पृष्ठ:सूरसागर.djvu/५२७

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. सूरसागर। . . . . REAMPIES रंगभीजी ग्वालिनि ॥ कूजित कोकिल हंस कीर नैन सलोनरी रंगराची ग्वालिनि । अति नृत्य करत अलि कुल मिले रंग भीजी ग्वालिनि ॥ आनंद अधीर नैन सलोनरी रंगराची ग्वालिनि ॥ चढिविमान सुर देखही रंगभीजी ग्वालिनि । देहदशा विसराइ नैन सलोनरी रंगराची ग्वालिनि ॥ राधारसिक रसज्ञहो रंगभीजी ग्वालिनि।सूरदास बलिजाइ नैन सलो नरी रंगराची ग्वालिनि॥६॥गौरीगाखेलत हो हो हो होहोरी अतिसुख प्रीति प्रगट भई उत हरि इतहि राधिका गोरी।हो हो हो हो होरी बाजत ताल मृदंग झांझ डफ विच विच बाँसुरी ध्वनि थोरी ॥१॥ गावत दैदै गारि परस्पर उत हरि इत वृषभानु किसोरी । मृगमद साखजवाद कुमकुमा केसरि मिलै मिलै मथि घोरी॥२॥ गोपी ग्वाल लाल सब समूह गुलाल उडावत मत्त फिरें रतिपति मनो धौरी। भरति रंग रति नागरि राजात मानहु उमाँग बिलावल फोरी ॥३॥ छुटिगई लोकलाज कुलसंका गनत न गुरु गोपिनको कोरी । जैसे अपनेमें रमतेमें चोरभोर निरखत निशिचोरी॥४॥ उन पटपीत किए रंग राते इन कंचुकी पीत रँग वोरी । रही न मन मर्याद अधिक रुचि सहचरी सकति गांठि गहि जोरी॥५॥वरणी नजाइ वचन रचना रचि बहु छवि झक झोरा झक झोरी सूरदास शारदा सुसरलमति सो अवलोकि भूमि भई भोरी॥६॥६॥ गूजरी॥ ब्रजकी वीथिन वीथिन डोलत । मदन गोपाल सखा सँग लीने हो हो हो लै वोलताताल मृदंग वीन डफवांसुरी वाजत गा. वत गीत । पहिरे वसन अनेक बरन तनु नील अरुन सित पीत ॥ सुनि सव नारि निकसि गढी भई अपने अपने द्वार। नवसत साजे प्रफुलित आनन जनु कुमुदिनी कुमारः॥ चपल नैन अति चतुर चारु तुम जनु फुलवारी लाई। देखतही नँदनंद परमसुख मिलत मधुप लौं धाई ॥ राखत गहि भुजबल चहुँ दिशि जरि अति रिस मुँह अकुलात । मानहु कमल कोश अलि अंतर भँवर भ्रमत वन प्रात।छांडतिभरि भायो अपनो करि राजत अंग विभागामानहुँ उडि वचलेहैं अलि कुल आश्रित अंग पराग ॥ अंतर कछु नरह्यो तेहि अवसर अति आनंद प्रमाद । मानहु प्रेम समुद्र सूर सुख लै उपटित मर्याद ॥७॥ ऊंचोसो गोकुल नगर जहँ हरि खेलत होरी। चल सखी देखन जाहिं पिया अपनेकी चोरी ॥ वाजत ताल मृदंग और किन्नरकी जोरी। गावति दैदै गारि परस्पर भामिनि भोरी॥ बूका सुरंग अवीर उड़ावत भरि भरि झोरी। इत गोपिनको झुंड उतहि हरि हलधर जोरी । नवल छवीले लाल तनी चोलीकी तोरी। राधाचली रिसाइ ढीठ सों खेलेकोरी॥ खेलतमें कैसो मन सुनहु वृषभानु किसोरी। सूरसखी उर लाइ हँसति भुजगहि. झकझोरी॥८॥ रागपूरवी ॥ ऐसीको खेलै तोसोहोरी। बार बार पिचकारी मारत तापर वांह मरोरी॥ नदबाबाकी गऊ चरावो हमसों करो वरजोरी । छाक छीनि खातहै. ग्वालनकी करतरहे माखन दधि चोरी ॥ चोवा चंदन और अरगजा अबिर लिये भरि झोरी। उडत गुलाल लाल भए बादर केसरि भरीहै कमोरी ॥ श्रीवृंदावनकी कुंजगलिनमें गावो मुरली राधा गोरी । सूरदास प्रभु तुम्हरे दरशको चिरजीवो यह जोरी॥९॥ सारंग ॥ निकसि कुंवर खेलन चले रंग हो हो होरीमोहन नंदकुमार लाल रंग हो हो होरी।कंचन माट भराइकै रंग होहोहोरी । सोंधैभरी कमोरी लाल रंग हो हो होरी ॥ झांझ ताल सुरमंडरे रंग हो हो होरी। बाजत मधुर मृदंग लाल रंग होहोहोरी।तिनमें परम सुहावनी रंग हो हो होरी। महुवरि बाँसुरी चंग लाल रंग होहोहोरी खेलत रँगीले लालजू रंग. होहोहोरी गए वृषभानुकी पौरिलाल रंग होहोहोरी॥जेब्रजहुती किसोरि लाल रंग हो होहोरी । ते सब आई दौरि लाल रंगहो होहोरी।सखियन सुख देखनकारने रंग हो हो होरीगांठि दुहुनकी जोरि