पृष्ठ:सूरसागर.djvu/५३२

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दशमस्कन्ध-१० (१३९) - - निरखि हरपि होरी । सुरललना सुरनसहित विथकति भई वौरी ॥ २९ ॥ रागनंदन ॥ वृंदावन परम सोहावनो राधे खेलें फागुवारे कन्हैया । मोहन बसिया बजावैलाननदी यमुनाके तीर वारे क न्हैया ॥ श्रवण सुनत सब धावेही झोरिन भरे अवीर वारे कन्हैया । उरमोतिनकी मालारी पहिरे रातुल चीर वारे कन्हैया ॥ ब्रजवधू सब सुंदरि श्रवणन झनकै वीर वारे कन्हैया । चोवा चंदन अरगजा छिरकै सकल शरीर वारे कन्हैया ।। एकतो राधा सुंदरी दुसरे परी अवीर वारे कन्हैया। सांकरि खोरि या व्रजकी हो भई चोवाकीही लवारे कन्हैया ॥ वृंदावनके कुंजन भई दोउ दिश भीर वारे कन्हैया । यहि विधि होरी खेलही गावै निशि दिन सूर वारे कन्हैया ॥ ३० ॥ धमार ॥ प्यारी नँदनंदन वृपभानु कुँवार सों खेलत रंग रह्यो । उडत गुलाल कुमकुमा मानो अंवर आली छाइ रह्यो । अलि सुत युग वरण्यो वंकट छवि जलसुत अधर लह्यो । खंजन मीन मुक्ताहल राज त मनों रविरथ बँचिरह्यो । हँसि मुसकात सहज स्वारथको रमनिहि रूप थह्यो । दारौं दरनि अरुन अति सोभा मनु शशि ग्रहण गह्यो ॥ गोपीग्वाल सिमटि सब सुंदरि सज्यो शृंगार नह्यो। वरपत कंचन नीर कुसुमजल मनो घनगरजि रह्यो । सखिश्यामा श्याम सबै सुखदाई सुखसागर सगरो । सूरदास प्रभु मिल्यो हो कृपाकरि जिन्हि हृदये विसरो॥ ३१ ॥ सारंग ॥ हो हो होरी खेलें रंग सों ब्रजराज कुँवर वृपभानु पौरी। सुनि मुरली डफ ताल वेणु चढि अटा अटारी दौरि दौरी ॥ जो प्यारी न्यारी छवि सों देखति जलधरको छवि अपार । घनघटा अटा मंद छटकै दै उदित चंद्र वादर विदार ॥ सो प्यारे की हितू हतीते झकझोरो खेटक झक झांकवार । भौहे मंद भेद भाव हरपै रंग अपार ॥ इक प्यारी चंदन घसि छिरके एक लिए लाला गुलाल । इक प्यारी केसरि छिरकति है भनत सूर चाल गति मराल ॥३२॥विलावल ॥ खेलत मोहन फागु भरे रंग॥डोलत सखा समूह लिए सँग॥२॥ नंदरायसों विनती कीनी । श्याम एककी आज्ञा लीनी ॥ अगणित तब पिचकारी गढाये । कंचन रतन वापै पाय॥२॥ मन सहसक केसरि लैदीनो । अमित सुगंध अरगजा लीनो ॥ गोपिन बैठि औसेरकीनो। गाइ चरावनको सँग दीनो ॥३॥ तब अनंत सखा अरु गन साजे । सकल सवारि संग लिए बाजे ॥ घर घर ध्वजा पताका वानी। तोरन वारन वासर ठानी॥४॥ अरन पचासक अवीर सवारे। वीथिन छिरकि तहां विस्तामोहन चरन धरत तहँ आवै॥ द्वारे जरि युवती मिलि गावै निरखि भरनको सब मिलि धावामोहन इतते सखा सिखावै॥नाहिं गात वस्तर नाहि राखेोभरि नीके कार मुख कछु भापे॥वैठे जहां गोप सब राजीआवत देखि सबै उठि भाजै ।। मोहनपै कोउ जान न पावै ॥ महा मत्त गजवरज्यो धावे ॥ ७॥ सब मिलि बोलत होहोहोरी। छिरकत चंदन वंदन रोरी ॥ एक घोस गोपी शरि आय । घरही में घेरे हरि जाय ॥८॥ इक भीतर इक रही दुआरे। एकजाइ लागी पिछवारे । एक इहां चहुँ दिशते घेरे । एक पैठि मंदिर में हेरे॥९॥एक लिए कर कमल विराजै । परसे किरणि कोटि शशि भ्राजै ॥ एकलिए शिरसौंधे गागरि । फेंट अबीर भरे बहु नागरि ॥१०॥ सारी सुभग काछ सब दिये । पाटेवर गाती सब हिये ॥ एकन जाइ दुरे हरि पाये । सैन देइ राधिका बताये ॥ ११॥ करति कुलाहल हरि गहि लाई । फूली ज्यों निधनी धनं पाई ॥ एक गहे कर दोऊ हरिके । हलधर देखि उतहिको सरके ॥ १२ ॥ केसरि अरु गुलाल मुखलायो। पूरनचंद्र उदयकरि आयो । पीत अरुण रंगनाये शिरते । चली धातु मानो सांवर गिरिते ॥१३॥ । एक भरे पिचकारी ताके । देत श्रवणमें नंदललाके ॥ ब्रजजन सकल सुधारस पीते । ऐसी भाँति