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सौ अजान एक सुजान

जिनको हर दम कोई नई दिल्लगी, नए शगल की तलाश. रहती है। मसल है "एक तो तित लौकी, दूजे चढ़ी नीम"

कपिरपि च कापिशायन,
मदमत्तो वृश्चिकेन संदष्ट. ;
अपि च पिशाचप्रस्त
किम्ब्रमो वैकृतं तस्य।*[१]

'रईस और प्रतिष्ठित लोगों में बरसात के दिनों में बाहरी ओर बाग-बगीचों में आमोद-प्रमोद का आम-दस्तूर हो गया है । सुबीतेवाले सभी अपने इष्ट-मित्रों को साथ ले बहुधा बगीचों में जाय नाच-रंग, खाना-पीना दो-एक बार अवश्य करते हैं। ये दोनों बाबू तो जब से बरसात शुरू हुई, तब से रातोदिन बगीचे ही मे जा रहे, कभी आठवें-दसवें घड़ी-दो घड़ी के लिये घर आते थे। एक दिन साँझ हो गई थी। घटा चारों ओर छाई हुई थी; राह-बाट कुछ नजर न पड़ती थी; बगीचे के बाहर खेतों की मेड़ पर ठौर-ठौर खद्योतमाला हरी-हरी घासों पर हीरा-सी चमक रही थी; छिनछिन पर गरजने के उपरांत काली-काली घटाओं में दामिनी क्रोधित कामिनी-सी दमक रही थी, सब ओर सन्नाटा छाया हुआ था; केवल नववारिद-समागम से प्रफुल्ल भेक-मंडली


  1. * एक तो बंदर, दूसरे शराब के मद में मतवाला, तीसरे बीछी से डसा हुआ, चौथे पिशाच से ग्रसित ऐसे की दशा का क्या कहना।