पृष्ठ:सूरसागर.djvu/७१

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(१८) सूरसागर-सारावली। . .. फूले हैं दोउभाई ।। ६०३॥ रीझतनारि कहत मथुराकी आपुसमें दैसैन । कोमल गात कौनको । टोटा सुन्दर राजिवनैन ॥ ५०४॥ यहवालक सुकुमार सरस वपु असुर प्रवल अतिभारी। कैसेके. वाको मारेंगे शोचतहैं पुर नारी ॥ ५० ॥ उपवन आय कियो हरि व्यारू नन्दराय सुख दीन्हों। मधु मेवा पकवान मिठाई जो भायो सो लीन्हों । ५०६॥ पौठेजाय दोउ शय्यापर सोवत आई निंद । स्वपन में मथुरा फिर देखी जागे वालगोविंद ॥५०७॥ भयो प्रात नृप फेर बुलायो धनुप यज्ञको देखन । मल्लयुद्ध नानाविधि क्रीडा राजद्वारको पेखन ।। ५०८॥ गये व्रजराज द्वार भूप तिके बहुउपहार दिवाये । तव नप कह्यो सकल गोपनसों भलीकरी तुम आये ॥६०९॥ बैठारे सबमंच ओपसों कौतुक देखन लागे । राम कृष्ण सँगग्वाल मण्डली नगर देख अनुराग।। ५१०॥ तोरेव धनुष ट्रककरिडारे दोउन आयुधकीने । तासु मारिकार चूर पहरुआ परममोद रसभीने ॥ ॥५११॥ मद गजराज द्वार पर ठाडो हरिकहेउ नेकवचाय । उननहिं मान्यो. सन्मुख आयो. पकरेउ पूंछफिराय ॥५१२ ॥ दियो पठाय श्याम निजपुरको मावत सहि गजराज । आगे चले सभामें पहुंचे जहँ नृप सकलसमाज ॥ ५१३ ॥ बडेबडे राजा सब वैठे अरु पुरवास: लोग । अपने अपने भाव सुदेखत मिन्यो सकल मनशोग ॥ १४ ॥ मल्लनसवन मल्लसे. दीखे नृपनलखे नृपराय । युवतिन सबै काम वपु देखे भेटनको ललचाय ॥ ५१५ ॥ गोपन सखाभाव करि देखे दुष्ट नृपति कृतदण्ड । पुत्रभाव वसुदेव देवकी देखे नित्य अखण्ड । ॥ १६ ॥ विदुष जनन विराट प्रभु दीखे अति मनमें सुखपायो । पूरण तत्त्व देख योगी जन । हितसों ध्यान लगायो ॥५१७॥ यदुकुलके कुल दीपक प्रकटे सब यादव सुखदाई । कंसदोखि निजकाल आफ्नो बहुतहि क्रोध रिसाई ॥ ६१८ ॥ जब उन कह्यो मल्लक्रीडा तुम करत गोपके संग । वृन्दावन में हम सुनियत है क्रीड़त हौ बहुरंग ॥ ५१९ ॥ अब तुम कैस: नृपतिको दिखाओ मल्लयुद्ध करिनीके । कह्यो चाणूर मुष्टि सब मिलिक जानत हौं सव जीके ॥ २० ॥ तब हरिभिरे मल्ल क्रीडाकर बहु विधि दांव देखाये । वर्णन कियो प्रथम संक्षेपन अबहूं वर्णन पाये ॥ ५२१ ॥ मुष्टिकसाथ लरे बलभाई धरेर बृहदवपुदोउ । छिनही में हरि तुरत सँहारे अतिआनंदमनहोउ ।। ५२२॥और मल्ल मारे शल तोशल बहुतगये सबभाज। मल्लयुद्ध हरि करि गोपनसों लखिफूलेब्रजराज ॥ ६२३॥ तव नृपकंस बहुत विललायो वारवार रिसयाई । बाँधो नन्द हरो गोपन धन कीन्हों कपट दुराई ॥ २४ ॥ फागुनवदि. चौदशको शुभदिन अरु रविवारसुहायो । नखत उत्तरा आप विचारेउ कालकंसको आयो । ५२५ ॥ यहकहि कूदगये हरि ऊपर जहँ वैठे नृपराय । हरिको देखि खड्ग कर लीन्हों सन्मुखं आयो. धाय ॥ ५२६ ॥ तब हरिकेश पकरि अपनेकर धरणी मांझ पछारो । ऊपर गिरे आपु तिहुँ । पुरको बोझ शीश पर डारो ॥ ६२७ ॥ कचगहि आपु बहुत वह बँच्यो हरि यमुनालौं आये। करि विश्राम सकल श्रम बीत्यो जब यमुना जल न्हाये ।।५२८॥ बंधन छोर पिता माताके स्तुति करि शिरनायो । तुम हमको पठये गोकुलमें याते लाड लडायो ॥६२९॥ यशुमति मात और ब्रजपति जू बहुतहि आनंद दीनो । याते टहल करन नहिं पायो कहत श्याम रंगभीनो ॥५३०॥ तव ब्रजराज महरपै आये बल मोहन दोउ भाई।तुम्हरी कृपा कंस मैं मारो कह लौं करौं वड़ाई : ॥५३॥रोहिणि यह वोली यशुमतिसों हम तुम्हरे सुखपायो।ज्यों तुम्हरो सुत त्यों मेरो सुत बहुतहि । लाड लड़ायो ॥५३२॥ हिल मिल चले सकल ब्रजवासी नंदगांव फिरिआयो । सुवसवसी मथुराता