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सत्रहवाँ प्रस्ताव

कहना हो; बुद्धदास के गिरफ्तारी के जिम्मेवार भी आप ही हैं । (दारोगा से) दारोगा साहब, बाबू नंदलाल बड़े रईस हैं, इनके साथ किसी तरह की रियायत हो सकती हो, तो मैं सिफारिश करता हूँ, कर दीजिए। क्योंजी बाबू नंदलाल, यही आपका मतलब न था कि मैं अपनी ओर से आपके लिये न चूकूॅ? खैर, मै अब जाता हूँ, दारोगा साहब और आप दोनो आपस मे यहॉ निपटते रहिए।


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सत्रहवाँ प्रस्ताव

अपना चेता होत नहिं, प्रभु-चेता तत्काल।

पंचानन नदू को उसी बाग़ में पुलिस के दारोगा से मिलाय आप चंपत हुआ। दारोगा अपने ढंग पर था कि इससे कुछ पुजावे भी, और बात-ही-बात में इससे कबुलवा भी ले कि'मै कुसूरवार हूँ।" इधर नंदू अपने ढंग पर था कि दारोगा को जरा भी उस बात की टोह न लगे, जिसके लिये वारेट आया है, और फॅसे, तो हम और वाबू दोनो इसमें शामिल रहें। बाबू भी शरीक रहेंगे, तो मुकदमे की भरपूर पैरवी की जायगी। मैं अकेला पड़ गया, तो वे मौत की मौत मरा।

नंदू–(मन मे) पंचानन का यहाँ से चला जाना मेरे हक मे निहायत मुजिर हुआ। वेशक मैने ग़लती की, जो इसे अपनी जमात मे शरीक किया। मैंने कुछ और सोचा, यहाँ कुछ और ही वात हो गई। यह तो मैं जानता था कि यह उसी चंदू का