ सूरदास प्रभु तुम्हरे दरशको भक्तिभावनीके करि पाऊं। कीजै कृपा अनेक अनुचर पर अनुपम लीला गाऊं॥ हो० ॥ नट ॥ तिहारी लाल मुरली नेक बजाऊं। जो जिय होत प्रीति कहिवेकी सो धरि अधर सुनाऊं॥ जैसी तान तुम्हारे मुखकी तैसिय मधुर उपाऊं। जैसे फिरत रंध्र मगु अंगुरी तैसे मैंहुँ फिराऊं। जैसे आए अधर धरि फूंकत मैं अधरनि परसाऊं। हाहाकरति पाय हौं लागति वांस वसुरिया पाऊं॥ सारंग नट पूरवी मिलैकै राग अनूपम गाऊं। तुम्हरे भूषण मोको दीजै अपने तुमहि बनाऊं॥ तुम बैठो दृढ मान साजिकै मैं गहि चरण मनाऊं। तुम्हराधेहो माधोई माधो ऐसी प्रीति जनाऊं॥ यह अभिलाष बहुत मेरे जिय नैननि इहै देखाऊं। सूरश्याम गिरिधरन छबीले भुजभरि कंठ लगाऊं॥ नट ॥ हरिजी मुरली तुम्हें सुनाऊं। तुम सुरपुर वो प्राणनाथ प्रभु हौ अँगुरियन चलाऊं॥ मधुरे सुर गति राग रागिनी भलीतान उपजाऊं। जेहि जेहि भांति रिझहु नँदनंदन तेहि तेहि भांति रिझाऊं॥ अंश बाहु धरि करि विक्रम ज्यों ते मनुसुखहो पाऊं। सूरदास अटक्यो मन चलै न पगु मन अभिलाष बढाऊं॥ नट ॥ प्यारी कर वांसुरी लई।
सन्मुख होइ तुम सुनहु रंसिक पिय ललित त्रिभंग भई॥ उठत राग रागिनी तरंगन छिनु छिनु उपजि नई। आलबाल नंदलाल श्रवनवर जनु मोहनी वई॥ नमित सुधाकर वदन अमित छबि मनमोहन चितई। मानहुँ मत्त चकोर मेचक मृग तनु सुधि विसरि गई॥ कटि पीतांबर छाइ नाह को छल बलकै रिझई। सूर सखी हँसि कमल नैन कह राधे अंक दई॥ गूजरी ॥मुरली लई करते छीनि। तासमय छबि कही जाति न चतुर नारि नवीनि। कहति पुनि पुनि श्याम आगे मोहिं देउ सिखाइ। मुरलीपर मुख जोरि दोऊ अरस परस बजाइ॥ कृष्ण पूरत नाद उछरत प्यारी रिसकार गात। वार वारहि अधर धरि धरि बजत नहिं अकुलातं॥ प्रिया भूषण श्याम
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सूरसागर।
