पृष्ठ:सोमनाथ.djvu/१९६

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के राह बाट सैनिकों ही से पटे पड़े हैं।" "तुम्हें नहीं मालूम, बाणबली भीमदेव सर्वाधिपति हुए हैं। पाटन में इस समय एक लाख तलवारें अमीर का स्वागत करने को तैयार खड़ी हैं।" "तो क्या परवाह, इन तलवारों के पीछे दासता, घमण्ड, स्वार्थ, दुराचार, पाखण्ड जो छिपा हुआ है। ये एक लाख तलवार अमीर की उस अकेली तलवार का भी मुकाबला नहीं कर सकतीं जो केवल एक ईश्वर को मानता है, जिसका एक धर्म, एक जाति, एक ईश्वर और एक ईमान है-जहाँ छोटे-बड़े सब बराबर हैं।" “यह तुम क्या कह रहे हो, देव! क्या सचमुच अमीर सोमनाथ को भंग करेगा?" "नहीं तो क्या? उस दिन जब मैंने सोमनाथ की पौर में खड़े होकर दर्शन करने चाहे थे, तब मुझ शूद्र को धक्के देकर खदेड़ दिया गया था। अब मैं ही अपनी इस तलवार से इस सोमनाथ के दो टुकड़े न कर डालूँ, तो तुम्हारे प्रेम का दंभ न भरूँ।" "नहीं, नहीं, देव! ऐसी भयानक बात मत कहो। पैरों पड़ती हूँ। भगवान् सोमनाथ देवाधिदेव हैं, संसार के स्वामी हैं।" "देखा जाएगा, अभी तो मैं तुम से एक खास मामले में सहायता लेने आया हूँ।" “कहो।” “मेरा काम तुम्हें करना होगा।" “करूंगी।" “पर काम मेरा नहीं, अमीर का है।" 'अमीर का क्या काम है?" "उसे पूरा करने पर ही हमारा भाग्योदय निर्भर है।" "तुम कहते हो तो करूंगी।" "ज़रूर करो।" “कहो।" "महालय की सब स्त्रियाँ खम्भात जा रही हैं?" "हाँ, आँ।" "चौला भी?" “वह भी। पिताजी कह रहे थे।" 66 “और तुम?" “मैं भी।" "ठीक है, तो सुनो। जैसे बने, छाया की भाँति चौला के साथ रहो। उसकी विश्वास- भाजन बनो। एक क्षण को भी अपनी आँखों से उसे ओझल मत होने दो।" "क्यों?" "अमीर का हुक्म।” “किन्तु क्यों?" शोभना ने भयभीत होकर पूछा। "क्यों का उत्तर नहीं। जब मैं खम्भात में तुमसे पूछू कि चौला कहाँ है, तब मुझे बताना।" “खम्भात तुम कब आओगे?" CG