पृष्ठ:सोमनाथ.djvu/२०३

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66 “वही नौजवान। हज़रत, उसे मैंने एक टुकड़ी फौज का सरदार बनाया है, अगर वह यह खिदमत ठीक-ठाक बजा लाया तो उसे सिपहसालारों में रमूंगा।" "वह जी-जान से हुजूर के काम में लगा है।?" "लेकिन हज़रत, सिर्फ एक चीज़ लेकर भी मैं सोमनाथ को छोड़ सकता हूँ।" "वह क्या ?" "वही नाज़नीं।" “क्या नाम है उसका?" "चौला।" “यह शायद नामुमकिन है सुलतान, एक लाख नंगी तलवारें उसकी हिफाजत कर रही हैं।" "उस लौंडी की?" “वह देवदासी है हजूर, देवता की जोरू।” "पत्थर के देवता की जोरू ज़िन्दा औरत?" अमीर हँसा। “इसी से सोमनाथ और लौंडी की इज़्ज़त बराबर ही है। "तो मैं सोमनाथ के इसी गुर्ज से चार टुकड़े करके उस लौंडी को अपनी खिदमत में रखेंगा।' "अब सुलतान किस बात का इन्तज़ार कर रहे हैं?" “किसी बात का नहीं, मेरी सब बिखरी फ़ौज इकट्ठी हो गई है। कल उस गैबी शै से मुलाकात होने के बाद खुले मैदान में छावनी डालूँगा।" "मुझे कोई हुक्म?” “उस छोकरे को मेरे पास भेज दीजिए।" "बेहतर!" अमीर ने वृद्ध शेख के दोनों हाथ अपनी आँखों से लगाए, चूमे और चुपचाप घोड़े पर चढ़कर रवाना हुआ। अभी भी दिन निकलने में देर थी। पूर्व दिशा में सफेदी छा रही थी। 66 "