पृष्ठ:सूरसागर.djvu/५२८

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दशमस्कन्ध-१० लाल रंग हो हो होरी ॥ जोपै फगुवा दियो न जाय रँग हो हो होरी । श्रीराधाजूके लागो पाँइ लाल रंग हो होहोरी।यह सुख सबके मनवसो रंग होहोहोरी। सूरदास बलि जाइ लाल रंगहोहोहोरी॥ ॥१०॥ सारंग ॥ करलिए डफहि वजावे होहो सनाक खेलार होरीकी । संग सखा सब बनि पनि आवत छवि मोहन हलधर जोरीकी ॥१॥ ताल मृदंग बजावत गावत आवत ध्वनि मुरली थोरीकीलाल गुलाल समूह उडावत फेटकसे अवीर झोरीकी।खेलत फाग करत कौतूहल मत्तफि रेमन्मथ धारीकी । वरन वरन शिरपाग चौतनी कछिकटि छवि चंदन खौरीकी ॥२॥ उतहि सुनति वृपभानु सुता लेय तरुनी बोलि सब दिन थोरीकी । नीलांवर कंचुकी सुरंगतनु अति राजति राधा गोरीकी॥ मनो दामिनि घन मध्य रहति दुरि प्रगट हँसनि चितवनि भोरीकी । नखशिख सजि शृंगार व्रज युवती तनडडिया कुसुमी वोरीकी ॥३॥ पानभरे मुख चमकत चौका भालदिये वेदी रोरीकी । कनक कलस कोटिक भरि लीन्हे भारफूले रंग रंग घोरीकी ॥ युवति वृंद व्रजनारि संगलै जाइ गहनि जकी खोरीकी । घरघरते धुनि सुनि रठि धाई जे गुरुजन पुरजन चोरी की ॥ ४॥ हाथनलै भरि भार पिचकारी नानारंग सुमन तोरीकी ॥ कोउ मारति कोउ दाँउ निहाराति अरस परस दौरा दौरकी। उतहि सखा कर जेरी लीन्हें गारी देहि सकुच तोरीकी। इतहि सखी कर वांस लिए विच मारु मची झोरा झोरीकी ॥५॥पाछे ते ललता चंद्रावलि हरि पकरे भुजभरि कौरीकी । ब्रजयुवती देखतहीं पाई जहाँ तहाँ सब चहुँ ओरीकी ॥ इक पट पीतांवर गहि झटक्यो एक मुरलि लई कर मोरीकी । इक मुखसों मुख जोरि रहति इक अंक भरति रति पति ओरीकीदातव तुम चीरहरे यमुनातट सुधि विसरे माखन चोरीकी अब हम दाँव आपनो लेहैं पाँयपरो राधागोरीकी ॥ अपने अपने मन सुख कारण सब मिलि झकझोरा झोरीकी । नीलांबर पीतांवर सों लै गांठिदई कसिकै डोरीकी ॥ ७ ॥ कनक कलस केसरि भरि ल्याई डारिदियो हरिपर ढोरीकी । अति आनंद भरी जनयुवती गावति गीत सवै होरीकी ॥ अमर विमान चढ़े सुख देखत पुहुपवृष्टि ध्वनि रोरीकी । सूरदाससो क्योंकर वरण छविमोहन राधाजोरीकी ॥८॥ ११ ॥ रागिनी श्रीहठी ॥ हरि सँग खेलन फागु चली। चोवा चंदन अगर अरगजा छिरकति नगर गली ॥ राती पीरी अॅगिया पहिरे नउतम झुमक सारी । मुखतमोर नैनन भरिकाजर देहि भावती गारी ॥ ऋतुवसंत रति आगमनायक यौवन भार भरी । देखनरूप मदन मोहनको नंददुआरं खरी ॥ कहि नजाइ गोकुलकी महिमा घर घर गोकुल माहीं । सूरदास सो क्योंकरि वरणे जो सुख तिहुँ पुर नाहीं ॥१२ ॥ राग गौरी ॥ ठाटो हो ब्रजखोरी ढोटा कौनको । लटिहि लकुट त्रिभंगी एकपद मनो मन्मथ गौनको । मोर मुकुट कछनी कसेरी पीतांवर कटि सोभ । नैन चलावै फेरि कैरी निरखि होत मनलोभ । भौंहमरे मटकिकैरी यमुना रोकत घाट । चितै मंद मुसुकाय कैरी जियकरि लेय उचाट ॥ हँसत दशन चमकाय कैरी चकचौंधीसी होति । वगपंगाति नवजलद | मेरी उरमाला गजमोति ॥ कर पिचकारी रत्न जरतरी तकि तकि छिरकत अंग। केसूके कुसु म निचोय कैरी अरु केसरिको रंग ।। फेंट गुलाल भराइ कैरी डारत नैनन ताकि । एते पर मन हरत हैरी कहा कहौं गति वाकि ॥ पुनि हाहा करि मिलतु हैरी अरु नाना रंग बनाय । नंदसुवन के रूपपररी जन सूरदास पलिजाय१३॥श्रीहठी सांवरो ढोटा कोहरीमाई जाके वारिजनैन विशाल । श्यामोबाहुचतुष्टयेनसहित पीतांवरस्तायगः शाहूयोविदधातिवाणसाहितशखंचचकंगदाम् ॥ वामगिरमणीयुतःमियतमाश्री विष्णुवत्सर्वदा ,सारंगोमववान्वितैःसुरगणैःसंस्तूयमानोनरः ॥ १ ॥ सारंग ॥ -