पृष्ठ:सूरसागर.djvu/५८७

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- भूरसागर। (१९४) मुदित मंडल भेक भेकी निगत विहंग विषाद।कुटज कुमुद कदव कोविद कनक आरि सुकंजाके. तकीकरवीर वेलउ विमल बहुविधि यंत।सपनदल किलकाल अंकृत सुमन सुकृत सुवासानिकट नैन निहारि माधो मन मिलनकी आसामनुज मृग पशु पक्षि परमित और अमित जुनाम । सुमिरि देश विदेश परिहरि सकल आवहिं धाम ॥ यह अवधि उपाउ सोचति कछु नपरै विचार । कौन हित ब्रजवास विसरयो नीक नंदकुमार ॥ परम सुहृद सुजान सुंदर ललित गति मृदुहास । चारु कुंडल लोल ललसित सुकमल विमल विशाल ॥ वैनवर बहु विधि वजावन गोप शिशु चहुँपास. सुदिन कब जब देखवी वन बहुत वाल विशाल ॥ बार पारस विरहिनी अति विरह व्याकुल होति । बात वेग विलोल ज्यों अलिदीन दीपक ज्योति ॥ सुनि सँदेश हम हृदय सूरदास कार पर तीति । दरश दै दुख दूरि कीजै प्रेमकी यह गीत ॥२॥मलाराआजु घनश्यामकी अनुहारि । उनइ आए साँवरेते सजनी देखि रूपकी आरि॥इंद्रधनुष मानो पीत वसन छवि दामिनि दशन विचारि। जनु वगपांति माल मोतिनकी चितवत हितहि निहारि ॥ गर्जत गगन गिरो. गोविंद मिसु सुनतं नयन भरे वारि।सूरदास गुण सुमिरि श्यामके विकल भई ब्रजनारि॥२५॥ कैसेकै भरिहरी दिन साव नाहरितभूमि भरे सलिल सरोवर मिटे मग मोहन आवनकोदादुर सोर मोर चातक पिक निशहि. निशांसुर पावनके । अब घन घुमाडि उमाडि दामिनि रूप मदन धनुष धार धावनके । पहिरि कुसुमासारी कंचुकी तनु झुंडनि झुंडनि गावनके । सूरदास प्रभु दुसह घटत क्यों सोक निगुण शिररावनके ॥२६॥केदारो। हरिसुत पावक प्रगट भयोरी।मारुतसुत बंधौप्रति प्रोहित ताप्रति पालन छोडि गयोरीहरसुत वाहन अशन सनेही सो लागत अँग अनल मयोरी।मृगमद स्वाद मोद नहि भावत दधिसुत आनसभान भयोरी।वारिजसुत प्रतिक्रोध कियो सखी मेटि दकार सकार लयोरी। सूरदास विनु सिंधुसुतापति कोपि समर कर चाप लयोरी॥२७॥मलार।ऐसे वादुर तांदिन आये जा दिन श्याम गोवर्धन धारयो।गरजि गरजि धन वरपन लागे मनो सुरपति निज वैर सँभारयो । सबै संयोग जुरीहै सजनी हठि कार घोष उजाग्यो।अब को सात दिवस राखैगो दूरि गयो ब्रजको रखवा. रयो।जब बलराम हुते या ब्रजमें काहू देवं न ऐसो डारयो । अव यह भूमि भयानक लागैः विधिना बहुरि कंस अवतान्यो । अब इह सुरति करैको हमारी या व्रज कोऊ नाहि. हमारयो । सूरदास अति विकल विरहिनी गोपिन पिछलो प्रेम सँभारयो ॥ २८॥ जो पैनंदसुवन : ब्रज होते। तो पै नृप पावस सुनि विनती कहत नडरती सोते ॥ अब हम अबल जानिकै सखीरीहैं गरवरथ जोते । हमपर गरजि गरजि पठवत लेत न सकल सोते ॥ सूरदास प्रभु शैलधरन विनु कहा सबै अब तोते ॥२९॥ इहां नाहिन नंदकुमार । इहै जानि अजान मघवा करी गोकुलआर ।। नैन जलद निमेष दामिनि आंसु वर्षत धार । दरश रवि शशि दुत्यो धीरज श्वास पवन अकार ॥ उरज गिरिमै भरन भारी अगम काम अपार । गरजि विकलं वियोग वाणी हरति अवधि अधार ॥ पथिक मथुरा जाइ हरि सों वात कहैं विचार । शत्रुसेन सुधाम घेरयो सूर लगहु गुहार॥३०॥मानो माई सबन इहै है भावताअब वहि देश नंदनंदन कहैं कोउ न समो जनावताधरंत नवनै नवपत्र फूल फल पिक वसंत नहिं गावत । मुदित नसरसरोज अलि गुंजत पवन पराग उड़ावत ॥ पावस विविध वरन वरवादर उडिनाहं अंबर छावत । चातक मोर चकोर सोर करि दामिनि रूप दुरावत ॥ हमपर सकल कोपकरि सजनी हठिकरि बलहि बढावत । सूरश्याम परपीर नजानत कत्त. सर्वज्ञ कहावत॥३१॥ संखी कोई नई बात सुनि आई।इह ब्रजभूमि सकल सुर