पृष्ठ:सूरसागर.djvu/४९६

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दशमस्कन्ध-१० ४०३) वाग । सुन राधिका कदम विटपनकी शाखा एक अमीफल लाग ।। श्याम अरुण कछु अधिक पीत छवि वरणिजाइ नहिं अंगविभागाति सुपक्व मुरलीके परसत चुइ चुइउमगि परतरसरागावजवनि तावर वारि कनकमय रोके रहत सुधासुरनाग । तुव प्रताप छुइ सकत नसुंदरि सुर मुनि मर्कट को किल काग ॥ में मालिनि जतननि जलजुगयो सींचत सुहथ परे करदाग। सूर सुश्रम उठि भेटि पर स्पर पिउ पियूपपाए वडभागा२२॥सारंगादेखि श्यामको वदन शशि माई मोहिं अपनपोभूल्यो। वि धमान या दृष्टि सरोवर मोहन वारिज फूल्यो । करिअगाध सघन वृंदावन चंचल लता तरंग निमि मृणाल सुमृत पत्रावलि गावत मुनिजन शृंग । सुरभी सुभग हंस गोवृप मृग जलचर जीव अनंत । सूर कछू यह ह्यारी अद्भुत लीला कमलाकंत॥२३॥बिलावलाअव राधे नाहिन वजनीति । नृप भयो कान्ह काम अधिकारी उपजीहै ज्यों कठिन कुरीति ॥ कुटिल अलक ध्रुवचारुनैन मि लि सचरे श्रवण समीप सुमीति । वक्र विलोकनि भेद भेदिआं जोइ कहत सोइ करत प्रतीति।पोच पिसुन लस दशन सभासद प्रभु अनंग मंत्री विन भीति । सखि विन मिले तो नावनिऐहै कठिन कुराज राजकी ईति ॥ मंदहास मुखमंद वचन रुचि मंदचाल चरणनभई प्रीति । नख शिखते चित चोर सकलअंग जस राजा तस प्रजा वसीति ॥ तेरो तनु धनरूप महागुण सुंदर श्याम सुनी यह कीति । सोकर सूर जेहि भाँति रहे पति जिनि वल वांधि वढावहु छीति॥२४॥नटाराधे तेरे रूपकी अधिकाइ । जो उपमा दौज तेरे तनु तामें छवि नसमाइ॥ सिंह सकुचि सर व्यथा मरति दिन विन सोइ नीर सुकाइ । शशिर घटत हेम पावक परि चंपक कुसुम रहे कुम्हिलाइ ॥ इभ तूटत अरु अरुण पंकभए विधिना आन बनाइ । कट्ठजपैठि पतालदुरेरहे खगपति हरिवाहन भएजाइ ॥ सदु रयो सर दुरयो सरूरुह गज मृग चले पराइासूरदास विचारि देखिमन तोर रसन पिक रही लजाइ ॥२६॥मलार ॥ राधे तेरो रूप नआनसो ॥ सुरभी सुतपति ताको भूपण सुत घन उति तन पूजै भान सो। अमीरसाल कोकिला जु साधे अंबुज चित्त अंकुभि रामसो॥ विट्ठम अधर दशन दाडिम विज भृकुटी किए मुढानसो। सूरदास प्रभुसों कव मिलिहों सुफलरूप कल्यानसों॥२६॥सारंगा राधे यह छवि उलटि भई। सारंग ऊपर सुंदर कदली तापर सिंह ठई।।ताऊपर द्वै हाटक वरणों मोहन कुंभ म ई॥तापर कमल कमल विच विद्रुम तापर कीर लई । ताऊपर द्वै मीन चपल हैं सउती साधरही। सूरदास प्रभु देखि अचंभो कहत न परत कही ।। २७ ॥ केदारो ॥ लागो या वदनकी वलाई । खंजन तेरे खरे कटाक्षान न्याउ गुपाल विकाई ॥ का पटतरयों चंद्र कलंकी घटत बढ़त दिन लाज लजाइ।जा शशिकी तुम आरि करतही चंद्र निहारी आइटोटा जोपै खरो अटपटो बातें कहत बनाइ।सूरदास प्रभु तुम्हरे मिलनते तनुकी तपत बुझाइ॥२८॥विलावल।जिलसुत प्रीतम सुत रिपु बंधव आयुध आनन विलखभयोरी । मेरु सुतापति वसत जु माथे कोटि प्रकाश रिसाइ गयोरी.॥ मारुतसुत पति अरिपुर वासी पित वाहन भोजन नसोहाइ । हरसुत वाहन अशन सनेही मानहु अनल देह दवलाइ ।उदधिसुता पति ताकर वाहन ता वाहन कैसे समुझावै। सूरश्याम मिलि धर्म सुवन रिपु ता अवतारहि सलित वहावै ॥ २९ ॥ नट ॥ लोचन श्याम जूके सायक । नैन चितै वृपभानु नंदिनी वश करि गोकुलनायक ॥ यहै जानि पठई नँदनंदन तुम सब विधि सुखदायक । तू ब्रजनाथ शिरोमणि सजनी श्याम सुंदर पिय लायक ॥ लग लागे पागे उर अंतर कठिन शिलीमुख पायक । सूरदास प्रभुमोहन जोरी करी कुंज मनभायक॥३०॥ सारंग॥ जवते श्रवण सुन्यो तेरो नाम । तवते हा राधा हाराधा हरि इहै जु मंत्र जपत दुरि दाम ॥ वसत