पृष्ठ:सूरसागर.djvu/५९७

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(६०४). सूरसागर। कही हमारी मानौ । विरहदाह यह सुनत बाझ है मानहु अनलहि पानौ ॥ अवहीं जाहु विकल सब गोपी योग वचन कहिपोषौ । सूर नंद बाबा जननी यशोमतिको वेगिजाइ संतोपो॥२२॥सारठाहल धर कहत प्रीति यशुमतिकी । कहा रोहिणी एतनपावै वह बोलन वह हितकी ॥ एक दिवस हरि खेलत मोसँग झगरो कीन्हो पेलि । मोको दौरि गोदकरि लीनो इनहिं दियो करटोले ।। नंद बाबा तव कान्ह गोदकरि खीझन लागे मोको।सूर श्याम न्हान्हो तेरो भैया छोह न आवत तोको॥२३॥ रामकली|यशोमति करती मोको हेत।सुनत ऊधो कहत बनत न नैनभरि भरि लेतादुहूंको कुशला त कहियो तुमहि भूलत नाहि । श्याम हलधर सुत तुम्हारे और कौन कहाहि ॥. आइ तुमको धाइ मिलि हैं कछुक कारज और । सूर हमको तुमहिं बिन सुख नहीं है कहुँ ठोर ॥२४॥विहागरो॥ श्याम कर पत्री लिखी बनाइ । नंदवावासों विनती करी करजोरि यशोदामाइ ॥ गोप ग्वाल सखन गहि मिलि मिलि कंठ लगाइ । और ब्रजनर नारि जैहैं तिनहि प्रीति जनाइ॥ गोपिकनि लिखि योग पठयो भाउ जान नजाइ । सुरप्रभु मन और यह कहि प्रेम लेत दृढाइ ॥२५॥ उपॅगसुत हाथदई हरिपाती यह कहियो यशुमति मैयासों नहिं विसरत दिन राती।कहत कहा वसुदेव देवकी तुमको हममें जाए । कंस त्रास शिशु अतिहि जानिकै ब्रजमें राखि दुराए ॥ कहै बनाइ कोटि कोउ बातें कहि वलराम कन्हाहौसूरकाज करिकै कछु दिनमें बहुरि मिलेंगे आई ॥२६॥विलावल। ऊधो इतनो कहियो जाइ। हम आचेंगे दोऊ भैया मैया जिनि अकुलाइ ॥ याको विलग बहुत हम मान्यो जब कहि पठयो धाइ।वह गुण हमको कहा विसरिहै बड़े किये पय प्याइ। और जु मिल्यो नंद वावासों | तब कहियो समुझाइ । तौलों दुखी होन नहिं पाबैं धवरी धूमरि प्याइ ॥ यद्यपि यहाँ अनेक भांति सुख तदपि रह्यो नाजाइ । सूरदास देखो व्रजवासिन तवहीं हियो सिराइ ॥२७॥आसावरी। उधो जननी मेरी को मिलिहौ अरु कुशलात कहोगे। बावा नंदहि पालागन कहि पुनि पुनि चरण गहोगे। जादिनते मधुवन हम आए शोध न तुमही लीनोहो । दैदै सौह कहोगे हित कार कहा निठुराई कीन्होहो|यह कहियो बलराम श्याम अब आवेंगे दोउ भाईहो । सूर कर्मकी रेख मिटै नाहिं यहै कह्यो यदुराईहो ॥२८॥ केदारोगाविधनाइहै लिख्यो संयोग। जो कहांते मधुपुरीआए तज्यों माखन भोग ।। कहां वै ब्रजके सखा सब कहां वै मथुरा लोग। देवकी वसुदेव सुत सुनि जननि. कैहै सोग ॥ रोहिणी माता कृपा कार उछंग लेती रोग । सूर प्रभु सुख यह वचन कहि लिखि पठायो योग।।२९॥ गौरी ॥ पाती लिखि उधो कर दीन्हीनंद यशुदहि हेतु कहि दीजो हँसि उपंग । सुत लीन्ही ॥ मुख वचनन कहि हेतु जनाये तुमहौ हितू हमारे। बालक. जानि पछै नृप डरते: तुम प्रतिपालन हारे ॥ कुविना सुन्यो जात ब्रज ऊधो महलई लियो बोलाई । हाथन पाति लिखी राधाको गोपिन सहित बड़ाई ॥ मोको तुम अपराध लगावत कृपा भई अन्यास । झुकत कहा मोपर बजनारी सुनहु न सूरजदास ॥३०॥मलार। हमपरं काहेको झुकत ब्रजनारी।साझे भागनहीं काहूको हरिकी कृपा निरारी ॥ कुविजा लिखो संदेश सबनको अरु कीनी मनुहारी । हाँतौ दासी कंसराइकी देखो हृदय विचारी ॥ फलन मांझ ज्यों करुई तोमरी रहत धुरेपर डारी । अवतो हाथ परी यंत्रीके वाजत राग दुलारी॥३१॥ गौरी ॥ ऊधो ब्रजहि. जाहु पालागौं।यह पाती राधाकर : दीजो यह मैं तुमसों मांगौं ॥ गारीदेहि प्रात उठि मोको सुनत रहत यह वानी। राजाभये जाइ नँदनंदन मिली कूवरी रानी ॥ मोपर रिस पावत काहेको वराज श्याम नहि राख्यो । लरिकाईते. बांधति यशुमति कहा जु. माखन चाख्यो । रजुलै सबै हजूर होति तुम सहित सुता वृषभान ।।