पृष्ठ:सूरसागर.djvu/४७

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श्रीसूरदासजीका जीवनचरित्र । . (१०२) परमानंद दास बजवासी वल्लभाचार्यके शिष्य सं० १६०१ इनके पद रागसागरोद्भवः में बहुत हैं औ इनकी गिनती अष्टछापमें है। (१०३) नवीनकवि बहुतही सुंदर कवित्त शृंगाररसके हैं। . (१०४) माणिकचंद्र कवि सं० १६०८ राग सागरोद्भवमें इनके पद हैं। ... ... (१०५)निहाल प्राचीन सं० १६३५ । । (१०६) मुकुंद सिंह हाड़ा महाराजे कोटा सं० १६३५ ए महाराजाशाहजहां बादशाहके बड़े सहायक औ कविताईमें महानिपुण कवि कोविदोंके चाहकथे। (१०७) मुवारक सैयदमुबारक अली विलयामी सं० १६४० इनकी काव्य तौ विदित है इन का ग्रंथ कोई हमने नहीं पाया कवित्त सैकरों हमारे पुस्तकालयमें हैं। (१०८) बीरवर (बीरवर कायस्थ दिल्ली निवासी) सं० १७७७ ए महान्कविथे इनका बनाया हुवा कृष्णचन्द्रिका नाम ग्रंथ साहित्यमें बहुत सुन्दर औ हमारे पुस्तकालयमें मौजूद है। (११०) दिनेशकवि इनका नखशिख बहुतही विचित्रहै। (१११) दानकवि शृंगारमें सरस कविताई है। (११२) तोषीकवि। (११३) तेहीकवि। (११४) धीरज नरिंद महाराज इंद्रजीतसिंह बुंदेला उड़छावाले सं० १६१६ इन्हीं महाराजके. इहाँ कवि केशवदासथे औ प्रवीनराइ पातुरीभी इन्हींके सभामें विराजमान्थी इनके समयम. उड़छाबड़ी राजधानीथी। * (११७) श्रीगोस्वामी तुलसीदासजी सं० १६०१ ए महाराज सरवरियाब्राह्मण राजापुर जिले. परागके रहनेवाले प्रायः संवत् १९८३ के करीब उत्पन्न हुएथे औसं० १६८० में स्वर्गवास हुवा इनके जीवनचरित्रकी पुस्तक बेनीमाधवदास कवि पुसकाग्रामवासीने जो इनके साथ साथ रहे हैं बहुत विस्तार पूर्वक लिखी है उसके देखनेसे इन महाराज के सब चरित्र प्रगट होतेहैं इस पुस्तकमें ऐसे विस्तार कथाको हमु संक्षेप करिक वर्णनकरें निदान गोसाईजी बड़े महात्मा रामोपासक महायोगी सिद्ध होगएहैं इनके बनाये ग्रंथोंकी ठीक ठीक संख्या हमको मालूम नहीं हुई केवल जो ग्रंथ हमने देखे अथवा हमारे पुस्तकालय में हैं उनका जिकर किया जाता है प्रथम १९ कांड रामायण बनाया है इस तफसीलसे। ... .. १ चौपाई रामायण ७ कांडर कवितावली ७ कांडा गीतावली कांड ४ छंदावली।७ कांड ५ बरवै ७ कांड। दोहावली ७ कांड।७ कुंडलिया ७ कांड । औ सिवाय इन ४९ कांडके सतसई । २ रामसलाका । ३.संकटमोचन । ४ हनुमतबाहुक । ६ कृष्णगीतावली । ६ जानकी- मंगल । ७ पार्वतीमंगल । ८ कडकाछंद । ९ रोलाछंद । १० झूलनाछंद । इत्यादि औरभी ग्रंथ बनाएहैं अन्तमें विनयपत्रिका महाविचित्र मुक्तिरूप प्राज्ञानंद सागरग्रंथ बनायाहै चौपाई गोसाई महाराजकी ऐसी किसी कविने बनाय नहीं पाया और न विनयपत्रिकाके समान अद्भुतग्रंथ आज़ तक किसी कवि महात्माने रचा इस कालमें जो रामायण न होती तो हम ऐसे मूखाँका बेड़ा पार

  • (११५) श्रीपति कविका वर्णन पहले हुआ है परंत वह इस दोहेका नहीं है।

| रत्नाकर कविने हमसे कहा है कि श्रीपति कवि अकबर बादशाहके नौकरथे परंतु खुशामदी नथे कईएक कवियोंने मिल- कर अकबर बादशाहके सामने [ करो मिल आश अकव्वरकी ] समस्या दिये परंतु कविने स्पष्ट बादशाहको फटकारा: यह. | कवि भक्त था वहतो कवितासे स्पष्ट ही मालूम हुआ।... . .. . अबके सुलताँ फुनियान समान हैं बांधत पाग अटब्बर की । तजि एक को दूनो भने जो कोऊ तब जीभ कटै वह लब्बर की। शरणागत श्रीपति श्रीपति की नहिं त्रास जरा कोऊ नम्बरकी । जिनको नहिं आश कळू हरिकी सो करो मिलि आश अकब्बरकी ) %3- -