पृष्ठ:सोमनाथ.djvu/३५४

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भायातों की टक्कर कच्छ में बहुत-से भायात ठाकुर गिरासदार-जागीरदार थे। ये सब छोटे-छोटे राजा थे और अपनी-अपनी रियासत का प्रबन्ध स्वयं करते थे, केवल गुर्जरेश्वर को कर देते और दरबार में आवश्यकता होने पर हाज़िरी बजाते थे। वे सभी सोमतीर्थ पर जूझे थे। उनमें अनेक वहीं खेत रहे थे, जो बचे थे वे, और जो खेत रहे, उनके उत्तराधिकारी, इन सबने मिलकर, खम्भात के उदाहरण से सावधान होकर अपना संयुक्त संगठन किया। सबने अपनी-अपनी सेना एक ही जगह एकत्र की, और उसका अधिपति मांडवी के ठाकुर को बना दिया। जब अमीर पाटन के दरबार गढ़ में बैठ गया और गुजरात में अपनी आन उसने फेर दी, तो इन भायातों ने उसकी आन नहीं मानी। न ये अमीर के दरबार में गए। इन्होंने भीमदेव को सूचना भेज दी कि इस बार यदि अमीर ने कच्छ में मुँह किया तो उसका तलवार से स्वागत किया जाएगा। वे ध्यान से अमीर की गतिविधि को देखने लगे। अब, जब अमीर ने भम्भर की ओर बाग मोड़ी तो भायातों की सैन्य चाक-चौबन्द हो आगे बढ़ी और उसने अदेसर में आकर उसका मुहाना रोक दिया। अब तो महमूद को लड़ने के सिवा कोई चारा न रह गया। उसके लिए तीन मार्ग थे - या तो वह भायातों की सेना से सम्मुख युद्ध करने का खतरा उठाए, या वह कच्छ के छोटे रन में घुसे और उसे पार कर काठियावाड़ में जा निकले या वह महारन में जाए। छोटे रन में घुसने का कोई अर्थ ही न था। वह उसके मार्ग से विपरीत दिशा में था। महारन के विकराल गाल में जाने के अतिरिक्त उसे दूसरी राह न थी, परन्तु भायातों की तलवारों का उल्लंघन बिना किए वह न इधर बढ़ सकता था न उधर। निरुपाय उसने सेना को व्यूह- बद्ध किया, और अविलम्ब भायातों पर धावा बोल दिया। उसने अपने तीन हज़ार मार वाले धनुर्धर और इतने ही बलूची घुड़सवारों को दाएं-बाएं आक्रमण करने की आज्ञा दी तथा दस हज़ार पदातिकों को उसने सम्मुख मार करने को अग्रसर किया। पर इस बार भाग्य उसके साथ न था। भायातों ने लड़ते-लड़ते और बिखरते हुए पीछे हटना प्रारम्भ किया। अमीर ने इस कौशल पर ध्यान नहीं दिया। वह झटपट युद्ध का परिणाम देखना चाहता था। उसके बलूची सवार भायाती सैन्य को दबाते ही चले गए। दाहिनी ओर का मोर्चा हटते-हटते मीलों तक पहाड़ी उपत्यकाओं में फैल गया। और अब वहाँ दो-दो चार- चार योद्धा छुटपुट लड़ने लगे। वे परस्पर सम्बन्धित न रहे। अन्त में अमीर की यह सेना वहीं घिर गई। बाईं और की सेना को दबाव डालकर छोटे रन में पेल दिया गया। पदातिकों पर निर्दय तलवार की मार पड़ी। वह सेना छिन्न-भिन्न हो गई और बौखलाकर महारन में घुस पड़ी। सेना की यह दुर्दशा देखकर अमीर ने शोभना देवी को दो हज़ार सुरक्षित सवारों की रक्षा में खादर की ओर बढ़ने की आज्ञा दे, शेष समूची सेना ले भायातों पर धंसारा किया। परन्तु शीघ्र ही उसे अपनी इस जल्दबाजी का परिणाम भी दीख गया। अवसर पाकर बगल के पहाड़ी प्रदेशों से निकल-निकलकर ठाकुरों ने अमीर की पीठ पर मार करनी प्रारम्भ कर दी। यह एक अनोखा और बेतुका युद्ध हो रहा था। सम्मुख सेना बिना लड़े-भिड़े