पृष्ठ:सोमनाथ.djvu/१७५

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शत्रु निमंत्रण CG जैसा सोचा था वही हुआ। दुर्लभदेव इस ब्राह्मण की राजनीति को न समझ सका। भस्मांकदेव जनेऊ-नारियल राजकुमार को अर्पण करके अधोमुख हो बैठे रहे। राजकुमार ने ही वार्तालाप शुरू किया। “कहिए देव जी, पाटन में कुशल तो है।" "अब कुशल कहाँ महाराज, यशस्वी मूलदेव राज का संचित पुण्य क्षय हो गया, पाटन आज श्मशान हो गया। महाराज गुर्जरेश्वर और उनके खुशामदिये राजधानी छोड़ न जाने कहाँ भाग गए। बाणबली भीमदेव अपने नए रक्त के आवेश में अमीर से दो-दो हाथ करने प्रभास में जा बैठे हैं, नगरनिवासी अपनी जान-माल को लेकर जहाँ जिसका सींग समाता है, भाग रहे हैं। पाटन को महाराज, अब आपका ही आसरा है।" 'और राजकोष?" “राजकोष में एक फूटी कौड़ी भी नहीं, महाराज ने सब धवलगृह और सरोवर बनवाने तथा भांड़-भंड़ेतों में खर्च कर दी।" “और सेना?" "सेना पाटन में कहाँ है, कुछ बिगड़े-दिल अवश्य भीमदेव के साथ गए हैं, शेष सब हल जोत रहे हैं। उन्हें न वेतन, न शस्त्र, न उनके पास अश्व, न उनका कोई नायक।" “और बालुकाराय?" "बालुकाराय क्या और दामोदर महता क्या सब बाणबली के गीत गाते हैं। सुना है, वे सब भी उन्हीं के साथ हैं।" “आपको किसने मेरे पास भेजा है?" “नगरजनों ने, उनके घर-द्वार अरक्षित हैं। मैंने बड़ी ही कठिनाई से उन्हें रोका है। अब सबकी आशा-दृष्टि आप ही पर है।" “मैं क्या कर सकता हूँ, यह तो राजा का काम है।" “अब आप ही हमारे राजा हैं महाराजाधिराज।" 'और वल्लभ?" “उनका तो कहीं पता ही नहीं है, सुना है, वे साधु होकर मरुस्थली में रणाथम्मी माता के थान पर तपने चले गए हैं।" "तो यों कहो, गुजरात का कोई धनी-धोरी ही नहीं है।" “ऐसा मैं कैसे कहूँ, जब कि अभी चालुक्य कुलकमल दिवाकर महाराज महामाहेश्वर श्री दुर्लभदेव की अजेय तलवार उपस्थित है?" "देव, मुझे खटपट में न डालिए, पाटन जाने और अमीर।" “वाह, यह कैसी बात महाराज, पाटन गया तो सिद्धपुर कहाँ रहेगा? कुछ तो सोचिए!" "तो आप मुझे क्या करने को कहते हैं?" co