पृष्ठ:सूरसागर.djvu/४८१

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(३८८) सरसागर। . . इंद जनु मानहुँ समर जए॥८॥विलावलारौनि जागे अतिरस पागे अनुरागे नव त्रिय संगोमो सन्मुख कत आएहो दहन पियरसमसे नैन अटपटे वैननि तहाँई जाहु जाकेरंग ॥ विन गुन बनी माल पीक कपोलनि लाल जावक तिलक भाल कीन्हे रसवश अंगासूरदास प्रभु रजनी विहाइ आए मेरे. जीति अनंग ॥८॥बिलावल॥ भोरभए मुख देखि लजाने । रतिके केलि वेलि मुख सींचति सोभित. अरुननैन अलसान।।काजर रेख बनी अधरन पर नैनकपोल पीक लपटानोमनहुँ कंज ऊपर बैठे अलि. उडि न सकत मकरंद लोभाने।हि हियहार अलंकृत विनुगुन आइ सुरति रणजीति सयाने। सूरदास प्रभु पाइ धारिये जानतिही परहाथ विकाने ॥८६॥सारंग।। अरुण उदय वेला अरुनैन । निशिजागे अलसात श्यामधौं मोहन बोलत मधुरे वैन ।। आनन जल प्रसेव गत चलि यों आए मधुकर मधुही.. लैनावार वार रजनीमुख सीचति उमॅगि उमॅगि रस प्रीति दैन । क्रीडत सधन कुंज वृंदावन वसीवट यमुनाके छैन।सूरदास प्रभु सब विधि नागर पीवतही रस परमसचैन।।८७॥विहागरोआजु निशि कहा हुतेप्यारे । तुमरीसों कछु कहि न जाति छवि अरुण नैन रतनारे।मेचक अधर निमेप पीक रुचिसो चिह्न देखि तुम्हारे । हृदयहार विनही गुणलंकृत मृग मद मिल्यो लिलारेदशन वसन पर छाप हृदय छवि दई वृषभानु सुतारे । अरु देखो मुसुकाइ इतेपर सरवसु हरत हमारे ॥ सूरश्याम चतुरई प्रगटभई आगे ते होहु न न्यारे॥८८कहौ श्याम कहाँ रैनि गवाई।अव ए चिह्न प्रगट देखि अतहै मोसों कौन करत चतुराई ॥ लटपटी पाग अलक जो विथुरी वात कहत आवत अलसाई। तुमसों चतुर सुजान नागरी जाके रस तुम रहे लोभाई ॥ सूरदास प्रभु तहँहि सिधारो नौतन प्रीति जहां उपजाई॥८९॥अथ सुखमाके घर सखी एक आई ॥ विभास।सुनत सखी तहँ दौरि गई।सुने श्याम सुख माके आए धाई तरुणि नई ॥ कोउ निरखति मुख कोउ निरखति अंग कोउ निरखत रंग और रैनि कहूं फँग पगे कन्हाई कहति सबै करि रौर ॥ तब कहि उठी नारि सुखमा यह भाग्य हमारे आए । सूरश्याम धनि वाम तुम्हारी जिन निशिवश करि पाए ॥ ९० ॥ सारंग ॥ क्यों अब दुरत हैं प्रगट भए । कहत हैं नैन निशाके जागे मानो सरसिज अरुण नए ॥ जावक भाल नागरस लोचन मसिरेखा अधरनि जो ठए । बलि या पीठि वचन अलिसोहै विन गुण कंठ हार बनए ॥भुज ताटंक ग्रीव सोहै चंदन चिन्ह कपोल दशन ग्रसए । आलिंगन चंदन कुच चर्चित मानो द्वै शशि उरहि उए ॥ चरण सिथिल अरु चाल डगमगी घूमत घायल.समर जए। सरवत सकल अंग शोणित है श्यामा नख सायक जो दए । राजत वसन पीत उर राते. आति आतुर होइ उलटि लए । सूरसखी कैसे मनमाने सुंदर श्याम कुटिल नगए ॥११॥बिलावला माई आजु लाल लटपटात आए अनुरागे । सोभित भूषणं अंग अंग अलस भरे रैनि उनीदे जागे ॥ लटपटे शिरपेच पाग छूटे बंदन वागे । सूरश्याम रसिकराइ. रसक्श कीन्हें सुभाइ जागे जहां सोइ त्रिया बडभागे॥ ९२॥ विभास ॥ हो माई आज अनत जागेरी मोहन भोरहि मेरे की न्हो है आवन । सोभित भूषण अंग अंग आलस भरे लैलै लागे अनमिली मिलावन ॥ अब कैसे। पतिआतिही प्रीतम सांचे हो सोहनि बोलनिवाहन बातें बनावत । सूरश्याम रसिकराइ जावक चिह्न लगाइ अब आये मोहन असल सलावन ॥ ९३ ॥ सपराई ॥ आज वन्यो बन रंग पियारो। ब्रजवनिता मिलि क्यों न निहारो ॥ लटपटी पाग महाउर लागी । कुँवरि मनावति अति बड़भागी पीक कपोल अधर मसिलागे । आलसवलित सवै निशि जागे ॥ कहुँ चंदन कहुँ वंदन की छवि।। रौनि रंग अंग अंग रह्यो फबि ॥ सूरश्यामके यह छवि देखो । जीवन जन्म सफल कार लेखो॥९॥ -