पृष्ठ:सोमनाथ.djvu/२९९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

"भगवान के लिए भी नहीं, किसी तरह नहीं। चलो-जल्दी करो, अमीर प्रतीक्षा में है। अब देर हो रही है, चौला को मेरे हवाले करो।" "तुम किस अधिकार से उन्हें मुझसे माँगते हो?" “मैंने तुम्हें उनकी निगरानी पर नियत किया था।" “सो मैंने उनकी निगरानी की है।" “वह यहीं है?" “यहीं हैं।” "और महाराज भीमदेव?" “वे नहीं हैं।" “कहाँ हैं?” “मैं नहीं जानती।" “खैर, उन्हें ढूँढ़ लिया जाएगा। कहाँ है चौला?" "भीतर इसी महल में।" "तो द्वार खोलो, उसे मेरे हवाले करो।" "तो तुम क्या इस बात पर तुल ही गए हो?" "शोभना, हमारे जीवन का हेस-नेस अब इसी बात पर है।" “पर याद रखना, तुमने शोभना की बात नहीं रखी।" “अब इसके बाद, मैं शोभना का ही दास हूँ। शोभना की बात रखना ही मेरा काम होगा।” “वाह, तुमने तो दासता का धन्धा ही खोल दिया है, अमीर के दास बने, फिर शोभना के बनोगे।" “शोभना का दास बनने के लिए मैं अमीर का दास बना हूँ, यह बात न भूलना शोभना।" “अच्छी बात है, न भुलूँगी।" "तो अब द्वार खोलो।" शोभना कुछ देर सोच में पड़ गई। उसने मर्म-भेदिनी दृष्टि से फतह मुहम्मद को देखा, फिर कहा, “ज़रा सोच लो देवा।" "देर न करो शोभना।" "तो शोर न करो। चुपचाप मेरे पीछे आओ।" "लेकिन भीतर और कौन है?" 'अकेली देवी हैं।" "तब चलो।" शोभना दीवार की छाया में दीवार से सटकर निश्शब्द चलने लगी। फतह मुहम्मद उसके पीछे-पीछे उसी भाँति चला। महल के पिछवाड़े पहुँचकर एक छोटे-से द्वार में घुसकर उसने कहा, “जूता बाहर उतार दो और निश्शब्द भीतर आ जाओ।" फतह ने ऐसा ही किया। द्वार के भीतर उसे करके शोभना ने भीतर से द्वार बन्द कर लिया। अब वह उसे एक अंधेरी गली में हाथ पकड़कर ले चली। 60