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सौ अजान और एक सुजान


के विषय को और भी रोचक और सर्वग्राही बना दिया है। उनकी शैली का अनोखापन सहज ही पाठकों को मुग्ध कर लेता है। भट्टजी की प्रस्तुत रचना का आधार और मूल-तत्व उपदेश की भावना और अनुभव-जनित परिणामों का दिग्दर्शन-मात्र ही नहीं है।

इस संस्करण में संस्कृत-पद्यों का अर्थ फुटनोट में दे दिया गया है। आशा है, इस बार हिंदी-संसार इसे और भी अधिक अपनाएगा, और हिंदी-साहित्य की एक स्मरणीय अात्मा के स्वर्गीय संदेश का साहित्य-जगत् में पर्याप्त प्रचार करने में हमारी सहायता करेगा। इसे पाठवें दर्जे में नियत कर देने के लिये यू० पी० की टेक्स्टबुक-कमेटी के हम अभारी हैं। पहले 'हिंदी-साहित्य-सम्मेलन भी इसे पाठ्य पुस्तक नियत किए हुए था। आशा है, इस सुंदर संस्करण को वह फिर अपनाएगा।



कवि-कुटीर दुलारेलाल
लखनऊ, १७।६।३५