पृष्ठ:सूरसागर.djvu/५३१

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(४३८) 'सूरसागर। ... एक भाजत एक गाजत एक धावत एक पारत .एक आवत मार ॥ एक हर्षत एक लरखत एककरत घातहिको लोचन गुलाल डारि सोधे ढरकावै । एकफिरत संग संग एक एक न्यारे २. विहरत टरत दाँव दीवेको वै ज्यों नहिं पावै।। एकगावत एकभावत एकनाचत एकराचत एककरत . मृदंगताल.गति जति उपजावै । एकवीणा एककिन्नर एकमुरली एकउपंग एकतुमर एक रखाव भांति सो दुरावै ॥ एक पटह एक गोमुख एक आवझ एक झालरी एक अमृत. कुंडली एक एक डफ एक करधारे। सूरज प्रभु बल मोहन संग सखा बहु गोहन खेलत वृषभानु पौरि लिए जात दारे ॥२५॥ सावेरी ॥ सुनतही वृषभानु सुता युवती सब बोलाई । आए बलराम श्याम आए तजि काम वाम धामते आतुरसात नव बनाई ।। हरपत सब ग्वाल वाल अरस परस: करत ख्याल एक मारत एक भाजत राजत वह जोरी।उतते निकसी कुमारि संग लिए विपुल नारि कोउ कोउ नव योवन भरि कोउ कोउ दिन थोरी।इत उत मुख दरश भए पिय पूरन काम कियो मानो शशि उदय भयो आनंदित चकोरी । उतजेरी धरे ग्वाल बांसन इत परी मार यह छवि नहिं वार पार सोर झोर झोरी। उत होरी पढत ग्वार इत गारी गावात ए नंद नहि जाए तुः म महरि गुणनभारी। कुलटी उनते कोहै नंदादिक मनमोहै बाबा वृषभानुकीवै सूर सुनहु प्यारी।। . ॥२६॥ काफी ॥ श्रीराधा मोहन रंग भरेहो खेल मच्यो ब्रजखोरी । नागरि संग नारि गण सोहैं श्याम ग्वाल सँग जोरी ॥ हरिलिए हाथ कनक पिचकारी सुरंग कुमकुमा चोरी । उतहि माट. कंचन रँग भरिलै आई तिरिया जोरी ॥ आतुरहै धाई. उत नागरि इतःविचले सब ग्वाल।। घेरि लई गहि खोरि साँकरी पकरे मदन गोपाल ॥ गह्मो धाइ चंद्रावलि हसिकै कह्यो भलेहो । लाल । जिनि बलकरौ रहौ नेक ठाढे जुरि आई ब्रजबाल ॥ आई हँसति कहति हरिएई बहुत करतहैं गाल । क्यों जू खबरि कही यह कीन्ही करत परस्पर ख्याल ॥ काहू तुरत आइ.मुख चूम्यो करसों छुयो कपोल । कोउ काजर कोउ वदन माडती हर्षहिं करहिं कलोल ॥ कोउ मुरली लै लगी बजावन मनभावन मुखहेरि । किनहूँ लियो छोरि पटु कटिते वारति तनपर फेरि ॥ श्रवणनलागि कहति कोउ बातें बसन हरे तेइ आए। कालिं कह्यो करिहौ कहा मेरो प्रगट भयो सो पापु ॥ कोउ नयनन सों नयन जोरिकै कहति नमोतन चाहौ । अवहीं तुम अकुलात कहाहौ जानहुगे मनलाहौ ॥ घेरि रही सरपाकी नाही करति सबै मनलह । इक बूझति इक चिबुक उठावति वशपाए हरिनाह ॥ पीतांबर मुरली लई तबहीं युवती स्वांग बनाइ । देखत सखा दूरि भए ठाढे निरखत. श्यामल जाइ ॥ नखछत छाप बनाय पठाए जानि मानि गुणयेहुः । सूरश्याम हमको जिनि विसरौ चिह्न इहै तुम लेहु ।। २७ ॥ गुंडमलार ॥ खेलत रंग रह्यो एक ओर बजसुंदरि एक ओर मोहन । बरन बरन ग्वालबने महर नंद गोप जने एक गावत एक नृत्यत एक रहत गोहन ॥ बजावत मृदंग ताल अरस परस करै विहार सोभाको बरनी पार एक एक दै सोहन कनक लकुट करन लिए धाए सब हरषि हिए एक बजललना सूरज प्रभु मन मन मिलि भोहन ॥ २८॥सारंगा हो होहोहोहोरी करत फिरत ब्रजखोरी। मोहन हलधर जोरी सुवननंद कोरीवाल सखा सँग ढोरी लिए अबीर कर झोरी ॥मारि भजत जहि जोरी दावलेत दौरी। एक गावति है धमार एक एकन देति गारि गोरी । दई सबन लाज डारि बाल पुरुष तोरी ॥ सोंधे अरगजाकी चं मची जहां तहां गलिन नोरी। बीच एक एक ऊंच नीच करत रंगझोरी ।। एक उघटत एक नृत्यत एक तान ले तोरी। उपजाइ एक दै करताल हरषि गावति है गौरी ॥ सूरदास-प्रभुको सुख