पृष्ठ:सोमनाथ.djvu/३०७

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कहा, बन्द कर दी जाए। और चौला की सब आज्ञाएँ पालन की जाएँ। वह यह कल्पना भी न कर सका कि चौला देवी के स्थान पर शोभना देवी उसके साथ खेल रही है। नियत समय पर अमीर ने महल के अन्तरंग में एकाकी प्रवेश किया। उसने अपने विश्वस्त गुलाम अब्बास को भी ड्योढ़ी पर ही छोड़ दिया। भीतर प्रांगण में सन्नाटा था। एक भी व्यक्ति वहाँ न था। वह सहमता हुआ धीरे-धीरे आगे बढ़ा। दालान में पहुँचकर वह खड़ा हो गया। उसने ताली बजाई। भीतर से जवाब दिया शोभना ने, “यदि आप गज़नी के यशस्वी अमीर हैं, तो आप भीतर आ सकते हैं। खेद है कि इस समय मेरे पास कोई दास-दासी आपकी अभ्यर्थना के लिए नहीं है केवल मैं अकेली हूँ।" कोमल कण्ठ से अत्यन्त स्निग्ध वाक्य सुनकर अमीर की हृत्तन्त्री बज उठी। उसने “आप ही यदि मन्दिर की महारानी हैं, जिनका दर्शन मुझे एक बार हो चुका है, तो मैं स्वीकार करता हूँ कि मैं गज़नी का अमीर खुदा का बन्दा और आपका गुलाम महमूद यहाँ हाज़िर हूँ।” “लेकिन मैंने सुना था कि गज़नी का यशस्वी अमीर बादशाहों का बादशाह है, तब यह गुलाम महमूद कौन है?" “वही, जो बादशाहों का बादशाह है, आपका गुलाम है।" "यह जानकर भी कि मैं एक तुच्छ दासी, देवदासी हूँ?" "लेकिन महमूद की मलिका हैं।" “मेरा ख्याल है कि अमीर महमूद तो मलिका के भी गुलाम नहीं हैं।" "सच है, लेकिन आपका गुलाम हूँ।' “सच! इसीलिए अमीर नामदार इस खूनी तलवार से राह बनाते यहाँ तक आ पहुँचे हैं?" “मुझे अफसोस है मलिका, पर अब मैं यह तलवार तुम्हारे कदमों में सदके करता यह कहकर महमूद ने तलवार कमर से खोलकर शोभना जिस जाली के भीतर बैठी बात कर रही थी, उसके निकट भूमि पर रख दी। शोभना का रानी के समान देदीप्यमान मुख तेज से परिपूर्ण हो उठा। उसने कहा- “अमीर नामदार की सारी ज़िन्दगी की बरकत इसी तलवार की धार पर है, अमीर को उचित नहीं कि इस कीमती तलवार को एक अदना औरत के कदमों में रखने की बेवकूफी करे।" "आज अमीर अपनी बेवकूफी पर खुश है मलिका!" “यह बिलकुल नई बात है हुजूर, आपको शायद हिन्दुस्तान की हवा लग गई है। यहाँ कुछ लोग ऐसे ही जोरू के गुलाम होते हैं। लेकिन अमीर नामदार को तो ऐसा नहीं होना चाहिए।" “यह क्यों? क्या महमूद के दिल नहीं है?" "दिल शायद हो। लेकिन दिल तो प्यार को तलवार की धार पर चलने की इजाज़त नहीं दे सकता।"