पृष्ठ:सोमनाथ.djvu/२२०

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C झाड़ा। स्वर्ण-दम्म से भरी थैली लेकर आनन्द ने कहा, “ठीक है, मैं भी तुम्हारी चीज़ ले आया हूँ, देखो!” उसने वस्त्र से निकाल कर बड़ी-सी चाबी दिखाई। युवक ने प्रसन्न होकर कहा, “लाओ, दो, बाकी इनाम कल मिल जाएगा।” आनन्द ने चाबी वस्त्र में छिपा कर कहा, “अभी नहीं मित्र, सब काम खूब होशियारी से आगा- पीछा देखकर होना चाहिए। अभी दे दूंगा, तो हम पकड़े जाएँगे। प्रात:काल चाबी माँगी जाएगी, न देने से मुझ पर विपत्ति आएगी। तथा द्वार पर पहरा-चौकी बढ़ जाएगा। हमारी सारी योजना व्यर्थ जाएगी।" "तब?" “मैंने एक युक्ति सोची है। इसी प्रकार की दूसरी चाबी बनवाई है, वह कल मिल जाएगी। उसे लेकर तुम अपना काम करना। किसी को सन्देह भी न होगा।" “यही सही, पर अब नित्य आने में जोखिम है।" "बस, एक बार और। परन्तु मैं तुम्हारी एक सहायता करना चाहता हूँ।" "क्या?" “एक पुरुष से मुलाकात।” "कौन है वह?" "काम का आदमी है" “कहाँ?" “जल के बाहर आओ।" “वह क्या सहायता करेगा?" "सब-कुछ?" "तुमसे भी अधिक?” "सबसे अधिक।" “क्या उस पर विश्वास कर सकता हूँ" "प्राणों का इतना मोह है तो ऐसा दुस्साहस न करो। जाओ, यह लो अपने दम्म।” "नाराज न हो दोस्त।" "फिर विश्वास क्यों नहीं करते?" “करता हूँ।" "तो मेरे साथ आओ।" दोनों व्यक्ति शाखाओं के सहारे तट पर आए। और पेट के बल रेंग कर उस वृक्ष के निकट पहुँचे। दामो महता भी वहाँ पेट के बल औंधे पड़े थे। दामो ने कहा, “यही वह युवक है?" “जी हाँ।" "तो ज़रा खिसक कर मेरे पास आओ।” युवक दामो महता से सट गया। महता ने छाती के नीचे से तलवार निकाल कर कहा, “इसे भली-भाँति देखकर बताओ कि पहचान सकते हो, यह किस की तलवार है?" युवक ने घने पत्तों के झुरमुट से छन कर आती हुई चन्द्र की क्षीण छाया में तलवार को भली-भांति परखकर कहा, “पहचान गया।"