पृष्ठ:सूरसागर.djvu/५१८

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दशमस्कन्ध-१० (४२६). मुखपर मंडित नटवर रहे भेपधरे आवत छवितो सूरदास प्रभुकी छवि ब्रजललना निरखि थकित तन मन न्यवछावरि करति आनंद वरते॥ १२ ॥ गौरी ॥ ब्रजको देखि सखी हरि आवत । कटि तट सुभग पीतपट राजत अद्भुत भेप बनावत ॥ कुंडलतिलक चक्र रज मंडित मुरली मधुर बजावत । हँसि मुमुकानि नेक अवलोकनि मन्मथ कोटि लनायत ॥ पीरी धोरी धुमरी गोरी लले नाम बोलायत । कबहुं गान करत अपने रुचि करतल ताल बजावत ॥ कुसु मित दाम मधुप कल कुंजत संग सखा मिलि गावत । कबहुँक नृत्यकरत कौतूहल सप्तक भेद दिसावत ॥ मंद मंदगति चलत मनोहर युवतिन रस उपजावत । आनंदकंद यशोदानंदन सूरदास । मनभावता॥५३॥ गौरीकमलसुख सोभित सुंदर वेनु। मोहनराग वजावत गावत आवत चारें धेनु॥ कुचितकेश सुदेश पदनपर जनु साज्यो अलिसनासहि न सकति मुरली मधु पीवति चाहत अपनो ऐनु ।। भ्रुकुटि मनो कर चाप आपलं भयो सहायक मैनु । सूरदास प्रभु अघर सुधा लगि उपज्यो कठिन कुचनु ॥६॥ पेन्दारोगा नेनन निरखि हरिको रूप । मन बुद्धिदै मुख चिते माईकमल अयन अनूप।कुटिल केश सुदेश भलिगण नेन शरद सरोजामकरकुंडल किरणिकी छवि दुरत पियत मनो न । अरुन अधर कपोल नाशा सुभग ईपद हास । दशन दामिनि जलद नवशशि भ्रुकुटि पदन विशाल|अंग अंग अनंग जीते रुचिर उर वनमालासूर सोभा हृदय पूरण देत सुख गोपाल||१६॥ 1. मंदारो ॥ हरिको बदन रूपनिधान । दशन दाडिम वीजराजत कमलकोशसमान ॥ नैन पंकज रु चिर हगदल चलन मोहन वान । मध्यश्याम सुभज्ञमानो अलिः वेठो आन || मुकुट कुंडल किरनि करननि किय फिरनकी हान । नासिका मृगतिलक ताकत चिबुक चित्त भुलान । सुरके प्रभु निगमवाणी कोन भांति वसान५६॥नया माधोजूके वदनकी सोभा । कुटिल कुंतल कमल प्र तिमनों मधुपरस लोभा ॥ भुकुटि इमि नवकंन पारस सहशचंचल मीन । मुकुट कुंडल किरनि रवि छवि परस विगसित कीन । सुरभिरेणु पराग रंजित मुरलि ध्वनि अलिगुंज । निरखि सभ ग सरोज मुदित मराल सम शिशपुंज ॥ दशन दामिनि वीच मिलि मनो जलद मध्य प्रकाश । गायत्त निगम वाणी नति क्या कहि सके सूरजदासारणानगादेखिरी देख मोहन वोर श्याम सुभग सरोज आनन चारु चित्त चकोर ॥ नील तनु मनु जलदकी छवि मुराल सुर घनघोर । दशन दामिनि खसत वसननि चितवनी झकझोर ॥ श्रवण कुंडल गंड मंडल उदित व्यों रवि भोर । वरहि मुकुट विशाल माला इंद्रधनु छवि थोराविनयातु चित्रित भेप नटवर मुदित नवल किसोर। सुरश्याम सुभाइ आतुरचितं लोचनकोर ५८॥फल्याण। माधोजूके तनुकी सोभा कहत नाहि पनि मा । अचवत आदर लोचन पुट दोउ मनु नहि तृपिता पासपन मेघ अति श्याम सुभग वपु तडित वसन वनमालाशिर शिखंड वनधातु विराजत मुमन सुरंग प्रवाल/कछुक कुटिल कमनीय सघन अति गोरज मंडित केश । अंबुज रुचिर पराग पर मानो राजत मधुप सुदेश ॥ कुंडल लोल कपोल किरिणि गण नेन कमल दल मीन । अधर मधुर मुसकानि मनोहर करत मदन मन हीन प्रति प्रति अंग अनंग कोटि छवि सुनसखी परम प्रवीनासूर दृष्टि जहँ जहँ पर तितही नहीं रहति है लीना॥२९॥मीर। इहे कोड जानरी । वाकी चितवनि में कि चंद्रिका किधी मुरली माझ ठगोरी। देखत सुनत मोहि जा सुर नर मुनि मृग और सगोरी । अरी माई जवते दृष्टि परे मन मोहन गृह मेरो मन न लग्योरी सूरक्ष्याम बिनु छिन नरहो मेरो मन उन हाथ पगोरी॥६०॥फल्याणालालके रूप माधुरी ननन निरसी नेक सखीरी । मनसिज मन हरनही सावरो सुकुमार राशि नख शिख - -