पृष्ठ:सोमनाथ.djvu/२०२

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" “जाने दीजिए, आपने कहा, 'वह सितारा आज से चौथे महीने असर करेगा'?" “जी हाँ।” शेख ने फिर अपनी तख्ती पर नज़र फैलाई। “खैर, तो तब तक मैं गज़नी पहुँच जाऊँगा।" “यह नामुमकिन है।" “क्यों?" “आपने यदि लड़ाई छेड़ दी तो वह लम्बी मुहिम होगी। सोमनाथ की फतह आसान नहीं है।' “यह तो इत्तफ़ाक़ पर मौकूफ़ है।" “जी नहीं। हाँ, अगर आपको कोई गैबी मदद मिल जाए, तो बात जुदा है।" “मसलन?" "जैसे वही खतरनाक गुसाईं सच्चा उतरे।" “उसपर आपको शक है?" “जो खबर मिली है, उससे तो वह आपकी मदद करेगा। मगर काफ़िर का भरोसा क्या? फिर वह जो मालिक से दगा कर रहा हो, अपने दीनों-ईमां से बगावत कर रहा हो।" "लेकिन वह तो अपने देवता जिन्नात के हुक्म की तामील कर रहा है जिसके हम शाही मेहमान बन चुके हैं और अब फिर उसने मुझे बुलाया है।" "ठीक है, पर कौन जाने, इसमें क्या भेद है?" “क्या आपने उससे मुलाक़ात की थी?" “मुलाक़ात नहीं हुई। मगर मेरे-उसके बीच बातचीत तो है ही।' "उसी नौजवान की मार्फत, जिसे आपने अपना सन्देश लेकर मेरे पास भेजा था?" “जी हाँ।" “वह लड़का कहाँ है?" “मेरे ही काम से पट्टन गया है।" "जिन्नात के बादशाह से कल वहीं मुलाकात होगी न?" “यही उसने कहलाया था, लेकिन उसने इस बार मुझे अकेला बुलाया है। मैं ज़रूर जाऊँगा।" “खैर, मेरी सुलतान से एक इल्तजा है।" "क्या?" “अगर सुलतान इस मुहिम को सर करने पर तुले ही हुए हैं तो ऐसी कोशिश कीजिए कि जल्द से जल्द मुहिम खत्म हो जाए, और आप चौथे चाँद से पेश्तर ही गज़नी लौट जाएं।" “अलहम्दुलिल्लाह, ऐसा ही करूँगा, हाँ, वह नाज़नीं?" “सब लोगों के साथ खम्भात भेजी जा रही है। मैंने बन्दोबस्त किया है कि एक भरोसे की औरत उसके साथ रहे।" "कौन है वह?" “फ़तह की होने वाली जोरू।" "फ़तह कौन है?" 66