पृष्ठ:सूरसागर.djvu/४९७

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(४०४) सूरसागर। . . . . . . . . निकुज कालिंदीके तट सुरभी सखा छांडि सुखधाम । विरह वियोग महायोगी ज्यों जागतही . वीतत युग याम ॥ कबहुँक किसलय पीठ सुचिर रुचि कबहुँक गान करत.गुणग्राम । कबहुँक लोचन मंदि मौन चित चिंतत अंग अंग अभिराम ।। तर्पण नैन हृदय होमत हवि मन वच क्रम और नहिं कामातरफत नैनहु देत मनोहर ब्रह्मभोज बोलत विश्राम । सूरश्याम कृष गात सर्व हि विधि दरशनदै पुरवै पियकाम ३१॥अडानोमोहन नीकोरी अति नीकोतासों नरूसन कीजै हितकै मनाइ लीजै हँसत हँसत दूरि करै न रिसजीको ॥अतिहि मानिनी जे जे जेऊ मैं मनाइ दई अतिहि कठिन हठ देख्योरी तो त्रीको।दूसरी यामिनि गई त्यों त्यों तू हठीली भई सूर निरखि मुख देखौ प्यारी पीको॥३२॥ विहागरो। और सखी इक श्याम पाई । हरिको विरह देखि भई व्याकुल मान मनावन आई ॥बैठी आइ चतुरई काछे वह कछु नहीं लगार । देखतिहौं कछ और दशा तुव बूझति वारंवार ॥ मन मन खिझति मानिनी याको कौने इहां. पठाई । सूर सबन कछु मान मनायो सो सुनिकै इह आई॥३३॥विहागरो॥अजहूं मान तजत नहिं प्यारी।मदन नृपतिके सैन सा जिकै घेरे आनि विहारी ॥ इतने कटक देखि मनमोहन भीत भए भए भारी । कुसुम बाण जित तितते छूटत खगरव घटा सवारी ॥ पल्लव पटनिसान भँवरा भर मंजरीस ललसाटी । सूरदास प्रभुके सहायको उठि चलि वेगि हकाटी॥ ३४ ॥ सारंग ॥ वेगि चलौ बलि कुँवरि सयानी । समय वसंत विपिन. रथहँगै मदन सुभट नृप फौज पलानी ॥ चहुँ दिशि चांदिनि निशा चंचली मनो धवल धरे धूरि उडानी । सोरहकला छपाकरकी छवि सोभित शीश छन शिरतानी ॥ वोलति हँसति चपल वंदीजन,मनहु प्रशंसत पिक वर वानीः । धीर समीर रटत पर अलिगण मनहुँ कमोदिक मुरलि मुठानी। कुसुम शरासन अधिक विराजत कठिन मानगढ अति अभिमानी । सूरदास प्रभुकीहै यह गति करहु सहाय राधिका रानी ॥३५॥ मलार ॥ सुनरी सयानी त्रिय रूसिवेको नेमलियो पावस दिनन कोउ ऐसौहै करतरी । दिशिदिशि घटा उठी मिलिरी पियासों रूठी निडर हियो है तेरो नेक न डरतरी । चलिएरी मेरी प्यारी मोको | मान देनहारी प्राणहूते प्यारेपति धीर न.धरतरी । सूरदास प्रभु तोहिं दियो चाहै हित चित हँसि क्यों न मिलै तेरो नेम है टरतरी॥३६॥सेजरचि पचि साज्यो सपन कुंजनिकुंज चित चरणन लाग्यो छतियां धरकि रही । हाहाचल प्यारी तेरो प्यारो चौकि चौंकि परै पातकी खरक पिय हियमें खरकरही ॥ वात न धरत कान तानति है भौंहवान तऊ न चलति वाम अंखिया फरक रही। सूरदास मदन दहत पिय प्यारी सुनि ज्यों ज्यों कह्यो त्यों त्यों वरु उतको सरकिरही ॥३७॥ तूतो मोसों बात न कहति माई चलोगी कहांते । काहेको गहरु कीजै बिन थर कहा. लीजै दीजै. जाइ उत्तर मैं आईहौं जहांते ॥ अनोखी मानिनी नई यह पाहन पूतरी भई वैनन वदति और जरति नहातेआई हौं शपथ खाइ जात न परत पाँइ सूरदास प्रभु नवल पहाते.॥३८॥रंगा,उतते वे पठवत इतते ए नहिं मानत हौं तौ दुहुनि विच चकडोरी कीनी । क्रोध भेष मुख सुदेश नैनन छवि नकहि आवै आतुरकै उठिधाइ. रावरेलीनी, ॥ तामरस लोचन हाव भाव विन करै माने नमानिनी मान रंगभीनी।सूरजप्रभु राइ शिरोमणि आपुहि. चलि देखो क्योंन नायका नवीनी॥३९ हो पिय रीझि आइ गइही मान छुडावन पिय रीझि. आइ। ऐसी छवि राजत है माँपै सोवरणीनहि. जाइ॥ आपुन चलिए वदन देखिए जौली रहै निठुराइ । सुरश्याम प्यारी आति राजति रावरीयः | दुहाइ॥४०॥कल्याणा। मैं तुम्हें हँसत खेलत छांडिगई अब न्यारे अनवाले रहे दोजाइत तुम रूखे है - - - -