पृष्ठ:सूरसागर.djvu/४७१

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(३७८) सूरसागर। येते पर सब गुणनि भरी । लाजनहीं मेरे गृह आवत जाहु जाहु करि त्रिय झहरी ।। अंजन अधर कपोलन बंदन पीक पलक छवि देखिडरी। सूरश्याम रति चिह्न देखावन मेरे आए भले जुहरी ॥ ९५ ॥ धनाश्री ॥ श्याम त्रिया सन्मुखनहिं जोवत । कबहुँ नैनकी कोर निहारत कबहुँ वदन. पुनि गोवत.॥ मन मन हँसत नसत तनुपरगट सुनत भावतीवात । खडित वचन सुनत प्यारी के पुलक होत सव गात ॥ यह सुख सूरदास कछु जाने प्रभु अपनेको भाव । श्रीराधा रिस करति निरखि मुख सो छवि पर ललचाव ।। ९६॥ पियको सुख प्यारी नहिं जान । जोइ आवत सोइ सोइ कहडारत जाहु जाहु तुम गाने । काहेको मोहिं डाहन आए रौनिदेत सुख वाको ।। भली ॥ नवेली नोखी पाई जो जाको सो ताको । चंदन वंदन त्रिय अँग कुमकुम शेप लिए ह्या आए । सुरश्याम यह तुमहि बड़ाई औरनको सरमाए ॥ ९७ ॥ विलावल औरनको छवि कहा देखावत । तुमहीको भावत मनमोहन हम देखत रिस पावत॥आपुनको भई बड़ी प्रतिष्टा जावक भाल लगाए। याको अरथ नहीं कोउ जानत मारत सवन लजाए।पियनिधरक हम आति सकुचत, दर्पणले मुखदे : खो। सूरझ्याम क्यों बोलत नाही क्यों हम तन नाहं पेखो ॥१८॥ गौरीश्यामहँसे प्यारी सुखहेरो।। रिसाह उठी झहराय को यह वश कीन्होंमन मेरो।।जाय हँसो पिय ताहीआगे में रीझीआति भारी। ऐसे हँसि हँसि ताहि रिझावहु देउँ कहा अब गारी॥होत अवारगमन अव कीजे धरणी कहानिहारत। । सुरश्याम मनकी मैं जानी ताके गुणहि विचारत ॥ ९९ ॥ देवगंधारी ॥ मैं जानी पिय मनकी बात। धरनी पग नख कहा करोवत अब सीखे ए पात ॥ तुम जानत जिय हमहि सयाने अरु सब लोग अयाने। रैनि वसत कहुँ भोर हमारे आवत नहीं लजाने ॥ यह चतुरई पढी ताहीपै सो गुण हमते न्यारो। धनि धनि सूरदासके स्वामी काहे हम न विसारो ॥२००० ॥ मैं जाने होजू ललना नहीं ... न सिधारिए जहां नयो नेहरा । मुँहकी हल भलई मोहूसों करन आए जिय की जासों ताही सों. तुम विन सूनो वाको गेहरा ॥ निशिके सुखकी कहे देत अधर नैना उर नख लागे छवि देहरा। वेगि सँवारे पाँइ धारिए सूरके स्वामी नतर भीजगोपियरो पट आवतहै पिय मेहरा ॥१॥ मलार ॥ ठाढे रहो आंगनही हो पिय जोली मेहन नख शिख भीजौ । परन देहु बडी बडी बूंदै तुम चीर उतारि और वस्त्र पहिरो तव गेह देहरी पांव दीजो । कहिए बात रैनिकी सांची ता पीछे सोहैं की। जो। सुरश्याम तुमही बहु नायक देह सुधारि मोहिं छीजौ ॥२॥ मोहूसो निठुरई ठानी मोहन प्यारे काहेको आवन को सांचे । प्रीतिके वचन वाचे विरह अनल आंचे अपने गरजको तुम एक पांइ नाचे ॥ भलेहोजू जाने लाल अरगजे भीने माल केसार तिलक भाल मैन मंत्र काचे। निशि चिह्न चीन्हे सूरश्याम रति भीनेताहीके सिधारोपिय जाके रंग राच॥३॥मालकौशिकौतुम जिनि ॥ . सकचो प्यारे लाल मेरे जो त्रिय सों रति मानी ताहीके रहो अब । मैं इतनेहीमें भलो मानो प्रीत.. मजो मेरे आंगन पांव धारे आपन जवानिन तृप्त भए दरश देखतही श्रवण तृप्त भय वचन सुने तव । सूरदास प्रभु चरण छुए कहति रोम रोम पुलकित अंग भए सब ॥ ४ ॥ कान्हरो॥ नैन चपलता कहां गँवाई । मोसों कहा दुरावत नागर नागार रेनि जगाई । ताहीके रंग अरुण भए धनि यह सुंदरताई । मनो अरुण अंबुज पर बैठे मत्त भंग रस आई । उड़ेि न सकत ऐसे ।। मतवारे लागत पलक जभाइ । सुनहु सूर यह अंग माधुरी आलस भरे कन्हाई ॥ ५ ॥ बिलावल ॥ नैनकी चंचलता कहा कीन्हे भीने रंग कौनकेहो श्याम हमहूँसों कहत दुरावत । और के वदन देखिवेको नेम लियो ताके पलकान राखे भार भरे नए आवत ॥ पुहुप गंध लाभ