पृष्ठ:सूरसागर.djvu/९४

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श्रीराधाकृष्णचद्रायनमः %3: RA PRATANTS 30मया श्रीगणेशायनमः। अथ सूरसागर। प्रथमस्कंध । रागविलावल ॥ चरण कमल वंदौं हरि राई । जाकी कृपा पंगु गिरि लधै अंधेको सब कछु। दरशाई ॥ वहिरो सुनै मूक पुनि बोलै रंक चलै शिर छत्र धराई । सूरदास स्वामी करुणामय वार बार वन्दौ तेहि पाई ॥१॥ राग कान्हरा । भक्त अंग ॥ अविगत गति कछु कहत न आवे । ज्यों गूंगे मीठे फलको रस अंतर्गतही भावे ॥ परमस्वाद सवही जु निरंतर अमित तोष उपजावे ॥ मन वाणीको अगम अगोचर सो जानै जो पावे ॥ रूप रेख गुण जाति जुगति विनु निरालम्ब मन चकृत धावे। सब विधि अगम विचारहिं ताते सूर सगुण लीला पद गावे ॥२॥भक्तवत्सलभंग । रागमारू॥