पृष्ठ:सोमनाथ.djvu/३२७

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बन्दियों का सत्साहस विपत्ति से सत्साहस की उत्पत्ति होती है। इस घोर विपत्ति से सबसे प्रथम स्त्रियों में सत्साहस का उदय हुआ। बर्बर सिपाही उनसे सब प्रकार का कुत्सित हँसी-मजाक और दुर्व्यवहार करते रहते थे। उन्होंने सबसे प्रथम उन सिपाहियों को डांट-डपट कर सीधा किया। एक स्त्री ने अवसर पाकर अपने भोजन करने का एक पात्र उठाकर एक सिपाही के सिर पर दे मारा। इससे प्रथम तो सिपाहियों में यह उत्तेजना फैल गई, परन्तु तुरन्त ही एक भीति ने उनके मन में घर कर लिया। वे यह भली-भाँति जानते थे कि यदि अमीर के कान में ऐसी बातें पहुँच गईं तो फिर खैर नहीं है। इसके बाद ही कैदियों ने दूसरा कदम यह उठाया कि नगर में भीख माँगने से इन्कार कर दिया। प्रथम स्त्रियों ने ही दृढ़तापूर्वक यह निश्चय किया, उसके बाद ही पुरुष कैदियों ने भी इन्कार कर दिया। अब ज़रा-ज़रा-सी बात पर सारी स्त्रियाँ सामूहिक रूप से सिपाहियों का हिंसक विरोध करने लगीं। यह सब देखकर सिपाही डर गए। उन्होंने सालार महमूद से सब बातें कहीं, जो कैदियों का इन्चार्ज आफिसर था। सालार ने बन्दीगृह में आकर सब कैदियों का मुआयना किया। सिपाहियों ने बहुत- सी शिकायतें कीं। इस समय सब स्त्री-कैदियों का नेतृत्व कंचनलता कर रही थी और पुरुष कैदियों के नेता देवचन्द्र थे। मसऊद ने कैदियों के बाड़े में जाकर कंचनलता को तलब किया। परन्तु मसऊद की आज्ञा पाकर भी वह उठकर उसके पास नहीं गई। जहाँ बैठी थी वहीं बैठी रही। क्रोध में भरा हुआ मसऊद स्वयं उसके निकट गया। वह चाहता था कि उसे दण्ड दे। परन्तु उसकी रूप- माधुरी, मृदुल देहयष्टि, बड़ी-बड़ी कमल-सी आँखें और उज्ज्वल मोती के समान रंग देखकर वह दंग रह गया। अपने जीवन में रूप-माधुर्य और सौकुमार्य का ऐसा मिश्रण उसने देखा न था। उसका सैनिक जीवन कठोर और बर्बर कृत्यों से भरपूर था। फिर भी वह एक उच्चवंशीय कुलीन तुर्क था। वह स्वयं एक सुन्दर सजीला जवान था और एक स्वस्थ युवक की भाँति उसके मन में भी कोमल भावनाएँ थीं, जो व्यस्त सैनिक जीवन में सुप्त हो गई थीं। अब इस रूपसी बाला को देखते ही उसकी सब भावनाएँ एकबारगी ही जाग्रत होकर भड़क उठीं। वह देर तक एकटक प्यासी आँखों से उसे देखता रहा। फिर उसने उससे कहा, “खड़ी हो जाओ।" परन्तु कंचनलता खड़ी नहीं हुई। मसऊद ने कहा, “तुमने मेरा हुक्म नहीं सुना?" कंचनलता ने इसका भी कुछ जवाब नहीं दिया। मसऊद क्रोध नहीं कर सका। वह उसके निकट धरती पर बैठ गया। और मृदुल कण्ठ से कहा, “तुम्हारे खिलाफ बहुत बातें हैं। मैं सालार मसऊद अमीर का सिपहसालार हूँ, सफाई में तुम्हें जो कहना हो, कहो।" मसऊद कंचनलता के बिल्कुल निकट सरक आया। वह मुँह उठाकर अपने प्रश्न के उत्तर की प्रतीक्षा करने लगा।इसी समय अकस्मात् अतर्कित रीति से कंचनलता ने तीन- चार तमाचे उसके मुँह पर कस कर जड़ दिए। फिर कहा, “यह मेरा तुझे और तेरे अमीर को