पृष्ठ:सौ अजान और एक सुजान.djvu/१०३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१०२
सौ अजान और एक सुजान

दोस्त है, लेकिन मैंने समझा कि यह ठठोल,दिल्लगीबा, मुफ्त- खोरा है; हमेशा अपने को खुश रखना किसी दूसरे को फॅसाय दिल्लगी देखना और हमेशा आराम से जिदगी काटना इसका मकूला है। इसी से मैने अपनी जमात में इसे बुलाया भी पर इस वक्त की कार्रवाई से मैं इसे पहचान गया। यह चंदू का निहायत सच्चा दोस्त है, चालाक तो पंचानन वेशक है, कितु बड़ा खरा, बेलौस और सच्चा आदमी जान पड़ता है, यह मेरे आमालों को जानता है, क्योकि अब मै खयाल करता हूॅ, तो इसे छनक मेरी ओर से तभी से थी, जब से इसने यहॉ कदम रक्खा। क्या तअज्जुब यह वारेट भी चदू और पंचानन दोनो की सॉट में आया हो। खैर, यहाँ तो मै इस मरदूद दारोगा से किसी भॉति निपटे लेता है, पर मेरे घर पर मेरी गैरहाजिरी में यह पंचानन और चंदू दोनो मिल कोई फसाद बरपा करेगे कि मुझे जरूर फॅस जाना पड़ेगा। बुद्धदास का भी नाम इस वारेंट में है. उसे बिलकुल इसकी खबर नहीं है, उसको भी चंदू तके हुए है। बाबू को तो वह किसी-न-किसी तदबीर से बचा लेगा, यह मुसीबत मुझे और बुद्धदास, दोनो को भुगतना पड़ेगी। खैर, तो अब इसे टटोले; देखे, यह किसी तरह मेरे चंगुल में आ सके, तो बहुत अच्छा हो। (प्रकाश) हुजूर मै ग़रीब आदमी हूँ, और सब तरह पर बेकसूर हूॅ, मै तो जानता भी नहीं, यह क्या बात है। हाँ, अलबत्ता इन बाबुओ का मेरा दिन-रात का साथ है। खैर, अब मेरी इज्जत हुजूर के हाथ है,