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पृष्ठ:सोमनाथ.djvu/३५

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"नहीं, भीमदेव।"

"देख लिया?"

"अच्छी तरह। अफसोस यही रहा, दो-दो हाथ और न हो पाए।"

"अब्बास को उसी ने ज़ख्मी किया?"

"नहीं, एक दूसरे नौजवान ने।"

"मगर तकरार हुई किस बात पर?"

"फिर कहूँगा, अभी यह फर्माइए कि लाहौर से कोई आया है?"

"अलीबिन उस्मान अल्हज बीसी का कासिद आया है। उन्होंने कहलाया है कि तमाम फौज दर्रा पार कर चुकी है, और जलालाबाद में उसे लेकर मसऊद सुलतान के हुक्म की इन्तज़ारी कर रहा है।"

"और मुल्तान की क्या खबर है?"

"शेख इस्माइल बुखारी ने कहलाया है कि यदि सुलतान की सवारी सिन्ध की राह गुजरात जाना चाहती है तो उसे कड़ी से कड़ी मुहिम का मुकाबला करने को तैयार रहना चाहिए।"

"इसका मतलब?"

"मतलब यही, कि राह में जो राजा हैं वे गुमराह हैं।"

"उन्हें क्या राह पर नहीं लाया जा सकता?"

"शेख ने कोशिश की थी, मगर कुछ बना नहीं।"

"शेख को कहिए कि वे फिर कोशिश करें और गुमराहों को राह पर लाएँ, चाहे जिस कीमत पर।"

"बहुत खूब। लाहौर को क्या हुक्म भेजा जाए?"

"मसऊद गज़नी लौट जाए।"

"ऐं, यह कैसी बात?"

"यह सुलतान का हुक्म है। शेख और आप अभी यहीं मुकीम रहें। अब्बास के ज़ख्म भर जाएं तो वह गज़नी को रवाना हो जाए।"

"और कुछ हुक्म है?"

"नज़र रखनी होगी।"

"गुजरात के राजा पर?"

"नहीं।"

"गुसाईं गंग पर?"

"नहीं।"

"और कौन?"

"वह नाज़नीन।"

"कौन है वह?"

"सोमनाथ की सबसे बड़ी दौलत।"

"लेकिन..."

"शेख! वह आपकी आँखों से एक लमहे को भी ओझल हुई, तो गर्दन पर सिर नहीं