देखन आई। निरखि श्याम ब्रजनारि हरषि सब निकट बुलाई॥ सुनति नारि मुसकाय बांस लीन्हे करधाई। ग्वालन जेरी हाथ गारिदै त्रियन सोहाई॥ शिलानाम ग्वालिनी अचानक गहे कन्हाई। सखिन बोलावति टेरि दौरि आवहुरी माई॥ एक सुनत गई धाइ बीस तीसक तहाँ आई। टूटिपरीं चहुँपास घेरि लीन्हो बलभाई॥ इक पट लीन्हो छीनि मुरलिआ लई छिंडाई। लोचन काजर आंजि भाँति सो गारीगाई। जबहिं श्याम अकुलात गहति गाढ़े उर लाई। चंद्रावलिसों कह्यो गूंथि कच सौंह दिवाई॥ हाहाकरिए लाल कुँअरिके पाँय छुआई। यह सुख देखत नैन सूरजन बलि बलि जाई॥१९॥ काफी ॥ ललना प्रगट भए गुण आजु त्रिभंगी लाल ऐसे होजू। रोकत घाट वाट गृह बनहूं निवहति नहिं कोउ नारि। भली नहीं यह करत सांवरे हमदेहैं अब गारि॥ फागुन में तो लखत नकोऊ फवति अचगरी भारि। दिनदशगए दिनादश औरे लेहु साध सब सारि॥ पिचकारी मोको जिन छिरको झरकि उठी मुसकाइ। सासु ननद मोको घर वैरिनि तिनहि कह्यो कहाजाइ॥ हाहाकरि कहि नंददोहाई कहा परी यहवानि। तासों भिरहु तुमहि गोलायक इह हेरनि मुसकानि॥ अनलायक हमहैं की तुमहौ कहौ न बात उघारि। तुमहूं नवल नवल हमहूं हैं बड़ी चतुरहो ग्वारि॥ यह कहि श्याम हँसे वाला हँसी मनही मन दोउ जानी। सूरदास प्रभु गुणन भरे हो भरन देहु अब पानी॥॥२०॥ काफी ॥ अरी माई मेरो मन हरि लियो नंदके ढुटोना। चितवनमें वाके कछु टोना॥ निरखत सुंदर अंग सलोना। ऐसी छबि कहूं भई न होना॥ काल्हिरहे यमुना तट जौना। देख्यो खोरि सांकरी तौना॥ बोलत नहीं रहत वह मौना। दधिलै छीनि खात रह्यो दौना॥ घर घर
माखन चोरत जौना। बाटन घावनदेत है घौना॥ खेलत फाग ग्वाल सँग छौना। मुरली बजाइ बिसरावत भौना॥ मो देखत अबहीं कियो गौना। नटवर अंग सुभसजे सजौना॥ त्रिभुवन में वश कियो न कौना। सूरनंद सुत मदन लजौना॥२१॥ माईरी मोहन मूरति साँवरो नँदनंदन जेहि नावरो। अबहिं गए मेरे द्वारह्वै रहत कहत ब्रजगाँवरो॥ मैं यमुना जल भरि घर आवति मोहिं करि लागो तावरो। ग्वालसखा सँग लीन्हे डोलत करत आपनो भावरो॥ यशुमतिको सुत
महर ढुटौना खेलत फागु सुहागरो। सूरश्याम मुरली ध्वनि सुनरी चित न रहत कहुँ ठांवरो॥२२॥ अरी माई सांवरो सलोनो अति नंद कुँअररी। चंदनकी खौरि भाल भौंह है जब रैरी॥ कुंतल कुटिल छबि राजत झवरैरी। लोचन चपल तारे रुचिर भवरैरी॥ मकर कुंडल गंड झलमल करैरी। मनहु मुकुर बिच रवि छबि वरैरी॥ नासिका परम लोनी विंवाधर तरैरी। तहां धरै मुरलीसो नाना रंग झरेरी॥ यमुनाके तीर ग्वाल संगहि विहरैरी। अबहीं मैं देखि आई बंसीवट तरैरी॥
पिचकारी करलिए धाइ अंग धरैरी। नैनन अबीर मारै काहूसों नडरैरी॥ बातन हरत मन रांगह्वै ढरैरी। सूरजको प्रभु आली चितते न टरैरी॥२३॥ नँदनंदन आली मोहि कीन्ही बावरी। कहा करौं चित क्योहूं रहत न ठाँवरी॥ विरहत हरि जहां तहां तुहु आवरी। निशिहूं वासर आली मोको उहई चावरी॥ यमुना जल भरन जाइ इहै कार दाँवरी। गुरुजन पुरजनसों और न उपावरी॥ काफी रागिनी मुख गावै सुरली बजाइरी। ध्वनि सुनि तनु भूली अतिही सुहाइरी॥ चंदन कपूर
चरि फेंटन भराइरी। सोंधे भरि पिचकारी मारत है धाइरी॥ आतुर ह्वै चलिरी और जाइ किनि जाइरी। चित न रहत ठौर और न सोहाइरी॥ मिलि प्रभु सूरजको सकुच गँवाइरी। लाजडारि गारि खाइ कुल बिसराइरी॥२४॥ कल्याण ॥ खेलत हार ग्वालसंग फागु रंग भारि। एक मारत एक नारत
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दशमस्कन्ध-१०
