पृष्ठ:सूरसागर.djvu/५२५

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...".: . (४३२) .. सूरसागर। य। भरि अरगजा अबीर कनक घट देति शीशते नाय ॥ छिरकति सखी कुमकुमा केसरि भरकति वंदन धूरि । सोभित हैं मनो शरद समय धन आएहैं जल पूरि॥दशहू दिशा भयो परि पूरण सूर सुरंग प्रमोदासुरवनिता कौतूहल भूली निरखति श्याम विनोद॥१९॥आसारी यमुनाकेतट खेलति हार सँग राधा सहित सव गोपीहो। नंदको लाल गोवर्धन धारी तिनके नख मणि ओपी हो ॥ चलहु सखी जैये तहां छिन जियरा नरहायहो । वेणु शब्द मन हरिलियो नाना राग बजाइहो ॥ सजल जलद तनु पीतांबर छवि करमुख मुरली धारी हो । लटपटी पाग वने मनमोहन ललना रही निहारिहो । नैन सैन सों नैन मिले करसों कर भुजा ठये हरि ग्रीवाहो । मध्यनायक गोपाल विराजत सुंदरताकी सीवाहो ॥ करत केलि कौतूहल माधव मधुरी वाणी गावैहो । पूरणचंद्र शरदकी रजनी संतन सुख उपजावैहो ॥ सकल शृंगार कियो ब्रजवनिता नख शिख लोभलटा नीहो। लोक वेद कुल धर्म केतकी नेक न मानत कानी हो ॥ बलि जाउँ बलके वीर त्रिभंगी गोपिनके सुखदाईहो। सकल व्यथा जु हरी या तनुकी हरि हँसि कंठ लगाईहो । माधव नारि नारि माधवको छिरकत चोवा चंदनहो ॥ ऐसो खेल मच्यो उपरापरि नँदनंदन जगवंदनहो । ब्रह्मा इंद्र देव गण गंधर्व सबै एक रस वरपैहो । सुरदास गोपी वड भागी हरि सुख क्रीड़ा करपैहो।२४००॥गौरीगा मानो व्रजते करभी चली मदमातीहो।गिरिधर गजपै जाइ ग्वारि मदमातीहो । कुल अंकुश मान्य नहीं मदमातीहो । अवगाहै यमुना नदी मदमातीहो । करति तरुनि जलकेलि ग्वारि मदमातीहो ॥ चहुँ दिशते मिलि छिरकही मदमा तीहो । वृंदावन वीथिनि फिरै मदमातीहो ॥ संग मदन गजपालि ग्वारि मदमातीहो। कबहुँ नैन कर दै मिलै मदमातीहो ॥ तैसीये गजगति चाल ग्वारि मदमातीहो। नागबेलि सलकी चरै मद मातीहो ॥ मादक मांझ कपूर ग्वारि मदमातीहो ॥ सुगंध पुढे श्रवणन चुवै मदमातीहो । मंडित मांग सिंदूर ग्वालि मदमातीहो । केसरि लाए तानिकै मदमातीहो । घुघरू घंट घुमाइ ग्वालि मद मातीहो ॥ ऊपर कुच युग घंटसो मदमातीहो । मुक्तामाल तुराइ ग्वालि मदमातीहो ॥ अंग अंग छिरकै श्यामको मदमातीहो । कुमकुम चंदन गारि ग्वारि मदमातीहो ॥ सूरदास प्रभु क्रीडहीं मदमातीहो। सँग गोकुलकी नारि ग्वारि मदमातीहो॥१॥ काफी| खेलत आति रसमसे रंगभीनेहो। अति रसकेलि विशाल लाल रंगभीनेहो । जागत सब निशिगत भई रंगभीनेहो । भले कान्ह भले आए प्रातलाल रंगभीनेहो । बोलत बोल प्रतीतिके रंग भीनेहो ॥ सुंदर श्यामल गात लाल रंग भीनेहो । अति लोहित हगरंगमगे रँग भीनेहो ॥ मानो भोर भए जलजात लाल रंग भीनेहो । पिये. अधर मधुपान मत्त रंग भीनेहो । कहत कहूँकी कहूँ वा लाल रंग भीनहो । केश सिथिल वरवेश सिथिल रंगभीनेहोशशि मुख सिथिल अँभात लाल रंगभीनेहो।चाल सिथिल भुवभाल सिथिल रंग. भीनेहो ॥ अंग अंग अलसात लाल रंगभीनेहो । सकुचतहो कत लाडिले रंगभीनेहो ॥ दुरत न उर नख गात लाल रंगभीनेहो । सूरदास प्रभु नँद किसोर रंगभीनेहो।बहुनायक विख्यात वंगाल्याभातियस्याअलिकपटलकेशीतरशिर्नितांतं भर्तुःसंतप्तिहंत्रीमलयजरचितंसर्वदेहेमलेपम् ॥ शुक्लंबासोदधत्यात्यतरुणतनुमदा .. लस्यमत्तेभगत्यायुष्माकंसामुदेस्तायुवजनहृदयानन्दकर्ताकटाक्षः १.॥वस्त्रज्योतिसमानसुंदररदारवान्वितकुंडलेवाह्वोर्मुक्तिकरनहारह' दयस्तत्तुंडलेकर्णयोःानानापुष्पसुवासवासिततनुःपीतांशुकैरावृतःसंगीतेनविचक्षणोदिविषदांसमोहनाकानरः॥रागंकानर ॥ १ ॥ श्यामांगीमुकुरकरणद्धतीहारंगलेमौक्तिकताटंकान्वितकर्णकंकणकरादिव्यांबरैःसंयुता॥रंभायापनकाननेषुरमतीत्वध्यापयंतीशुकमा सावर्य पिकिन्नरैरपिसुरैगीतानिशांतेदिवि ॥ राज्ञीआसावरी ॥