पृष्ठ:सूरसागर.djvu/४०६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

दशमस्कन्ध १० (३१३) - - - % AR- | राधा सों पुनि पुनि कहति जु हमाह मिलावहु ॥ हमीर सांवरे तनु कुसुंभी सारी सोहत है नीकी ॥ री। मानो रतिपति सँवारि बनी रखनी जीकीरी ॥ राधाते अतिहि सरस श्याम देखि पारी ।। ऐसी यह नारि और नारि मन चुरावैरी ॥ बूंघट पट बदन ढांकि काहे इन राख्यो री। चितवह मोतन कुमारि चंद्रापलि भाप्योरी ।।आपुहि पट रि कियो तरुणी बदन देखेरी। मनही मन सफल जानि जीवन जग लेखरी । नेन नन जोरति नहिं भावसो लजानेरी । सूरश्याम नागरि मुख चित वत मुसुकानेरी ॥ विदाग। ॥ मथुरा में वस वास तुम्हारो । राधा ते उपकार भयो यह दुर्लभ दरशन । भयो तुम्हारो ॥ वार पार कर गहि गहि निरखत चूंबट वोट करो किन न्यारो । कवक कर । परसत कपोल छुइ चुटकि लेत ह्या हुमहि निहारो।। कछु में हूं पहिचानति तुमको तुमहि मिलाऊं ॥ नंददुलारो । काहेको तुम सकुचति हो जी कही काह हे नाम तुम्हारो ॥ ऐसी सखी मिली तोहि राधा तो हमको काहे न विसारो । मूरदास दंपति मन जान्यो यासे कैसे होत उवारो ॥ रामकली ॥ राधा सखी मिली मन भाई । जयते इनसों नेह लगायो बहुत भई चतुराई । और भई इतने तुमको सखी गृहजन सो निठुराई । काइके मनमें नहिं आनति हमहुँ सवन विसराई ॥ तुमही कुशल कुशल में एक आयु स्वारथी माई। मृर परस्पर दंपति आतुर चतुर सखी लखि पाई। रामफली। वह सरिख अपलों कहां दुराई । राति दिवस हम कबहुँ न देखी अब जु कहाँ ते आई ॥ त्रिभुवनकी सोभा सब गुणनिधि हे विधि एक उपाई । विद्यमान उपभान । नंदिनी सहचारि सब सुखदाई || अपने मन तकि तकि तनु तोलति विय जन सुंदर ताई । दुसर रूपकी राशि राधिका कही न साप पुराई ॥ राचिरही रस सुरति सूर दोउ निरसी नन निकाई । चीन्हे हो चले जाहु कुंज गृह छांडि देहु चतुराई ॥ रामफली ॥ ऐसी कुँवार कहां तुम पाई । राधा हूँने नख शिस सुंदरि अबलों कहां दुराई || काकी नारि कोनकी बंटी कोन गाउँते आई। देखी सनी न बन वृंदावन सुधि युधि रहतिपराई ॥ धन्य सुहाग भाग याको यह युवतिनके मनभाई। मृदास प्रभु हरपि मिले हसि ले उर कंट लगाई ।। गुंडमलार ॥ नंद नंदन से नागरी मुखचित्त हरपि चंद्रावलि कंठ लगाई । वामभुज रवनि दक्षिण भुजा सखी पर चले वन घाम सुन्न कहि नजाई | मनो विवदामिनी वीच नव धन सुभग देखि छवि कामरति सहित लाजाकियों कंचनलता विच तमाल तरुभामिनी विच गिरिधर विराजे । गए गृह कुंज अलि गुंज सुमनन पुंज देखि आनंदभरे मूर स्वामी राधिका रवन युवतीरवन मन हरन निरखि छवि होत मन काम कामी रामनिसायसेरी हैं री नयननिमें पटइंदु । नँदनंदन वृपभानु नंदिनी सखी सहित सोभित जगवंदु । द्वादशही पतंग शशि सौ वीस पट फणि चौवीस धातु चतुरंग छंदु ॥द्वादशही पकु विवसों वानव वज्रकन पट कमलनिमुसिक्यात मंदुद्वादशही मृणाल कदली संभ द्वादश द्वाद शते मातु लहि गिनंदु ॥ द्वादशही सायक द्वादश चाप चपलई खग व्याली समाधुरी फंदु । चौवि सही चतुप्पद शोभा अति कीनी मानां चलत चुवतकर भामकरंदु ॥ नील गौर दामिनि विच पीतवन पोडश राजत अनूपम छवि श्रीगोकुल चंदु । साठि जलजही अरु द्वादश सरवर अंगही अंग सर सरस कंटु । मुरझ्याम पर तनु मनुहिवारते ललिता इति देखि भयो आनंदु। केदारोगाकुंज सुहावनो भवन वान टनि वठे राधा वरन । वन वरन कुसुम प्रफुल्लित शशिकी किरनि जगमगात तसोई यहे त्रिविध पवन ॥ आलिंगन पिकमंगल गावत ध्वनि सुनि मुनि मनहि भावत देखत दंपति वियस अयन । सूरदास प्रभु पिय प्यारी दोउ राजत साजत सखी वारति रति पति D