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सेवासदन
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नये, विस्तृत, अगम्य क्षेत्र में अनुपयुक्त है। वही दशा इस समय शर्मा जी की थी। अपना प्रस्ताव उन्हे कुछ व्यर्थ-सा मालूम होता था। व्यर्थ ही नहीं कभी कभी उन्हें उससे लाभ के बदले हानि होने का भय होता था। लेकिन वह अपने संदेहात्मक विचारों को प्रकट करनेका साहस न कर सकते थे; कुँवरसाहब की ओर विश्वासपूर्ण दृष्टि से देखकर बोले, जी नहीं, ऐसा तो नहीं है, हाँ आजकल फुर्सत न रहने से वह काम जरा धीमा पड़ गया है।

कुँवर-—उसके पास होने में तो अब कोई बाधा नहीं है?

पद्मसिंह ने तगअली की तरफ देखकर कहा मुसलमान मेम्बरों का ही भरोसा है।

तेगअली ने मार्मिक भाव से कहा, उनपर एतमाद करना रेत पर दीवार बनाना है। आपको मालूम नहीं, वहाँ क्या चाले चली जा रही है? अजब नहीं है कि वह ऐन वक्त पर धोखा दे।

पद्मसिंह- मुझे तो ऐसी आशा ही है।

तेगअली यह आपकी शराफत है। वहाँ इस वक्त, उर्दू हिन्दी का झगड़ा, गोकशोका मसला, जुदागाना इन्तखाब, सूद का मुआविज कानून, इन सबों से मजहबी तास्सुव के भड़काने में मदद ली जा रही है।

प्रभाकराव-—सेठ बलभद्रदास न आवेगे क्या, किसी तरह उन्हीं को समझाना चाहिये।

कुँवर-—मैंने उन्हें निमन्त्रण ही नहीं दिया, क्योंकि मैं जानता था कि कदापि न आयेंगे। वह मतभेद को वैमनस्य समझते हैं। हमारे प्रायः सभी नेताओं का यही हाल है। यही एक विषय है, जिसमे उनकी सजीवता प्रकट होती है। आपका उनसे जरा भी मतभेद हुआ और वह आपके जानी दुश्मन हो गये, आपसे बोलना तो दूर रहा आपकी सूरत तक न देखेंगे, बल्कि अवसर पायेगे तो अधिकारियों से आपकी शिकायत करेगें अपने मित्रों की मंडली मे आपके रीति व्यवहार की आचार-विचार, आलोचना करेगें आप ब्राह्मण है तो आपको भिक्षुक कहेगे क्षत्रिय हैं तो आपको उजड्ड गंवार कहेगें। वैश्य हैं तो आपको बनिये, डण्डी