पृष्ठ:सोमनाथ.djvu/३६९

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छुम छननन-नननन सिन्ध के युद्ध में अमीर के चहेते ममलूक योद्धा महाराज बीसलदेव की कृपाण के भोग बन तिल-तिल कट मरे। जो बचकर इधर-उधर भागे, उन्हें सिन्ध के अहीरों और जाटों ने लूट-मार कर बराबर कर दिया। समूची गज सैन्य और अमीर का सारा खज़ाना लेकर राजपूतों की सेना धौंसा बजाती हुई पीछे फिरी। इधर महाराज भीमदेव ने कन्थ-कोट से लौटते हुए तुर्क और ईरानी धनुर्धरों की पीठ पर करारी मार मारकर, उनका सम्बन्ध अमीर से तोड़कर, उन्हें छिन्न-भिन्न कर दिया। अमीर की यह शक्ति-सम्पन्न सेना सर्वथा अनुशासन-रहित हो, नष्ट-भ्रष्ट होकर सिन्ध और राजस्थान के उजाड़ इलाकों में बिखर गई। अपने लूटे हुए धन-माल के भय से, जिसका जहाँ सींग समाया, वहीं भागकर छिप गया। संयुक्त राजपूतों की सेना को लेकर महाराज भीमदेव सिद्धपुर लौटे,जहाँ दुर्लभदेव की साठ हज़ार सैन्य विद्रोही होकर उनसे आ मिली। अब अवसर देख महाराज भीमदेव ने चढ़ी रकाब पाटन पर अभियान बोल दिया। दुर्लभदेव डरकर गद्दी छोड़ जंगलों में भाग गए और नगर-द्वार पर चण्ड शर्मा ने महाराज भीमदेव का प्रमुख पौर जनों के साथ स्वागत किया। राज गजराज पर महाराज भीमदेव की सवारी अनहिल्लपट्टन के बाजारों में निकली। गुजरात के इस तरुण त्राता के यश:पूत दर्शन करने को समस्त गुजरात के प्राण ही पाटन में आ जुटे। पाटन का राजमार्ग फूलों से और बहुमूल्य स्वर्णखचित पाटम्बरों से सजाया गया था। घर-घर आनन्द की बधाइयाँ बज रही थीं। नृत्य-गान-पान गोष्ठी का आयोजन हो रहा था। कंथ कोट की दुर्लभ रण-स्थली में जिन योद्धाओं ने शौर्य प्रकट किया था, उनका विविध प्रकार के दान-मान से पौरगण सत्कार कर रहे थे। जगह-जगह अमल कुसुम घोला जा रहा था। पुरवासी स्त्रियाँ घर-घर मंगलगान कर रही थीं। आनन्द-वाद्यों से कानों के पर्दे फटे जाते थे। गवाक्षों और बाज़ारों से सुहागिनें और वधुएँ खीलपुष्प बरसा महाराज भीमदेव का गजराज सुमेरु पर्वत की भाँति सिर से नख तक स्वर्णजटित मखमली झूल से सुसज्जित था। वह अम्बारी, जिसमें गुर्जरेश्वर परम माहेश्वर परम परमेश्वर श्री भीमदेव विराजमान थे, उसका स्वर्ण-कलश सूर्य के समान प्रभात की धूप में चमक रहा था। सवारी के आगे नगर-कुमारिकाएँ गरबा नृत्य करती जा रही थीं। सुनहरी चूड़ियों से सज्जित राजगज के दन्त पर एक चन्दन की चौकी रखी थी। चौकी पर राजनर्तकी नृत्य कर रही थी। गजराज ऊँची सूंड उठाए जैसे गुजरात के नए राजा का अभिनन्दन करता चल रहा था। यह गजदन्त पर का अद्भुत नृत्य देखकर लोग आश्चर्य और आनन्द से विह्वल हो रहे थे। जैसे वायु में चरणाघात हो, इस प्रकार नर्तकी के चरण तैर रहे थे। गुप्तवासिनी विप्रलम्भा चौलादेवी अपने अछूते नवल प्रेम की अजस्र धाराओं को रही थीं।