पृष्ठ:सूरसागर.djvu/४६७

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(३७) सूरसागर।. पी ढब लैगई नागरि अंक भरेसेहो ॥५३॥ सारंग ॥ तहँइ जाहु जहँ रैनि रहे वास । केतवकत दामिनि पद प्रगटत आए मारन दुअन वानकसि ॥ सिथिल सरोज रोर सुठि सोभित शीशहुते कछु पागरही धसि । जावक रस मनौ संवर अरिंगण पिया मनाई पदललाट पसि ॥ विन गुणमाल मराल तरनिगति. मगन चालपद परत रहत खसि । चंदन चरचित कुच उर उपटित मनु नवधनमें उदित दोउ शशि ॥ सखियन समाचार लिखि पठए तन कागज नखलेखनि रुधिरमसि । सूरदास प्रभु श्रीगोपालहै मानो जागत भई निशा नशि ॥५॥ ॥ बिलावल ॥ तहइ जाहु जहां निशा वसेहो । जानतहो पिय चतुर शिरोमणि नागरि जागर रास रसेहो ॥ घूमतही मनो प्रिया उरगिनी नव विलास श्रमसे जडसेहो । काजर | अधरनि प्रगट देखियत हो नागवेलि रंग निपट लसेहोश्याम उरस्थल पर रेखा मनहुँ गगन शशि उदित दिसेहो। लटपटी पाग महावरके रँग माननि पग पर शीश घसेहो ॥विगलित वसन मरगजी माला पीठ बलयके चिह्न लसेहो।सूरदास प्रभु प्रिया वचन सुनि नागर नगधर नैफ हँसेहो॥५६॥तहँ ई जाहु जहँ रैनि हुते । काहे दुराव करत मनमोहन मिटे चिह्न नहिं अंगजुते ॥ विनही गुन उरहार विराजत परम चतुर हियलाइ सुते । विथुरी अलक अटपटे भूषण काम कुटिल कुच वीच गुते ॥ दशन दाग नखरेखवनी है भामिनि भवन भले भुगुते । सुर सुदेश अधर मधु फीके कोचन अलस उनीदहुते५क्षातहाई जाहु जहां रैनि गँवाई । काहेको मुँह परसन आए जानति हौं चतुराई।। वाके गुण मनते नहिं टारत बोलत नाहीं वैन । याछविपर मैं तन मन वारों पीक विराजित नैन । भली करी यह दरश दिखायो ताते नैन सिराने । सूर श्याम निशिको सुख लूयो हमको मया विहान॥६॥सुघराई ॥आएलाल ललित भेष किए।पीककपोल अधर पर काजर जावक भाल. दिए। चंदन खौरि मेटि अब आए कुमकुम रंग हिए। पीतांवर तहां डारि कौनको नीलांवरहि लिए।लालीदै पीरी ले आए देखत पुलकि जिए।सूरदास प्रभु नवल रसीले वोऊ नवल बिए।।५८॥ ॥ मूही ॥ जागे होजू रावरे पैनैना क्यों नखोलौ । भये त्रियाके वंश निशि जागे सरवस भोरभए उठि आए भूले कहा डोलो ॥ चंदन मिटाए तनु अतिही अलसात नागरीकी पीक लागी तो कपोलो। पीतांवर भूलि आए प्यारी जीको प? ल्याए भोर भए उठे सुरकिए आए दोलो ॥१९॥ ॥ विलावल | पीतांवर पट कहा भयो। नीलांवर ओठेहो आए अति दुहुँ डहो नयो । तैसोइ अंग वसन रंग तैसोइ कहा कहाँ यह सोभा । तैसिय वनी मरगजीकेसोर ता त्रियके मनलोभा ॥ एते पर क्यों बोलत नाहीं कहा खोइसे आए। सूरश्याम यह अब मैं जानी नागरि चित्त चुराए । ६०॥भैरव॥ हाहाहो पिय बात कहौ। आप कछू जिय तरक गहत हो तो तुम मोसों में नगहो।कहा. चूक हमको पिय लागै रूसि रहेही काहेजू । तबहीते वैसेहि हो ठाढे मोतनको नहिं चाहेजू। अब हमकोअपराध क्षमैगे कृपाकरौमुख बोलोनासूरश्यामं अब तजोनिठुरई गांठि हृदयकी खोलोजू।. ६१॥ विलावल ।। रूखे हो पिय रूंखेहो । उत्तरको उत्तर नदेतही देखतही न कछूखेही वह | चितवनि नहोइ नैननकी वचननहूं ते उतहहौं । वह मुखकमल विकास नहीं रति सायक शिरहि विदूषहौ ॥ की छुटि गई संपदा करते की ठग ठगे कछूषहौ । मेरेहु जान सूर प्रभु सांचे । मदन चोर मिलि मूषेहौ ॥ ६२॥ मदनचोर सों जानि मुषायो। अपनी लाली खोइ पीककी लाली. पलकनि पायो। ह्यांते गए चतुरई लीन्हें सो सब उनहि छपायो। आलस अबलं जम्हात अंग ऐंडात ॥ गांत दरशायो । कंचन खोय कांचं ले आये विढतो भलो फवायो। सूर कहूं पर परमन नाही जैसे हाल करायो॥६३॥ काफी ॥ लाल उनीदे नयना आलस भरि आए । अरुझि. काम:॥