पृष्ठ:सूरसागर.djvu/५६१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

। Commund--- MAMALA % (४६८) सूरसागर। न विसारे । देखोरी मुष्टिक चाणूरन इनि हकारे । कैसे ये वचैनाथ सांस उरथ डारे ॥ रजक धनुष जोधा हति दंतगन उपारे । निर्दय इह कंप्स इनहिं चाहतहै मारे ॥ कहां मल्ल कहां अतिहि कोमल ए भारे ।। कैसी जननी कठोर कीन्हें जिन न्यारे । बार बार इहै कहति भरि भरि दोर तारे। सुरज प्रभु बल मोहन उरते नहि टारे।।९९गुंडमलाराबोलि लीन्हों कंस मल्ल चाणूरको कहारे करत क्यों विलम कीन्हों। वंश निवेश करि डारिहौं छिनको गारि दैदै ताहि त्रास दीन्हों । शत्रुनहीं जानि रहे अवलौं वठि जन आपनेको मारिडारौं । द्विरदको दंत उपठाय तुम लेतहै उहै वल आज काहेन सँभारौं । भली नहिं करी तुम राखि राख्यो उनहि इहै कहि तुरत वाको पठायो । कछु. क्रोध कछु त्रास कछु सोच कछु सोक करें साहस रंगभूमि आयो । परस्पर कहि सबन नृपति त्रास्यो मोहिं सुनहरे वीर अवलोचन मान्यो ॥ की मारौ की मारिडारियो दुहनिको होड सो होइ यह कहत रान्यो । निराखि दोउ वीर तनुडरे मनहि महान इहै बुधि करै ज्यों नाश कीजै। लखति पुरनारि प्रभु सूर दोउ मारिहै कहति है नृपतिपै सुयश लीजै ।। १०० ॥धनाश्री ।। कहति पुर नर नारि यह मन हमारे । रजक मारयो धनुप तोरि द्वै खंड करे हत्यों गजराज त्यों इन हुमारे।। तृषित अति नारि सबै मल्ल ज्यों ज्यों कहै लरत नहिं श्याम हम संग काहे । परस्पर मत करत मारिडारौं इनहिं लखत ए चरित दुहुँ निमिष न चाहे ॥ कहा छैहै दई होन चाहति कहा अंबहि मारत दुहुन हमहि आगे। सूर करजोरि अंचल छोरि विनवै बचें ए आजु विधि इहैं मांगे। ॥ रागकल्याण ॥ देखौरी मल्ल इनहि मारनकों लोरें । अतिही सुंदर कुमार यशुमति रोहिणि वार विलखात यह कहति सबै लोचन जलढोरै ॥ कैसेहुं ए वचैं आज पठए धौ कौन कान निठुर हियो । वाम ताको लोभही पठाए । एतौ वालक अजान देखौ उनके सयान कहाकियो ज्ञान इहां काहेको आए। कहा मल्ल मुष्टिकसे चाणूर शिला भजन कहत भुजा गहि पटकन नंद सुवन हरपैं। नगर नारि व्याकुल जिय जानत प्रभु सूर श्याम गर्व हतन नाम ध्यान करि करि वै वरपैं ॥ श्रीकृष्णवचन मल्लमति ।। गुंडमलार ॥ सुनौं हो वीर मुष्टिक चाणूर सब हमहि नृप पास नहिं जान देहौ । वरि राखे . हमहि नहिं बूझे तुमहि जगत में कहा उपहास लैहौ ॥ सवै कैहैं इहै भली मति तुम यह नंदके कुंवर दोउ मल्ल मारे । इहै यश लेहुगे जान नहिं देहगे खोजही परे अब तुम हमारे | हम नहीं करें तुम मनहि जो यह वसी कहतहौं कहा तो करै तैसी।सूर हम तन निरखि देखिए आपुको बात तुम. मनहो यह वसी नैसी ॥२॥ तोडी । जवही श्याम कही यह वानी । यह सुनिकै युवती विलखानी॥ मल्लन करयो हमहि तुम देपो । अपनो वल अपनो तनु पेषो । चितए मल्ल नंद सुत क्रोधा । काल रूप वांगी जोधा । भुजा ऐठि रज अंग चढ़ायो। गांस धरे हरि ऊपर आयो । श्याम सहज पीता म्बर बांधोहलधर निरखत लोचन आधेत चाणूर कृष्णपर पायो।भुजभुज जोरि अंग बलपायो। प्रथम भए कोमलतन ताको। शिथिल रूप मनमें लस वाकोतव चाणूर गर्व मन लीन्हों। दुर्गप्रहार कृष्णपर कीन्हों। फूलहुते अति श्रम करि मान्यो।तेहि अपने जिय मारयो जान्यो।हरण्यो मल्ल. मारि भयो न्यारो । कहनलग्यो मुख अहिर विचारो ॥ हँसत झ्याम जब देखठ ठाठे । सोच परयो तब प्राणनि गाढ़े|फिरि फिरि कहि हरि मल्ल हुकारयो । मनों कंदरते सिंह पुकारयो । हांक सुनत । सवकोउ भुलान्यो । थरथराइ चाणूर सकान्यो ॥ सूरश्याम महिमा तब जान्यो । निहचे मीचु आफ्नो आन्यो॥३॥ धनाश्री ॥ भिरयो चाणूर सों नंदसुत वांधिकटि पीत पट फेट रण रंग राजौद्धि । रद दंत कर कलित अरु भेष नटवर ललित मल्ल उर सल्लि तलं ताल वाजै ॥ पीन भुजलीन.जे ।