पृष्ठ:सोमनाथ.djvu/२७३

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शत्रुदल को भेदने में सफल हुए। परन्तु अट्ठासी में से कुल दो योद्धा अब जीवित थे। एक उनमें कमा लाखाणी थे। वे रक्त में सराबोर थे। शत्रु-सैन्य से बाहर होते ही दूसरा योद्धा घोड़े से गिर पड़ा। कमा लाखाणी ने रास मोड़ी और घोड़े से कूदकर अपने दुर्धर्ष योद्धा का सिर अपनी जांघों पर रख लिया। योद्धा ने एक बार सूखे होंठों पर जीभ फेरी और आँखें पलट दीं। कमा लाखाणी ने वहीं थोड़ी मिट्टी ऊँची कर उसका सिर टेक दिया। वे उठकर खड़े हुए, तब तक हज़ारों शत्रुओं ने उन्हें घेर लिया था। अमीर ने ललकारकर कहा, “खबरदार, इस बुजुर्ग का बाल भी बांका न होने पाए।” योद्धा हट गए और कमा लाखाणी अपनी तलवार हाथ में लिए खड़े रहे। घावों से उनके शरीर पर रक्त बह रहा था। अमीर घोड़े से कूद पड़ा। उसने कहा, “अय बुजुर्ग, तुझ पर आफरीं, तू कौन है? अपना नाम बताकर महमूद को ममनून कर।" “मैं कच्छ का धनी कमा लाखाणी हूँ, परन्तु अमीर महमूद, अब मैं खड़ा नहीं रह सकता। दो घड़ी पहले, जब मैं तेरे सामने आया था, मेरे पास अट्ठासी तलवारें थीं, परन्तु अब केवल एक है। यह मैं सिर्फ तुझे देना चाहता हूँ। जल्दी कर, मेरी आँखें भी जवाब दे रही हैं। तलवार उठा।” वृद्ध कमा लाखाणी ने हवा में तलवार घुमाई, पर उनका शरीर झूल गया। अमीर ने लपककर उन्हें आँचल में भर लिया। उसकी आँखों में आँसू भर आए। उसने कहा, “कच्छ के विजयी महाराज, आपकी इस अकेली तलवार ने दिग्विजयी महमूद को ज़ेर किया है, महमूद की क्या ताब कि इसे छुए!" वीरवर कमा लाखाणी के कान में महमूद के पूरे शब्द नहीं पड़े। अमीर की गोद में उनका सिर ढुलक गया। उनको गोद में लेकर अमीर महमूद वहीं भूमि पर बैठ गया। एक बार वीरवर ने आँखें खोली, होंठ हिले और सदा के लिए निःस्पन्द हो गए। अमीर ने आँख उठाकर देखा तो उसके योद्धा चुपचाप खड़े यह तमाशा देख रहे थे। अमीर ने हुक्म दिया “अय बहादुरो, घोड़ों से उतर पड़ो, हथियार ज़मीन पर रख दो और बहादुरों के बादशाह इस बुजुर्ग की इस तलवार के सामने सिर झुकाओ।” बीस हज़ार बर्बर दुर्दान्त खूनी डाकुओं ने भूमि पर घुटने टेककर अपने-अपने हथियार ज़मीन पर रख सिर अमीर की आँखों से झर-झर आँसू बह चले। उसने दोनों हाथों से वृद्ध व्याघ्र की तलवार लेकर आँखों से लगाई। उसे चूमा और उसे वीरवर के वक्षःस्थल पर स्थापित कर अपना सिर भी उस निःस्पन्द वक्ष पर झुका दिया। झुका दिए।