दशमस्कन्ध-१० (१३७) देखन आई । निरखि श्याम वजनारि हरापि सब निकट बुलाई ॥ सुनति नारि मुसकाय बांस 'लीन्हे करधाई । ग्वालन जेरी हाथ गारिदै त्रियन सोहाई ॥ शिलानाम ग्वालिनी.अचानक गहे कन्हाई । सखिन बोलावति टेरि दौरि आवहुरी माई ॥ एक सुनत गई धाइ वीस तीसक तहाँ आई। टूटिपरी चहुँपास घेरि लीन्हो बलभाई ॥ इक पट लीन्हो छीनि मुरलिआ लई छिंडाई । लोचन काजर आजि भाँति सो गारीगाई । जबहिं श्याम अकुलात गहति गाढ़े उर लाई। चंद्रावलिसों को गूंथि कच सौंह दिवाई ॥ हाहाकरिए लाल कुँअरिके पाँय छुआई । यह सुख देखत नैन सूरजन बलि बलि जाई ॥ १९॥ काफी ॥ ललना प्रगट भए गुण आज त्रिभंगी लाल ऐसे होनू । रोकत घाट वाट गृह बनहूं निवहति नहिं कोउ नारि । भली नहीं यह करत सांवरे हमद, अब गारि ॥ फागुन में तो लखत नकोऊ फवति अचगरी भारि । दिनदशगए दिना दश औरे लेहु साध सब सारि ॥ पिचकारी मोको जिन छिरको झरकि उठी मुसकाइ । सासु ननद मोको घर वैरिनि तिनहि कयो कहानाइ ॥ हाहाकरि कहि नंददोहाई कहा परी यहवानि । तासों भिरहु तुमहि गोलायक इह हेरनि मुसकानि ॥ अनलायक हम, की तुमही कही न वात उघारि । तुमहूं नवल नवल हमहूं हैं बड़ी चतुरहो ग्वारि॥ यह कहि श्याम हँसे वाला हँसी मनही मन दोउ जानी । सूरदास प्रभु गुणन भरे हो भरन देहु अब पानी॥ ॥२०॥ काफी ॥ अरी माई मेरो मन हरि लियो नंदके ढुटोना । चितवनमें वाके कछु टोना॥ निर खत सुंदर अंग सलोना । ऐसी छवि कहूं भई न होना ॥ काल्हिरहे यमुना तट जोना । देख्यो खोरि सांकरी तौना ॥ वोलत नहीं रहत वह मौना । दधिले छीन खात रह्यो दौना॥ घर पर माखन चोरत जौना। वाटन घावनदेत है घोना ॥ खेलत फाग ग्वाल सँग छौना। मुरली बजाइ विसरावत भौना ॥ मो देखत अवहीं कियो गौना । नटवर अंग सुभसजे सजौना ॥ त्रिभुवन में वश कियो न कौना। सुरनंद सुत मदन लजौना ॥२१॥ माईरी मोहन मूरति साँवरो नँदनंदन जेहि नावरो। अवहिं गए मेरे द्वारकै रहत कहत बजगाँवरो ॥ मैं यमुना जल भरि घर आवति मोहिं करि लागो तावरो । ग्वालसखा सँग लीन्हे डोलत करत आफ्नो भावरो॥ यशुमतिको सुत महर ढुटौना खेलत फागु सुहागरो । सूरश्याम मुरली ध्वनि सुनरी चित न रहत कहुँ गंवरो॥ २२ ॥ अरी माई सांवरो सलोनो अति नंद कुँअररी । चंदनकी खौरि भाल भौंह है जब रैरी॥ कुं. तल कुटिल छवि राजत झवरैरी । लोचन चपल तारे रुचिर भवरैरी ॥ मकर कुंडल गंड झलमल करैरी । मनहु मुकुर विच रवि छवि वरैरी ॥ नासिका परम लोनी विवाधर तरैरी। तहाँ धरै मुरली सोनाना रंग झरेरी॥ यमुनाके तीर ग्वाल संगहि विहरैरी। अवहीं में देखि आई बंसीवट तरैरी॥ पिचकारी करलिए धाइ अंग धरैरी। नैनन अवीर मारै काहूसों नडरेरीवातन हरत मन रांगढ़े ढरै री। सूरजको प्रभु आली चितते न टरैरी ॥ २३ ॥ नँदनंदन आली मोहि कीन्ही बावरी । कहा करौं चित क्योहूं रहत न ठाँवरी ॥ विरहत हरि जहां तहां तुहु आवरी। निशिहूं. वासर आली मो को उहई चावरी ॥ यमुना जल भरन जाइ इहै कार दाँवरी । गुरुजन पुरजनसों और न उपावरी ॥ काफी रागिनी मुख गावै सुरली बजाइरी । ध्वनि सुनि तनु भूली अतिही सुहाइरी ॥ चंदन कपूर चरि फेंटन भराइरी । सोधे भरि पिचकारी मारत है धाइरी ॥ आतुर है. चलिरी और जाइ किनि जाइरी । चित न रहत ठौर और न सोहाइरी ॥ मिलि प्रभु सूरजको सकुच गँवाइरी । लाजडारि गारि खाइ कुल विसराइरी.॥२४॥कल्याण।। खेलत हार ग्वालसंग फागु रंगभासिएकमारत एक नारत