तब बड़े सेठ साहब सगर बारहदुआरी धोआइन रहा, वही
अब निरे मुसलमानै मुसलमान भरे हैं। न जानै इन दोनों
बाबुअन का का है गवा । नंदुआ का सत्यानास होय, कैसा
जादू कर दिहिस है कि चंदू महाराज और सेठानी बहू हजार-
हजार उपाय कर थकी, कोउनौ भॉति दोनों बाबू राह पर नहीं
आवत । वादिना बाबू बुद्धदास का बुलवाइन रहा, हम रात
के वहिके घर गइन रहा, पर एहका कुछ भ्याद नखुला, ओकर
बाबू से गिष्ट पिष्ट अच्छी नहीं । ऊ तो बड़े कजाक और
जालिया है।" हमने अपने पढ़नेवालों को इस सच्चे स्वामि-
भक्त का परिचय एक बार और दिलाना इसलिये उचित
समझा कि यह मनुष्य भी हमारे इस किस्से का एक प्रधान
पुरुष है; यह आगे बड़ा काम देगा, इसलिये इसे हमारे पाठक
याद रक्खें।
अब और एक नए आदमी का परिचय यहाँ पर देना
मुनासिब जान पड़ता है, क्योंकि ऐसे दो-एक और लोगों
को बिना भरती किए हमारे कथानक की श्रृंखला न जुड़ेगी।
क्यक्रम इस पुरुष का ३५ और ४० के भीतर था, नाम इसका
पंचानन था। पंचानन के जोड़ का दिल्लगीबाज और रसीली
तबियत का आदमी कम किसी ने देखा या सुना होगा।
मनुष्य चाल-चलन का किसी तरह बुरा न था, बल्कि चंदू-
सरीखे शुद्ध-चरित्र को मैत्री के भरपूर लायक था, और कसौटी
के समय चाल-चलन की शिष्टता भी 'इसमें चंदू ही के