सद्धर्म्म के अनुयायी और संघ, स्कंदगुप्त के विरुद्ध हैं। याज्ञिक क्रियाओं की प्रचुरता से उनका हृदय धर्मनाश के भय से घबरा उठा है। सब विद्रोह करने के लिये उत्सुक हैं।
भटार्क-- अच्छा, जाओ। नगरहार के गिरिव्रज का युद्ध इसका निबटारा करेगा। हूणराज से कहना कि सावधान रहे। शीघ्र वहीं मिलूँगा।
(दूत प्रणाम करके जाता है)
पुरगुप्त-- यह क्या हो रहा है?
अनन्त०-- तुम्हारे सिंहासन पर बैठने की प्रस्तावना है!
(सैनिक का प्रवेश)
सैनिक-- महादेवी की जय हो!
भटार्क-- क्या है?
सैनिक-- कुसुमपुर की सेना जालन्धर से भी आगे बढ़ चुकी है। साम्राज्य के स्कंधावार में शीघ्र ही उसके पहुँच जाने की संभावना है।
पुरगुप्त-- विजया! बहुत विलम्ब हुआ। एक पात्र
(अनन्तदेवी संकेत करती है, विजया उसे पिलाती है)
भटार्क-- मेरे अश्वों की व्यवस्था ठीक है न? मैं उसके पहले पहुँचूगा।
सैनिक-- परन्तु महाबलाधिकृत!
भटार्क-- क्या? कहो!
सैनिक-- यह राष्ट्र का आपत्ति-काल है, युद्ध की आयोजनाओं के बदले हम कुसुमपुर में पानकों का समारोह देख रहे है। राजधानी विलासिता का केंद्र बन रही है। यहाँ के,
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