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सौ अजान और एक सुजान

हमारे नाम की एक चिट्ठी आई है कि बाबू नंदलाल जो कहें, उसमें एक शोशा भी गलत न समझो। तब भला मुमकिन है कि आपकी बात का यकीन न करें ?

नंदू–आप तो ठट्ठों में उड़ाते हैं, यह मौका दिल्लगी का नही है।

पंचानन–जी नहीं, दिल्लगी की इसमें कौन-सी बात है, उस वक्त दिल्लगी. अलबत्ता थी, जब खूब गुलछरें उड़ते थे। खेर, बाबुओं के बचाव की सूरत बिलफैल किसी-न-किसी ढंग से हो जायगी। बावू दोनो चंपत भी हो गए, अब आप अपनी कहिए।

नंदू–(सब ओर देख) (स्वगत ) हाय ! बांबू क्या चले गए, तो अब यह सब बला हमी को सहना पड़ेगी । पंचानन चालाकी में हमसे भी दूना ज़ाहिर होता है, और हमको फँसाने के लिये इसने मन में तय कर लिया है, तो अब हमारा निस्तार कठिन मालूम होता है। खैर, अब इसी की खुशामद करें (प्रकट) बाबू पंचानन, आप चाहे, तो मुझे भी यहाँ से निकाल सकते हैं, मै आपका बड़ा एहसानमंद हूँगा।

पंचानन– आप कुछ संदेह न करे, मै आपकी भरपूर खबर लूॅगा । ( वारेटवालों को बुलाकर ) बाबू ऋद्धिनाथ तो यहाँ नहीं हैं, और यहाँ आए भी नहीं। बाबू नदलाल अल- बत्ता हाजिर हैं, इन्ही से बुद्धदास का भी पता आपको लग जायगा। (नंदू से ) नंदलाल, बाबू अब कहिए, जो कुछ आपको