पृष्ठ:सोमनाथ.djvu/११९

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विमलशाह महता की ओर ताकते ही रहे। फिर उन्होंने कहा, “महता, छोड़ो यह बात, मैंने आज ही कुछ दम्म महाराज वल्लभदेव के पास नई सेना की भर्ती करने के लिए भेज दिए हैं।” “केवल नई सेना से क्या होगा? शस्त्र भी तो चाहिए-फिर घोड़े-हाथी। जानते हो महामन्त्री, मालव-महीप भोज का गज-सैन्य तीन हज़ार है।' “जानता हूँ, पर बाणबली कितने हैं?" दामोदर ने बात टालकर कहा, “पाटन में शस्त्रास्त्र अधिक-से अधिक उत्पन्न कराने की योजना भी आवश्यक है। फिर बालुक राय भी तो सैन्य भर्ती कर रहे हैं।" “उन्हें तो एक सप्ताह हो गया। सिन्ध-सौराष्ट्र और कर्नाटक से जितने घोड़ों के व्यापारी पाटन में आए थे, सबके घोड़े उन्होंने खरीद लिए हैं। वे दम्भ माँग रहे हैं।" “सो तो माँगे होंगे।" “पर वीकण ने बड़े महाराज के कान भर दिए हैं। उन्होंने सिंहल से कुछ नये शिल्पी बुलाए हैं। कुछ बंगीय कलावन्त आए हैं, उनके लिए उन्हें दस लाख दम्म तुरन्त चाहिए।" “इसपर आज के बाद विचार होगा, अभी एक अग्रत्य की बात पर परामर्श करने आया हूँ।" "कौन सी बात?" "भस्मांकदेव गए।" "ठीक हुआ – और नान्दोल?" "वहाँ एक शस्त्रों का व्यापारी गया है।" "शस्त्रों का सौदागर?" "नान्दोलराज नई सैन्य भर्ती कर रहे हैं, उन्हें पाटन और अवन्ती, दोनों ही से निपटना है। इससे अच्छे शस्त्रों के वहाँ अच्छे दाम उठेंगे, इसीसे। फिर एक और बात है।" “क्या?" 'अर्बुदेश्वर के महाराज कुमार और नान्दोल के कुमार, दोनों ही शस्त्रविद्या के बड़े प्रेमी हैं। वह सौदागर उन्हें शस्त्र-संचालन की शिक्षा देगा। साथ ही वह संगीत से भी उन्हें प्रसन्न करेगा।" विमल ज़ोर से हँस पड़े। दामोदर भी हँसे। फिर कहा, “अब सिन्धु की बात कहो।" "उसकी क्या बात?" “वहाँ आप जाएं महामन्त्री।" “मैं?" 'सिन्धुपति हुम्मक की नस-नस से आप जानकार हैं। आपको जाना ही पड़ेगा।" “किन्तु...” “किन्तु-परन्तु पीछे, आज आपको पाटन का प्रधानमन्त्री बनना है, इसके बाद सिन्धु देखे बिना चलेगा नहीं।" "क्या कहते हो महता...' “महामन्त्री, आज मुझे बहुत काम है, आप समय पर महाराज की सेवा में उपस्थित CG "