पृष्ठ:सूरसागर.djvu/५१३

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(४२०.) .. सूरसागर। भयोमंदातमचर खगरोर अलि करें तब सोर वेगिमोचन करहु शुभगल फंदाउठहु भोजन करहुशिशु. खौरि उतारि धरहु जननी प्रति देहु रूप निजफंदत्रियन दधिमथन करहिं मधुर ध्वनि श्रवणसुनि कृष्ण गुण विमल यश करत आनंद। सूर प्रभु हरिनाम उधारत जगजीवन गुण कौन देखिछकित भयो छंद।।१९॥बिलावलाजागिए गोपाल लाल ग्वाल द्वार ठाढेरैनि अंधकार गयो चंद्रमामलीन भयो तारा गण देखियत नहिं तराण किरणि वाढेमुकुलित भए कमल जाल गुंज करतगमाल प्रफुलित वन पुहुप डार कुमुदिनि कुँभिलानी । गंधर्व गुण गान करत स्नान दान नेम धरत हरत सकल पाप वदत विप्र वेद वानी ॥ बोलत नंद पार वार मुख देखें तुव कुमार गाइन भई बड़ीवार वृंदाव न जैसे । जननी कहति उठो श्याम जानत जिय रजनि ताम सूरदास प्रभु कृपालु तुमको कछु खैवै ॥२०॥रसोई वर्णन। भोजन भयो भावते मोहन । तातोइ जेइ जाहु गो गोहना खीर खांड खीचरी सवारी। मधुर महोर सो गोपन प्यारी॥ राइ भोग लियो भात पसाई । मुंग ढरहरी हींग लगाई सदमाखन तुलसी दैतायो । पिरत सुवास कचोरा नायो ॥ पापर वरी अचार परम शुचि । अदरख अरु निबुवन है है रुचि॥सूरन करि तरि सरस तरोई। सोम सींगरी छमार्क झोरई॥ भरता भँदा खटाई दीनी। भाजी भली भाँति दश कीनी ॥ साग चना सँग सब चौराई । सोवा अरु सरसों सरसाई ॥ वथुवा भली भाँति रचि राँध्यो । हींग लगाइ राइ दधि साँध्यो । पोई पर वर फाँग फरी चुनि । टेंटी टेंट सछोलि कियो पुनि ॥ कुंदुरु और ककोरा कौरे । कचरी चार चचे डा सौरे ॥ बने बनाई करेला कीने । लोन लगाइ तुरत तलिलीने ॥ फूले फूल सहीजन छौके । मनरुचि होइ नाजुके औके ॥ फूल करील कली पाकर नम । फली अगस्त्य करी अमृत सम.॥ अरु यहि अंबिली दुई खटाई । जेवत पटरस जात लजाई ॥ पेठा बहुत प्रकारन कीने । तिनसों सबै स्वाद हरि लीने ॥ खीरा राम तरोई तामें । अरुचिं नरुचि अंकुर जिय जामें ।। सुंदर रूप रतालू रातो । तरि करि लीन्हो अवहीं तातो ॥ ककरी कचरी अरु कचनारयो । सुरसनिमो ननि स्वाद सवारयो । कैयो भांति केरा कार लीने । दै करवंदा हरादि रंग भीने ॥ वरवरील अरु वरा बहुत विधि । खारे खाटे मीठे हैं निधि ॥ पानौरा राइता पकोरी। उभकौरी मुंगछी सुठि सौं री॥अमृत इड हर है रस सागर । वेसन सालन अधिकौ नागर ॥ खाटी कढी विचित्र बनाई। बहुत वार जेंवत रुचि आई । रोटी रुचिर कनकबेसन करि। अजवाइनि सैंघौ मिलइ धरि ॥ अवाह अगाकार तुरत बनाई। जे भजि भाज ग्वालन सँगखाईमॉडे मॉडि दुनेरो चुपरे । वह घृत पाइ आपुहीउखरे ॥ पूरि सपूरि कचौरी कौरी । सदल सुउज्ज्वल सुंदर सौरी ॥ लुचई ललित लापसी सोहै । स्वाद सुवासु सहज मनमोहै ॥ मालपुआ माखन मथि कीन्हे । ग्राह ग्रसित रवि सम रँग लीन्हे ॥ लावन लाडू लागत नीके । सेव सुहारी घेवर पीके ॥ गोझा गूंदे गाल मसूरी । मेवा मिलै कपूरन पूरी॥ शशिसम सुंदर सरस अंदरसे। ऊपर कनी अमी जनु वरसे ॥ बहुत जलेव जलेबी वोरी । नाहिन घटत सुधाते थोरी ॥ देखत हरष होत है समी। मनहु बुदबुदा उपजत अमी ॥ फेनी घुरि मिसि मिली दूधसँग । मिश्री मिश्रित भई एक रँग ॥ साज्यो दही अधिक सुखदाई। ता ऊपर पुनि मधुर मलाई.॥ खोवा खोइ. ऑटिह राख्यो । सुहे मधुर मीठे रस चाख्यो । वासौंधी सिखरनि आत सोधी । मिलै मिरचः मेटत चकचौंधी ॥ छाँछ छवीली धरी धुगारी । झरहैं उठत झारकी न्यारी ।इतने जतन यशोदा | कीन्हें । तब मोहने बालक सँग लीन्हें ।बैठे आइ हँसत दोउ भैया । प्रेम मुदित परसतिहे मैया ॥.