पृष्ठ:सोमनाथ.djvu/३४५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

काम अपने हाथ में ले लिए। वह उस घर की एक सदस्या बन गई। ब्राह्मण दम्पती उसे बेटी समझने लगे। परन्तु चौला रानी वहाँ आयु काटने तो आई न थी। उसे जितना शीघ्र सम्भव हो, महाराज भीमदेव की सेवा में आबू पहुँचना था। वह अपने मन का अभिप्राय कैसे ब्राह्मण पर प्रकट करे, यह निर्णय नहीं कर पाती थी। वह अपना परिचय देना भी ठीक नहीं समझती थी। ब्राह्मण उसकी शालीनता सोचकर सन्देह करता था कि यह अवश्य कोई बड़े कुल की स्त्री है, परन्तु ब्राह्मणी के डर से वह उसपर किसी भाँति कृपा नहीं कर सकता था। ब्राह्मणी यद्यपि अपेक्षाकृत उस पर सदय थी, परन्तु अपने स्वभाव के अनुसार वह सदैव खीझती रहती थी। दिन बीत रहे थे और पाटन के समाचार विकृत होकर उसके पास आ रहे थे। उन समाचारों का सार यही था, कि पाटन में इस्लामी राज्य कायम हो गया है। अमीर ने सब सेठ-साहूकारों का कत्ल कर दिया है और गुजरात के राजा वल्लभदेव और भीमदेव भाग गए हैं। ये सब समाचार सुन-सुनकर चौला रानी बहुत घबराती, कभी छिपकर रोती। कभी उसका रोना ब्राह्मण पर प्रकट हो जाता, कभी नहीं। परन्तु एक दिन ब्राह्मण ने उससे बात की। उसने कहा, “लक्ष्मी बेटी, तू अपने मन की बात मुझसे कह; और यह भी बता कि तू कौन है, और मैं तेरी क्या सहायता कर सकता चौला ने कहा, “यदि आप किसी भाँति मुझे आबू पहुँचा दें, तो बड़ी कृपा हो। खर्च मेरे पास है।" 'आबू में कौन है।" "मेरे पतिदेव हैं।" “इतने दिन बाहर रहने पर वे तुझे रखेंगे?" “रखेंगे।" "उनका नाम क्या है बेटी?" "वह, वहीं चलकर बताऊँगी।" ब्राह्मण फिर सोच में पड़ गया। उसने कहा, “बहुत कठिन है बेटी, राह में पाटन है। वहाँ म्लेच्छ का राज्य है, सुना है वहाँ बहू-बेटी की आन नहीं है। म्लेच्छ जिसे पाते हैं, पकड़ कर ले जाते हैं। मैं दुर्बल ब्राह्मण तेरी रक्षा नहीं कर परन्तु चौला साहस कर चुकी थी। उसने कहा, “पिताजी, मैं भेष बदल कर पुरुष- वेष में आपके साथ जाऊँगी। ब्राह्मण को कोई नहीं सताएगा। फिर मेरे पास तलवार है, आप चिन्ता न करें। ये दस मोहरें हैं। इन्हें माताजी को दे दीजिए, वे सन्तुष्ट हो जाएँगी। मेरे पास खर्च के योग्य और भी मुहरें हैं।" अन्तत: ब्राह्मण राज़ी हो गया। सोना पाकर ब्राह्मणी भी राज़ी हो गई। और एक दिन खूब भोर में, सूर्योदय से प्रथम ही चौला ब्राह्मण कुमार का वेश बना, वस्त्रों में तलवार छिपा, यथासम्भव अपने रूप को अपरूप कर वृद्ध ब्राह्मण को संग लेकर घर से निकल पड़ी। राह-बाट में जो मिलता, वही पाटन की भयानक बातें सुनाता। दोनों भिक्षा मांगते, खाते, कभी चना-चबेना खाते, कभी टिक्कड़ सेंकते, गाँव-पर-गाँव पार करते पाँव- सकता।