॥ आसावरी ॥ देखहिं दौरि द्वारकावासी । सुनत सकल पुर जीत रुक्मिणी लै आए यदुपति अवि नासी ॥ लेति बलाइ करत नवछावरि बलि भुन दंड कनक अति त्रासी । नर नारीके नैन निरखि
करि चातक तृपित चकोरी प्यासी ॥ कर आरती कलस लै धाई चीन्हि न परति कुलवधू दासी । देश देश भयो रहसि सूर प्रभु जरांसध शिशुपालकी हांसी२२॥ धनाश्री ॥ आवहुरी मिलि मंगल गावहु ॥ हरि रुक्मिणिहि लिये आवत हैं इह आनंद यदुकुलहि सुनावहु ॥ बांधो वंदनवार मनोहर कनक
कलस भरि नीर भरावहु । दधि अक्षत फल फूल परंमरुचि अंगन चंदन चौक पुरावहु ॥ कदली यूथ अनूप कुशल दल सुरंग सुमन ले मंडल छावहु । हरद दूब केशर मग छिरको भेरी मृदंग निसान वजाबहु ॥ जरासंध शिशुपाल नृपतिते जीतेहैं उठि अर्घ्य चढ़ावहु । बल समेत
तनु कुशल सूर प्रभु हरिआये आरती सजावहु ॥२३॥ विवाह वर्णन ॥ बिलावल ॥ छंद त्रिभंगी ॥ श्रीयादव पति व्याहन आयाधिन्य धन्य रुक्मिाणि हरि वर पाया । छंदाहरि श्याम घन तन परमसुंदर तड़ित वसन विराजई । अंग अंग भूपण सुरस शशि पूरणकला मानो भ्राजई॥ कमल मुखकर कमल
लोचन कमल मृदुपद सोहही। कमल नाभि कमल सुंदर निराखि सुर मुनि मोहही ॥१॥ सुधा सरोवर छिटकि अनूपम । ग्रीव कपोत मनो नाशा कीरसम ॥ छंद ॥ कीर नासा इंद्र धनु भू भवर से अलकावली । अधर विद्रुम वज्रकन दाडिम किधौं दशदशनावली ॥ सौर केशरि अति विराजत
तिलक मृदमदको दियो । कामरूप विलोकि मोझो वास पद अंबुज कियो ॥ २ ॥ वसुदेवनंदन त्रिभुवन मनहरन । मुकुट तरुन मनो मकर कुंडल श्रवन ॥ छंद ॥ मुकुटकुंडल जडित । हीरा लाल सोभा अतिवनी । पन्ना पिरोजा लागे विच विच चहूंदिशिलटकत मनी ॥ सेहरोशिर पर मुकुट लटक्यो कंठमाला राजई । हाथ पहुँची वीर कानग जरित मुंदरी भ्राजई ॥३॥ उर वैजंतीमाल सोभा अतिवनी । चरणन नूपुर कटतट किंकिनी ॥ छंद ॥ किंकिनी कट चरन नूपुर शब्द सुंदर कुंजही । कोकिला कल हंस वाल रसालते नहिं पुजही ॥ तुरई वाजनि वीना
ताजनि चपल चपला सेहरी । जौन जरित जराव वागहि लगे सब मुकुतासरी ॥४॥ चढ़ि यदु नंदन वनित वनाइकै । साजि वरात चले यादव-चाइकै ॥ छंद ॥ चले साजि वरात यादव कोटि छप्पन अतिवली । उग्रसेन वसुदेव हलधर करत मन मन आतितली ॥ शंख भरि निशान वाजहिं नचहिं शुद्ध सोहावनी । भाट बोलें विरद नारी वचन कहैं मन भावनी ॥५॥ सुरपति आयो संगहै शची । शुद्धमुहूरत चौरी विधिरची ॥ छंद ॥ रची चौरी आपु ब्रह्माजरित खंभ लगाइक । इंद्र सुरदारनि सहित वैठे तहां सुखपाइकै ॥ चौक मुक्ताहल पुरायो आइ-हरि बैठे तहां । निखि सुर नर सकल मोहे रहिगए जहँके तहां ॥६॥ कुंअरि रुक्मिणी कमला अवतरी । शशि पोडस कला सोभा तनुधरी ॥ छंद ॥ कुंआर शशि पोडसकलाश्रृंगार करि ल्याई अली। विविध विधि कियो
व्याह विधि वसुदेव मन उपजी रली ।। सुर पुहुप वरसैं हरपिके गंधर्व किन्नर गावहीं । शारदा नारद आदिसुयश उच्चार जयति सुनावहीं ॥७॥ विप्रगणउ दिए बहु युगुति सुरति करि । किए अयाची याचक जन बहुरि ॥ छंद ॥ दाबहुरि निज मंदिर सिधारे करी सुभद्रा आरती । देवकी पीवो वार । नीरददई अशीशा भारती ॥ युवा युवती खेलाइ कुल व्यवहार सकल कराइवो । जनन मन भयो सूर आनंद हरषि मंगल गाइबो ॥८॥ सारंग ॥ तोसों गारि कहा कहिदीनै हो यदुनंदन । जग वा नाउँ कौनको लीज हो यदुनंदन ॥ छंद ॥ वपु जगत काको नाउँ लीजै हो यदुज्ञाति गोत न जानिए । गणरूप कछु अनुहारि नाही का वखान वसानिए । सब शोधि रह्यो नशोधपायो विन सुने का ।
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सूरसागर।
