पृष्ठ:सूरसागर.djvu/४०३

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(३१०) ... सूरसागर। .... .. ...... ज्यों तनुके वश छाया । एकटक नैन अंग छवि पोहै थकित भए पतिजाया । उठे उठत वैठे बैठे तहैं चले चलत सुधि नाहीं । सूरदास बड़भागिनि राधा समुझि मनहि मुसुकाहीं ॥ आसावरी ।। निरखि श्याम प्यारी अंग सोभा मन अभिलाष बढ़ावतहै। प्रिया अभूपण मांगत पुनि पुनि अपने अंग बनावतहै।कुंडल तट तरिवनलै साजत नासा वेसरि धारतहै। वेंदी भाल मांग शिर पारत वेनी गुथि संवारतहै।।प्यारी नैननिको अंजनलै अपने लोचन अँजतहै। पीतांवर वोढनी शीशदे राधाको मन रंजतहै ॥ कंचुकि भुजनि भरत उर धारत कंठ हमेल भ्रजावतहै । सूरश्याम लालच त्रिय तनुपर करि श्रृंगार सुखपावतहै ॥ नट ॥ श्यामा श्याम छविकी साध । मुकुट मंडल पीतपट छवि ।। देखिरूप अगाध ॥ प्रिया हाहा करति पुनि पुनि देहु प्रीतममोहि । अंग अंग सँवारि भूपण रहति वह छवि जोहि ॥ काछि कछनी पीत पटु काट किकिनी अतिसोभ । हृदय वनमाला बना वन देखि छवि मनलोभ ।। श्रवन कुंडल धारिसोभा शीश रचि श्रीखंड । सुरक्ष्याम सुहागिनी रुचि कनक करलै दंड ॥ रागिनीकर्नाटकी ॥ श्रीगोपाललालजी बंसी नेक मैं पाऊं। हो मदन गुपाल तुम्हारी मुरली मैं ने बजाऊं ॥ टेक ॥ मुरली वजाऊं रिझाऊं गिरिधर गाउं न आज सुनाऊं। तेइ तेइ तान तुमसी गीतगावत जेइ कर्णाटीगौरी मैं गाय सुनाऊं। हो०॥ तहांलगि गान गाऊं. मोहन जहां लगि सात सुरन मैं पाऊं । सुरन विमान थकित करि राखों कालिंदी स्थिर नीर वहाऊ॥ हो० ॥वनीशीशफूल पहिरो हरि में शिर मुकुट बनाऊं । तुम वृषभानु सुता है वैठो मैं नंदलाल कहाऊं ॥ हो । तिहारे आभूषण मैं पहिरौं अपने तुम्हें पहिराऊं। तुममाननिको मान करि वैठो मैं गहि चरण मनाऊं ॥ हो० ॥ सूरदास प्रभु तुम्हरे दरशको भक्तिभाव नीके कार पाऊं। कीजै कृपा अनेक अनुचर पर अनुपम लीला गाऊं ॥ हो.. ॥ नट ॥ तिहारी लाल मुरली नेक वजाऊं । जो जिय होत प्रीति कहिवेकी सो धरि अधर सुनाऊं । जैसी तान तुम्हारे मुखकी तैसिय मधुर उपाऊं । जैसे फिरत रंध्र मगु अंगुरी । तैसे मैंहुँ फिराऊं। जैसे आए अधर धरि फूंकत मैं अधरनि परसाऊं हाहाकरति पाय हौं लागति। वांस वसुरिया पाऊं ॥ सारंग नट पूरवी मिलकै राग अनूपम गाऊं । तुम्हरे भूषण मोको दीजै । अपने तुमहि वनाऊं ॥ तुम बैठो दृढ मान साजिकै मैं गहि चरण मनाऊं । तुम्हराधेहो माधोई माधो ऐसी प्रीति जनाऊं । यह अभिलाष बहुत मेरे जिय नैननि इहै देखाऊं । सूरश्याम गिरि धरन छवीले भुजभरि कंठ लगाऊं ॥ नट ॥ हरिजी मुरली तुम्हें सुनाऊं । तुम सुरपुर चो प्राण नाथ प्रभु हौ अँगुरियन चलाऊं ॥ मधुरे सुर गति राग रागिनी भलीतान उपजाऊं। जेहि जेहि भांति रिझहु नँदनंदन तेहि तेहि भांति रिझाऊं। अंश वाहु धरि करि विक्रम ज्यों ते मनुसुखहो पाऊं। सूरदास अटक्यो मन चलै न पशु मन अभिलाष बढाऊं ॥ नट ॥ प्यारी कर वांसुरी लई। सन्मुख होइ तुम सुनहु रंसिक पिय ललित त्रिभंग भई ।। उठत राग रागिनी तरंगन छिनु छिनु उपजि नई । आलवाल नंदलाल श्रवनवर जनु मोहनी वई ॥ नमित सुधाकर वदन अमित छवि मनमोहन चितई । मानहुँ मत्त चकोर मेचक मृग तनु सुधि विसरि गई ।। कटि पीतांवर छाइ नाह को छल वलकै रिझई। सूर सखी हँसि कमल नैन कह राधे अंक दई ॥ गूजरी॥.मुरली लई । करते छीनि । तासमय छवि कही जाति न चतुर नारि नवीनि । कहति पुनि पुनि श्याम आगे मोहिं देउ सिखाइ । मुरलीपर मुख जोरि दोऊ अरस परस वजाइ ॥ कृष्ण पूरत नाद उछरत. प्यारी रिसकार गात । बार वारहि अधर धरि धरि वजत नहिं अकुलातं ॥ प्रिया भूषण श्याम...