लाल रँग हो हो होरी॥ जोपै फगुवा दियो न जाय रँग हो हो होरी। श्रीराधा जूके लागो पाँइ लाल रँग हो हो होरी॥ यह सुख सबके मनबसो रँग हो हो होरी। सूरदास बलि जाइ लाल रँग हो हो होरी॥॥१०॥ सारंग ॥ करलिए डफहि बजावे होहो सनाक खेलार होरीकी। संग सखा सब बनि बनि आवत छबि मोहन हलधर जोरीकी॥१॥ ताल मृदंग बजावत गावत आवत ध्वनि मुरली थोरीकी। लाल गुलाल समूह उडावत फेटकसे अबीर झोरीकी॥ खेलत फाग करत कौतूहल मत्तफिरे मन्मथ धौरीकी। वरन वरन शिरपाग चौतनी कछिकटि छबि चंदन खौरीकी॥२॥ उतहि सुनति वृषभानु सुता लेय तरुनी बोलि सब दिन थोरीकी। नीलांवर कंचुकी सुरंगतनु अति राजति राधा गोरीकी॥ मनो दामिनि घन मध्य रहति दुरि प्रगट हँसनि चितवनि भोरीकी।
नखशिख सजि श्रृंगार ब्रज युवती तनडडिया कुसुमी वोरीकी॥३॥ पानभरे मुख चमकत चौका भालदिये वेंदी रोरीकी। कनक कलस कोटिक भरि लीन्हे भरिफूले रंग रंग घोरीकी॥ युवति वृंद ब्रजनारि संगलै जाइ गहनि ब्रजकी खोरीकी। घरघरते धुनि सुनि रठि धाई जे गुरुजन पुरजन चोंरी की॥४॥ हाथनलै भरि भरि पिचकारी नानारंग सुमन तोरीकी॥ कोउ मारति कोउ दाँउ निहाराति अरस परस दौरा दौरकी॥ उतहि सखा कर जेरी लीन्हें गारी देहि सकुच तोरीकी। इतहि सखी कर वांस लिए बाच मारु मची झोरा झोरीकी॥५॥ पाछे ते ललता चंद्रावलि हरि पकरे भुजभरि कौरीकी। ब्रजयुवती देखतहीं धाई जहाँ तहाँ सब चहुँ ओरीकी॥ इक पट पीतांबर गहि झटक्यो एक मुरलि लई कर मोरीकी। इक मुखसों मुख जोरि रहति इक अंक भरति रति पति ओरीकी॥६॥ तब तुम चीरहरे यमुनातट सुधि बिसरे माखन चोरीकी। अब हम दाँव आपनो लेहैं
पाँयपरो राधागोरीकी॥ अपने अपने मन सुख कारण सब मिलि झकझोरा झोरीकी। नीलांबर पीतांबर सों लै गांठिदई कसिकै डोरीकी॥७॥ कनक कलस केसरि भरि ल्याई डारिदियो हरिषर ढोरीकी। अति आनंद भरी ब्रजयुवती गावति गीत सबै होरीकी॥ अमर विमान चढ़े सुख देखत पुहुपवृष्टि जैध्वनि रोरीकी। सूरदाससो क्योंकर वरणै छबिमोहन राधाजोरीकी॥८॥११॥ रागिनी श्रीहठी ॥ हरि सँग खेलन फागु चली। चोवा चंदन अगर अरगजा छिरकति नगर गली॥ राती पीरी अँगिया पहिरे नउतम झूमक सारी। मुखतमोर नैनन भरिकाजर देहि भावती गारी॥ ऋतुवसंत रति आगमनायक यौबन भार भरी। देखनरूप मदन मोहनको नंददुआर खरी॥ कहि नजाइ गोकुलकी महिमा घर घर गोकुल माहीं। सूरदास सो क्योंकरि वरणै जो सुख तिहुँ पुर नाहीं॥१२॥
राग गौरी ॥ ठाढो हो ब्रजखोरी ढोटा कौनको। लटिहि लकुट त्रिभंगी एकपद मनो मन्मथ गौनको। मोर मुकुट कछनी कसेरी पीताँबर कटि सोभ। नैन चलावै फेरि कैरी निरखि होत मनलोभ॥ भौंहमरोरे मटकिकैरी यमुना रोकत घाट। चितै मंद मुसुकाय कैरी जियकरि लेय उचाट॥ हँसत दशन चमकाय कैरी चकचौंधीसी होति। वगपंगाति नवजलद मेरी उरमाला गजमोति॥ कर पिचकारी रत्न जरतरी तकि तकि छिरकत अंग। केसूके कुसुम निचोय कैरी अरु केसरिको रंग॥ फेंट गुलाल भराइ कैरी डारत नैनन ताकि। एते पर मन
हरत हैरी कहा कहौं गति बाकि॥ पुनि हाहा करि मिलतु हैरी अरु नाना रंग बनाय। नंदसुवन के रूपपररी जन सूरदास बलिजाय॥१३॥ श्रीहठी ॥ सांवरो ढोटा कोहरी माई जाके वारिजनैन विशाल।
श्यामोबाहुचतुष्टयेनसहितःपीतांबरस्तार्क्ष्यगः शाङ्गेयोविदधातिबाणसाहितंश खंचचकंगदाम्॥ वामगिरमणीयुतःप्रियतमाःश्रीविष्णुवत्सर्वदा सारंगोमघवान्वितैःसुरगणैःसंस्तूयमानोनरैः॥१॥ सारंग ॥